ब-अदालत पेशकार साहब
ब-अदालत पेशकार साहब
बात बहुत बड़ी नहीं थी। मगर ऐसी भी न थी कि नजर अंदाज कर दिया जाए।गलती चाहे छोटी हो या बड़ी समय रहते न टोका जाये तो बाद के लिए परेशानी का सबब बन जाता है। पूछे गये सवाल के प्रत्युत्तर में बस इतना ही तो कहना था " अब तुमसे क्या छुपाना " अब छोड़ो भी। आगे से ध्यान रखुंगी।हो सकता था थोड़ी बहुत नाराजगी के साथ मामला रफा-दफा हो जाता। लेकिन शालीनी से यहीं पर चूक हो गई।
और तू - तू मैं - मैं से जो बाता- बाती शुरू हुआ एक सप्ताह बाद उसका परिणाम आया जिला अदालत में नागो के खिलाफ दहेज प्रताड़णा का केस।वकील साहब ने नागो को सलाह दिया कि जब घर की बातें बाहर आ ही गई तो अब कैसा लोक लाज। मानसिक दबाव बनाने के लिए तुम भी फैमिली कोर्ट में एक मुकदमा दायर कर दो तलाक़ (X) का।
गांव घर में एक कहावत हैं
"जब मारी जाए मति तो भांड़ में जाए श्रीमती "।
घरवालों के लाख मना करने के बावजूद भी नागो ने फैमिली कोर्ट में चरित्र हीनता का आरोप लगाते हुए दायर कर दिया तलाक का मुकदमा।और इसी घटना के साथ नागो हो गया ख़ास से आम।जैसे ही शालीनी को यह बात पता चला वो जल भून कर रह गई।
"इज्जत प्रतिष्ठा विरासत में नहीं मिलती बल्कि सालों साल संयमित आचरण के जरिए अर्जित करना पड़ता है"।
जिस नागो को देखकर मुहल्ले की महिला सिर पर आंचल रख किनारे हो जाया करती थी अब वही लोग डेहरी पर बैठ इस प्रसंग के मजे लेते देखे जा रहे हैं।
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यह इंडिया का कचहरी है। होम्योपैथी युनानी डाॅक्टर की तरह हर एक मर्ज की दवा मिलती है यहां।
एफिडेविट के सहारे जन्म प्रमाण पत्र से मृत्यु प्रमाण पत्र के बीच का सारे प्रमाण पत्र। ताबीज और ताश के पत्ते से केस के जीत हार तक के नुस्खे भी ।
सो भिन्न-भिन्न कैटेगरी के लोगों का आना जाना रहता है यहां। भले लोग भी और बुरे लोग भी।
एक लफंदर टाइप लड़के ने तंज कसा - इतनी सुन्दर है तब पति इसे काहे छोड़ दिया रे बाबा।
दुसरे ने नहला पर दहला मारा- अरे बड़ी घालमेल है इस सुंदरता में । हो सकता है सुंदर हो पर शालीन न हो।
तीसरे ने बात संभालते हुए दोनों को फटकार । भागते हो कि नहीं यहां से। बेचारी दुखियारी है तब न आई है यहां। नहीं तो किसको शौक है तुम्हारे जैसे लोगों के ताने सुनने की।
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कोर्ट की कार्यवाही शुरु हो चुकी है। जज साहब के लाख प्रयत्न के बावजूद भी मामले को सुलझाया न जा सका।
थक हार कर कोर्ट ने टिप्पणी की
" उलझनों की गुत्थी सुलझे तो कैसे
अहले दानिश ने बहुत सोचकर उलझाया है"।
तारीख पर तारीख दो साल बीत चुके हैं। सुलहनामे के बावत दोनों पक्ष के बीच विधिक सदस्यों की उपस्थिति में कई दफे मध्यस्थता भी करायी गई परन्तु परिणाम वही ढ़ाक के तीन पात।
कई बार तो ऐसा लगा कि अब बात बनी तब बनी मगर ऐन वक्त पर कभी सास कभी ससुर तो कभी ननद ,भैंसुर राह का रोड़ा बन बैठे।
किसी का घर बसे या उजड़े इससे इतर वकील साहब की अपनी कानूनी दांव पेंच सो अलग।
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उपरोक्त पात्रों से अलग अदालत में एक पात्र ऐसा भी जिसे मर्ज का जड़ तो पता रहता है परंतु हैसियत इनकी इतनी छोटी है कि वह चुप रहने में ही अपनी भलाई समझता है। क्योंकि पुरे कोर्ट में यही वो शख्स होता है जिसे दोनो पक्ष अन आफिसियल सारी बातें बताया करती है। और बदले में वे भी कहीं न कहीं बीच का रास्ता भी निकालने की कोशिश करता है।
कोर्ट कार्यवाही के दौरान पेशकार साहब ने दबी जुबान कोर्ट को बताया सर इन लोगों को फिर से लूडो खेलबाया जाए।
लूडो खेलबाया जाए मतलब - कोर्ट ने पुछा।
सर, दर असल झगड़े का कारण लूडो ही है।
संक्षिप्त में बात यह है कि ये दंपति खाली समय में अक्सर साथ बैठकर लूडो खेला करती थी । पत्नी की खुशी के वास्ते कभी कभार पतिदेव महोदय जानबूझ कर खेल हार जाया करती थी । इस तरह दाम्पत्य जीवन हंसी खुशी चल रही थी।
एक दिन की बात है खेल के बीच में ही पतिदेव महोदय पानी पीने किचेन जैसे ही गया पत्नी ने अपनी दो गोटी चार पांच खाने आगे खिसका ली। इसी बात को लेकर जो तनातनी हुई वह फूंसी से नासुर बनते चला गया और कोई बात नहीं है।
इतना सुनते ही कोर्ट ठहाके से गुंज उठा था। और दोनों पक्षों को अपनी ग़लती का एहसास भी।
कोर्ट के द्वारा थोड़ी सी मान मनोवल के साथ हंसी खुशी पति पत्नी को बिदा कर दिया गया
जज साहब मुस्कुराते हुए बस इतना ही कहे
ब - अदालत पेशकार साहब ।