Ragini Ajay Pathak

Inspirational Others

4.5  

Ragini Ajay Pathak

Inspirational Others

औरत भोग की वस्तु नहीं होती।

औरत भोग की वस्तु नहीं होती।

10 mins
528


Cover Image Credit to Ryderwear



"जीयें तो जीयें कैसे हाय बिन आपके, लगता नहीं दिल मेरा" 


गाने को गुनगुनाती रुचिका पति राजेश के लिए ऑफिस पहन कर जाने वाले कपड़े आलमीरे से निकाल रही थी कि तभी तौलिए में लिपटा राजेश बालो को दूसरे टॉवल से पोंछते हुए बाथरुम से निकला, तो सामने रुचिका को देखते गुस्से से बड़बड़ाने लगा ।

गीत गुनगुनाती रुचिका खामोश हो गयी और उसके चेहरे पर उदासी छा गयी। टॉवल को बेड पर गुस्से में फेंकते हुए राजेश ने रुचिका की ओर घूरते हुए देखा तो रुचिका ने नजरें झुका ली ।

"नाश्ता तैयार हुआ" राजेश ने गुस्से में अपनी गरजती हुई आवाज में उससे पूछा ।क्योंकि उसका गुस्सा अपनी चर्म सीमा पर था।

"हम्म !" उसे रुचिका ने संक्षिप्त सा जवाब दिया ।

"अब मेरे सिर पर ही खड़ी रहोगी या कमरे से बाहर भी जाओगी। जाओ जाकर नाश्ता निकालो मुझे ऑफिस के लिए देर हो रहा है"राजेश ने गुस्से में कहा।


राजेश की बात सुनते रुचिका की आंखों में आंसू आ गए....वो नजरें नीचे किये बिना कुछ बोले चुपचाप कमरे से बाहर आ गयी। सामने हॉल में सोफे पर बैठे पेपर पढ़ते रुचिका के ससुर आलोक जी सब देख सुन रहे थे लेकिन न्यूज़ पेपर से अपना चेहरा छुपा कर अंजान बनने का नाटक कर रहे थे।

थोड़ी देर बाद राजेश तैयार होकर कमरे से बाहर आया, सामने टेबल पर राजेश ने जैसे ही अपना नाश्ता देखा फिर गुस्से से चिल्ला उठा।

"आलू के परांठे"

गुस्से से प्लेट पीछे सरकाते हुए राजेश तैश में बोला, "तुम ही खाओ, मुझे नहीं खाना सुबह सुबह इतना ऑयली "

लेकिन रुचिका के जुबान पर फिर वही खामोशी। चेहरे पर नाराजगी या गुस्से का कोई भाव नहीं, उदासीन वो उसकी बातों को सुनकर वहाँ से वापिस चली गयी। जिसे देखते राजेश गुस्से से आग बबूला हो गया।

"गुस्से में अपना बैग उसने उठाया और बिना टिफिन लिए ऑफिस के लिए निकल गया"

रुचिका को चुपके से आंसू पोंछते, हाथों में राजेश के लिए टिफिन का डब्बा लिए, अपनी बहू को यूं दुखी खड़ा देखकर आलोक जी ने कहा," बहू तुम टिफिन रख दो,मैं ले जाकर पहुंचा आऊंगा, मुझे कुछ काम से उस तरफ जाना है।"

रुचिका ने सहमति में सिर हिलाया और वहाँ से चुपचाप चली गयी। घर के बाकी काम समेटने।

रुचिका और राजेश की लव मैरिज शादी चार साल पहले ही हुई थी रुचिका ने एक साल पहले दो जुड़वां बच्चों को जन्म दिया था। गर्भवती होने के बाद से ही रुचिका औऱ राजेश में मनमुटाव शुरू हो गया था जो बच्चे होने के बाद बहुत ही बढ़ गया था।


टिफिन लेकर आलोकजी राजेश के ऑफिस पहुंचे तो उन्हें देखकर राजेश ने कहा, "बाबूजी आप क्यों परेशान हुए, मैं कैंटीन में खा लेता?"

"हाँ जानता हूं राजेश! लेकिन आज मुझे इस रास्ते पर कुछ जरूरी काम था और तुम से भी अकेले में कुछ जरूरी बात करनी थी।" आलोक जी ने कहा

राजेश ने कहा,"अरे मुझे सुबह आप ने बता दिया होता तो मैं ऑफिस के बाद आपका काम कर देता और बात तो हम घर पर भी कर सकते थे।"

तभी आलोक जी ने राजेश की बात को बीच में काटते हुए कहा," घर पर बात नहीं हो सकती थी इसीलिए तो यहाँ आया , टिफिन के बहाने ही सही , इसी बहाने बात भी हो जाएगी, क्या तुम अपने बिजी समय में से अपने पिता के लिए कुछ समय निकाल सकते हो"

तो राजेश ने कहा, "अरे! बाबूजी आप कैसी बातें कर रहे है। मेरे पास आपके लिए हमेशा समय है आप का बेटा हर समय हाजिर है आपके लिए....आइये चलते हैं बताइए कहां चलना है? और आप क्या कहना चाहते हैं।"

राजेश आलोक जी को लेकर एक रेस्टोरेंट में गया। कुर्सी पर बैठकर उसने कहा, "बोलिये बाबूजी"

आलोक जी ने कहा, "कैसा है बेटा !"

"मतलब, ये कैसा सवाल है बाबूजी?"

"मैं बिल्कुल ठीक हूँ, मुझे क्या हुआ ?रोज ही तो देखते हैं आप मुझे" राजेश ने खुद को संयत करते हुए जवाब दिया ।

आलोकजी के सवालों से राजेश के मन में उथल पुथल मच गयी।

"और बहू कैसी है?"

"बाबूजी, ये कैसा सवाल है क्या यही सब पूछने के लिए आप मुझे यहाँ लेकर आये। सब तो आपके सामने ही रहते है। उसको क्या होना है जैसी थी वैसी ही है?


आलोक जी ने कहा, "गलत जवाब! बहू जैसी थी वैसी ही नहीं है ,क्योंकि जहाँ तक मुझे याद है जब तूने मुझे रुचिका से पहली बार मिलाया था तब उसमें एक अलग ही आत्मविश्वास और चहक थी बहू जब ब्याह कर आई थी उसके चेहरे पर हमेशा मुस्कान खिली रहती थी, उसकी हँसी और प्यारी बातों से घर गुलजार रहता था घर में बहू के आने के बाद मेरे जीवन मे बेटी की कमी पूरी हो गयी थी लेकिन अब तो वो दिन भर मुरझाई हुई रहती है। घर की सारी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाती है। लेकिन अब वो ना पहले की तरह हँसती है ना बोलती है। वक्त के साथ बहू में बहुत बदलाव आ गये हैं, अब कुछ भी पहले जैसा नही रहा!"

अच्छा! तो मैडम अब आपका भी ध्यान ठीक से नहीं रखती हैं, अब तक तो सिर्फ मेरी पसंद नापसंद का ध्यान नहीं रखती थीं अब तो मैं इस औरत से पूरी तरह से परेशान हो गया हूँ अब तो कोई ना कोई रास्ता निकालना ही होगा।

राजेश के मन में चल रही सारी उमड़ घुमड़ एक ही झटके में उबल पड़ी । और उसने अपने मन मे भरी सारी कड़वाहट आलोक जी के सामने निकाल दी।

आलोक जी धैर्यपूर्वक और ध्यानपूर्वक राजेश की सब बातें सुन रहे थे और फिर पूछा -

"और तू ,तू नहीं बदला क्या ?सच बताना क्या तू पहले जैसा ही है? क्या तू पहले की तरह ही अब भी मुझसे रुचिका के लिए कभी झूठ बोलता है? क्या तू मेरा कभी ख्याल रखता है ? अच्छा बता मेरी दवाइयां कितनी बची हैं? मेरा शुगर लेवल और बी पी कितना है? "आलोकजी ने कहा


"पापा !!!" राजेश को कोई जवाब नहीं सूझ रहा था।

तभी आलोक जी ने गहरी आवाज में अगला प्रश्न दागा-

" अच्छा चल ये बता तेरे दोनों बच्चों को कौन सा टीका लगना है और कितनी तारीख को?"

राजेश अवाक नजरों से आलोक जी की तरफ एक टक देखने लगा। तो आलोक जी ने कहा ," मुझे यूं देखना बन्द कर और मेरे सवालों का जवाब दे"

आखिरी बार कब तू बहू को अपने साथ घुमाने, सिनेमा दिखाने या पहले की तरह शापिंग कराने लेकर गया था"

"पापा मेरे पास इन सब कामों के लिए टाइम ही नहीं है, और ये सब रुचिका की जिम्मेदारी है मेरी नहीं... औरत वो है मैं नहीं ,इसलिए गृहस्थी की ये सारी जिम्मेदारी भी उसी की हुई, मां भी तो करती ही थी ना । आपको भी तो कभी कोई मतलब नहीं होता था घर के कामों से" राजेश ने कहा

"बेटा, तू सही कह रहा है ,तेरी मां भी करती थी मैं भी तेरी तरह इसी दौर से गुजरा हूँ। इसलिए तुझे समझाने आया हूं कि मेरी तरह कही तू भी अपनी जिम्मेदारियों को समझने में देर ना कर दे । क्योंकि जब तक मुझे बात समझ में आती तब तक तेरी मां मुझसे बहुत दूर जा चुकी थी । इतना कि मैं चाह कर भी उसे ना वापिस ला सकता था ना ही अपनी गलतियों की माफी मांग सकता था । काल के गाल में तब तक तुम्हारी माँ समा चुकी थी ।मेरे और तेरी मां के बीच भी ये चुप्पी की खाई पनपी थी, दूरियाँ इतनी बढ़ गई कि, मैं अपने पुरुष होने के अहम में कभी भी उसकी चुप्पी में छुपे अपने हार को समझ ही नही पाया। मुझे तो लगता था कि मेरे अंदर का पुरुष इतना मजबूत है कि ये औरत मुझसे डर कर चुप चाप घर के सारे काम करती है। लेकिन देर से समझ आया कि वो डर नहीं था बल्कि उसने तो मेरा मानसिक रूप से त्याग कर दिया था पर समय रहते मैं ये कभी नही समझ पाया, मेरी लापरवाही की वजह से उसे कैंसर हो गया था लेकिन जब तक हमें ये बात पता चलती तब तक बहुत देर हो चुकी थी तेरी माँ के आखिरी समय में कहे आखिरी शब्दों ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया। उसके जाने के बाद आज मुझे हर एक पल अपनी गलतियां याद आती हैं। तो मन मसोस कर रह जाता हूँ। ।"


"क्या !!!!" राजेश जैसे पलक झपकाना ही भूल गया!

"बेटा बच्चे होने के बाद पत्नी एक माँ हो जाती है, जिसके ऊपर घर ,परिवार ,समाज और बच्चों की दोहरी जिम्मेदारी आ जाती है। इन सब जिम्मेदारियों से भरी जिंदगी जीते जीते एक पत्नी जो पहले एक अल्हड़ सी नादान लड़की थी कही खो सी जाती है। अपनी पसंद ना पसंद सब भूलकर जिंदगी जो जीती है।"

और हम पति शायद इस बात को उतनी गहराई से कभी महसूस ही नहीं कर पाते, उसके जज्बातों को कभी समझ नहीं पाते, क्योंकि हमें ये बात कभी समझाई या बतायी ही नहीं जाती। हमें तो बस ये बताया जाता है कि बीबी लेकर आ जाओ जो घर परिवार की जिम्मेदारी उठा ले । दुनिया भर के पुरुष रूपी झूठे अहंकार हमारे अंदर भर दिए जाते है सबसे जरूरी और अहम बात जो बतायी जानी चाहिए कि गृहस्थी पति पत्नी दोनों की समान जिम्मेदारी होती है। और पत्नी की खुशियों की जिम्मेदारी हमें ना ही सिखायी जाती है ना बतायी जाती है ।बेटा जबकि एक पत्नी को तो बस अपने हिस्से का समय चाहिए होता है, जब वो अपने मन ही हर बात बिना की संकोच और लाग लपेट के सीधे कह सके और कोई राय सलाह देने की बजाय उन्हें सिर्फ सुन ले।!"

"पापा आप क्या कहना चाहते है!!!"

"बेटा तुझसे शादी करने के लिए रुचिका ने अपने माता पिता से बगावत कर ली। जिसकी वजह से मायके से उसका रिश्ता खत्म हो गया है। सारी रिश्तेदारी और दोस्ती यारी सब का सब तो तुझे ही बहू ने मान लिया। तुझसे शादी करके। एक साथ जुड़वा नवजात बच्चों की जिम्मेदारी अकेले संभालना कोई मामूली बात नही बेटा। तेरी मां जिंदा होती तो शायद थोड़ी मदद हो जाती लेकिन जब ना तेरी माँ अब इस दुनिया मे है ना रुचिका की माँ का साथ उसके साथ है तो अब बहू को किसका सहारा है और फिर, तू भी उसका साथ नहीं देगा तो कौन देगा बेटा!!!!!"


पापा की बातों ने राजेश के मन को अंदर तक झकझोर दिया। आज उसके मन से रुचिका के प्रति बने उदासी के घने बादल छटकने लगे।

" पापा मैंने कभी इस पॉइंट ऑफ व्यू से तो सोचा ही नहीं!!!!" राजेश ने नजर झुकाते हुए कहा

आलोक जी ने कहा "बेटा! प्रेम तो एक गहरा सागर है, इस सागर में जितना डूबोगे उतना सुख पाओगे!"

और इसे पाने के लिए संयम, समर्पण की जरूरत होती है। औरत कोई ब्याह कर लायी हुए भोग वस्तु नहीं होती जिसे जरूरत के हिसाब से इस्तेमाल किया जाए "

राजेश चुपचाप अपने पिताजी की बातों को नजरें झुकाएं सुनता रहा। अपनी बात पूरी करने के बाद आलोक जी ने कहा, "अब चलता हूँ बेटा, उम्मीद है कि मेरी बात तुमको समझ आ गयी होगी।

आज राजेश ऑफिस से घर जल्दी आ गया। रुचिका को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था कि राजेश की गुस्से से घूरती निगाहें आज शरारत से उसे देखकर इशारे कर रही थी। असमंजस से भरी रुचिका ने शर्म से अपनी निगाहें नीचे कर ली और चुपचाप रसोई में चाय बनाने चली गयी।

तभी रुचिका को अपनी कमर पर हाथ के स्पर्श का एहसास हुआ, जैसे ही रुचिका पलटी पीछे राजेश को देखकर वो सन्न रह गयी। तभी राजेश ने उसे अपनी बांहों भर लिया। और कहा ,"तुम्हारी आज रसोई से छुट्टी ,तुम कमरे में जाओ मैं थोड़ी देर में आता हूँ।"

लेकिन रुचिका अब भी चुपचाप ही थी। थोड़ी देर में राजेश कमरे में दो कप चाय लेकर आया। देखा तो दोनों बच्चे सो रहे थे। रुचिका को चाय का कप पकड़ाते हुए राजेश ने कहा, "रुचि तुम कुछ बोल क्यों नहीं रही? कुछ तो बोलो, ताकि मुझे पता चले कि तुम्हारे मन में क्या चल रहा है? जानता हूँ... मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ। लेकिन अब मैं अपनी गलतियों को सुधारना चाहता हूं। और इसमें मुझे तुम्हारा साथ चाहिए। क्योंकि मुझे अपनी हँसती मुस्कुराती हुए रुचि वापिस चाहिए।"


राजेश की बातें सुनकर रुचिका के आँखों से आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। उसे रोता हुआ देखकर राजेश ने उसे अपने सीने से लगा लिया पति का प्रेम रूपी आलिंगन पाकर वो राजेश के गले लिपट कर खूब रोई। तभी दोनों बच्चे भी उठकर रोने लगे तो राजेश ने कहा, "अरे यार ये तो तीन बच्चे एक साथ रोने लगे ,अब मैं कैसे चुप कराऊंगा, ये तो सबसे मुश्किल काम है। तुम लोग यूं ही रोओगे तो अब तो मैं भी रोने लगूंगा"

राजेश की इतनी बातें सुनते ही रुचिका को हँसी आ गयी और दोनों बच्चों को दोनों ने गोद में उठाकर हँसते हुए चुप कराने लगे।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational