औरत को ही औरत का साथ देना होगा
औरत को ही औरत का साथ देना होगा


"दादी" जन्मदिन मुबारक हो आप को। और स्वतंत्रता दिवस की भी बहुत सारी मुबारकबाद। आप एक बार सारा सामान चेक कर लो। मैंने यहाँ रख दिया है।माँ भी तैयार हो के आती हैं। सुकन्या ने अपनी दादी सरला जी से कहा।
"अच्छा ठीक है।"
"दादी आप से एक बात पूछनी थी। मां आज के दिन उदास क्यों रहती हैं? उनसे पूछने की कभी हिम्मत नही जुटा पायी। हालांकि वो दिखाने के लिए खुश रहती हैं। लेकिन उनके मन की उदासी मुझे महसूस होती हैं।" सुकन्या ने पूछा।
"वो क्या है? बेटा !ये बहुत गहरा राज हैं कभी कोई बहु सास के जन्मदिन पर ख़ुश नही रहती हैं। इसलिए हाहाहा ।" सरला जी ने हँसते हुए कहा
"वेरी फनी दादी। चलिये नही बताना ।तो मत बताइए"। सुकन्या ने कहा
तभी सरला जी ने अपनी बहू रीना को आवाज़ दी। आजा बेटा जल्दी।
"हाँ! सुकन्या सामान तो सभी हैं। बस रीना को आने दे।"
"लो दादी ।माँ भी आ गयी।"
"जन्मदिन बहुत बहुत मुबारक हो ,माँ! और स्वतंत्रता दिवस की भी बधाई माँ" रीना ने अपनी सास के पैर छूते हुए कहा
"खुश रह बेटा!" धन्यवाद
"अच्छा !चलो अब सब । "सुकन्या ने ड्राइवर से कहा" ड्राइवर ! समर्पण ओल्ड ऐज होम ले चलना"
"जी मैडम!"
सुकन्या पेशे से डॉक्टर थी उसको आज इस वृद्धाश्रम में ध्वजारोहण करने के लिए बुलाया गया था। क्योंकि इस आश्रम के वृद्धों की सुकन्या महीने के अंत मे फ्री रूटीन चेकअप करती थी।गाड़ी जा के वृद्धाश्रम रुकी । सभी कार्यक्रम होने के बाद। सुकन्या ने वही केक कटिंग करायी दादी से और जन्मदिन मनाया। सुकन्या ने दादी से कहा" दादी मैं खाने का अरेंजमेंट एक बार और देख लेती हूं तब तक आप बाकी समान दे दो सभी को।
आश्रम में जब सरला जी सभी वृद्धों को कपड़े दे रही थी। तभी उनकी और रीना की नजर एक वृद्ध पर रुकी।सरला को जैसे बहुत कुछ याद आने लगा !
"अमर बेटा!" सुन मैं और बहू पिक्चर देखने जा रहे है तू अपने और अपने पापा के लिए रात का खाना आर्डर कर लेना समझा।"
"लेकिन माँ आप को तो सिनेमाघरों में जाना पसंद नहीं तो आज कैसे जाएंगी? तब मेरे पास कोई सहेली नही थी लेकिन अब है। मेरी बहु मेरी सहेली और बेटी दोनो है।समझा"
"जाने दे !बेटा जाने दे! तेरी माँ की टीम अब मजबूत है।" ऊपर से तेरी माँ वकील है.... तो हम बातों में उसने जीत नही पाएंगे। सरलाजी के पति मुकेश जी ने कहा सरला जी पेशे से वकील थी।
सरला और मुकेश जी को रीना बहु के रूप में बेटी मिल गयी थी रीना को भी ससुराल आकर कभी ऐसा नही लगा। जैसे वो किसी पराए घर मे हो। हर चीज की आजादी थी रीना को।लेकिन अमर अपने मातापिता से बिलकुल अलग व्यवहार में था बहुत मन्नतों के बाद अमर को पाया था। उसके बाद सरला और मुकेश जी को कोई संतान हुई ही नही। लेकिन रीना के आने से जैसे घर मे खुशियाँ आ गयी थी। सुबह की सैर, मार्केट जाना, मूवी देखना, योगा करना। हर छोटी से छोटी खुशी सरला जी और मुकेश जी रीना के साथ मनाते। रीना के चेहरे की एक मुस्कान दोनो लोगो के चेहरे पर मुस्कान ला देती।
रविवार के दिन मुकेश जी ने कहा "सब आ जाओ मैने और रीना ने मिलकर आज पिज्जा बनाया हैं।"
तभी अमर ने कहा" मां पापा मुझे आप सबको एक बात बतानी थी"
"हाँ!कहो" मुकेश जी ने कहा
"पापा मुझे अमेरिका में नौकरी मिल गयी हैं। और मुझे अगले सप्ताह निकलना होगा।" अमर ने कहा
"ये तो बहुत खुशी की बात है,तुम्हारी और रीना की टिकट निकाल देता हूं।"
"नहीं पापा !अभी रीना मेरे साथ नहीं जाएगी। पहले मैं जा के देखूंगा फिर रीना को ले के जाऊंगा।" अमर ने कहा
लेकिन रीना से पूछा ...तुमने ।
क्यों बहु ?...तुम बताओ। तुम क्या चाहती हो।
"पापा! मैने रीना को बता दिया था।"
रीना ने कहा!पापा मुझे कोई परेशानी नही। मैं बाद में चली जाऊंगी।
ठीक है। फिर जैसी तुम लोगो की मर्जी।
अमर के जाने के बाद पता चला ।कि रीना गर्भवती हैं।
अमर को ये बात सरला जी ने फोन कर के बतायी। सब बहुत खुश थे।
लेकिन अमर ने ठीक है कह के फोन रख दिया ।
अमर का उत्तर सुन के सरला जी थोड़ी बेचैन हुई । लेकिन फिर मुकेश जी ने कहा कि काम मे व्यस्त होगा इसलिए बोल दिया होगा।
बात आई गयी हो गयी।
नौ महीने बाद रीना ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया। सब बहुत खुश थे लेकिन अमर ने फोन नही उठाया। ना ही इन नौ महीनों में कभी रीना से बात की फोन पे।
दिन महीने साल बीतते गए। अमर कभी फोन उठाता तो बाद में करूँगा कर के रख देता।
पन्द्रह अगस्त को एक लेटर आया। जिसे मुकेश जी ने खोला। उसको पढ़ते ही उन्होंने सरला जी को आवाज़ दी... औऱ लेटर सरला जी के हाथ मे पकड़ाया.. और उनको हार्टअटैक आ गया। आनन फानन में उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहाँ उनकी मृत्यु हो गयी। उसदिन अमर को रीना ने मुकेश जी के फोन से अस्पताल से फोन कर के ये दुखद खबर बतायी।
घर आ के सरला जी ने वो लेटर खोला। जिसे मुकेश जी ने सरला को देते हुए कहा "कुछ भी हो जाये बहु का साथ कभी मत छोड़ना। बहु नही वो हमारे लिए हमारा बेटा है"
उसमें लिखा था।
"पापा! मैं रीना को तलाक दे रहा हूं। क्योंकि मै उसके साथ अपनी जिंदगी नही बिता सकता। मैंने यहाँ दूसरी शादी कर ली है। और अब मैं लौट कर नहीं आऊंगा।आप दोनो से गुजारिश है कि प्लीज्। अपने मातापिता होने की दुहाई मत देना। क्योंकि आपने वही किया है। मेरे लिए जो सभी माता पिता करते है। उम्मीद करता हूं आप मेरी बात समझेंगे।"
सरला जी की नजर सामने अपनी बहू और उसकी गोद में डेढ़ साल की सुकन्या पर पड़ी। उनके आँसू अब सुख गए।अंतिम संस्कार की सारी तैयारियां हो चूंकि थी अमर भी आ चुका था।
अमर जैसे ही अर्थी को कंधा देने के लिए आगे बढ़ा। सरला जी ने अमर का हाँथ पकड़ लिया।
और कहा"रूको अमर! ये काम बेटे का होता हैं।" और तुम मेरे बेटे नही हो..रीना है।"
वहां मौजूद सभी लोग सरला जी को देखने लगे। सरला जी ने सुकन्या को गोद मे लिया। और रीना को कागज और पेन दे के कहा"बेटा साइन कर दे इन पेपर पे। क्योंकि कोयला क्या जाने हीरे की कीमत।"
रीना!पेपर देखते जैसे भावना शून्य हो गयी। उसने अमर की तरफ प्रश्न भारी नजरो से देखा। अमर की झुकी नजरे उसकी गलती और व्यवहार दोनो की गवाही दे रहे थे। रीना ने पेपर साइन कर दिया।
और बिना कोई सवाल किए। अर्थी को कंधा देने चली गयी। अमर दूर खड़ा सब कुछ देखता रहा। वो आज अपनो के ही बीच मे बेगाना हो चुका था। उसको इस बात की शायद उम्मीद नही थी कि उसके माता पिता ऐसा निर्णय भी लेंगे।
रीना के पापा ने उसे वापिस अपने साथ मायके जाने के लिए भी कहा। लेकिन रीना ने जाने से मना कर दिया ये कहते हुए कि"पापा मैं अमर के ग़लती की सजा माँ को नही दे सकती।"
"इस घर मे मुझे इस घर के बेटे से ज्यादा प्यार मिला है। मैं यही रहूंगी।"
दोनो सास बहू ने मिलकर सुकन्या को पाला। और डॉक्टर बनाया। मुकेश जी के बिजनेस को भी बढ़ाया।लेकिन अमर ने कभी पलट के नही देखा।
और आज इतने सालों बाद यहाँ अमर को देख के रीना के जख्म हरे हो गए।दोनों जैसे पत्थर की शिला हो गयी। रीना वहाँ से तेज कदमो से भागते हुए कार के पास आ गयी।पीछे से सरला जी भी अपनी बहू के पास आयी।उस पांच मिनट में उनके पुराने घाव जो ताजा हो गए थे।
तभी सुकन्या ने आकर कहा "माँ ! क्या हुआ? आप रो क्यों रही है।"
तब सरला जी ने कहा" कुछ नही बेटा तुझे तो पता है ना तेरी माँ कितनी भावुक है। बात बात में रोती है।" तू चल मैं ले के आती हूँ।"
"अच्छा जल्दी आ जाओ सभी को खाने के लिए बोल दिया है।"
"रीना मैं समझ सकती हूं बेटा तेरे दर्द को । लेकिन अब समय पुराने जख्मों को हरा करने का नही उनसे आजाद होने का हैं। अपनी पुरानी खराब यादों को भूल जा। और आगे बढ़ के अपनी खुशियों को समेट ले बेटा।"
रीना आज सरला जी को देख रही थी।
फिर उसने सरला जी से कहा"मां !मुझे माफ़ कर दीजिए। आप को मेरी वजह से अपने बेटे से दूर रहना पड़ा। तब भी और आज भी आप मेरे साथ ही खड़ी थी और हैं"।
"नहीं रीना! तुमने उसे मुझसे दूर नही किया। बल्कि वो खुद दूर हुआ। पैसे और सपने के लालच में वो अपनो से दूर हुआ। और माँ तो अपने बच्चों के साथ हरदम खड़ी रहती हैं। मैंने तुम्हें दिल से अपनाया था। ना कि जुबान से बेटा।"
"अब चलो! और अपने अतीत को बताओ। कि तुम्हें उसके होने ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।"
जिस बेटी को अमर ने पलट के देखा नही था आज अमर की नजरें सुकन्या को देख रही थी और कान से सबसे उसकी तारीफ सुन के मन ही मन गौरवान्वित हो रहा था। मन हो रहा था कि बिटिया को गले लगा ले। लेकिन सुकन्या की यादों में तो उसके पिता मर चुके थे।सभी कार्यक्रम खत्म होने के बाद जाते वक्त अमर ने अपनी मां को आवाज़ दी "माँ।"
सरला जी के कदम जैसे थम गए। पलट के देखा तो पीछे अमर खड़ा था।
"माँ कम से कम ये तो पूछ लिया... होता ।कि मैं यहाँ कैसे?और क्यों आया? अपने बेटे से इतनी नफ़रत।"
"नमस्ते! शायद आपको कोई गलतफहमी हुई हैंमै आपकी माँ नहीं हूं। मेरा बेटा मेरी बहु है। और जिसे मैंने जन्म दिया वो अब इस दुनिया मे नही है। और दूसरी बात सबको अपने कर्मो की सजा तो भुगतनी पड़ती है।आज नही तो कल। वैसे ये आश्रम अच्छा है। आप सबका पूरा ख्याल रखा जाएगा। मेरी पोती आती रहती है यहाँ समाज सेवा के लिए। अच्छा चलती हूं"
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं आपको।
सरला जी के पीछे खड़ी रीना को आज एक बार फिर अपनी सास पर गर्व हुआ। उसने कहा मां अगर दुनिया मे हर सास आप के जैसी हो जाये। हर बहु को आप जैसी सास मिल जाये तो। कभी भी बेटियां बोझ नही लगेंगी।
दोस्तो उम्मीद करती हूँ मेरी ये कहानी पसंद आएगी। कोई त्रुटि हो तो माफी चाहूँगी।