Saroj Verma

Romance

4.5  

Saroj Verma

Romance

अर्पण--भाग (१३)

अर्पण--भाग (१३)

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इधर राज और श्रीधर का आए दिन मिलना बरकरार रहा, आज दिन दोनों ही शाम को कहीं सैर के लिए निकल जाते हैं या कि रेस्तरां में डिनर करते, तो कभी किसी नुमाइश में चले जाते, कमलकिशोर जब भी राज से कहीं सैर के लिए कहता था तो वो वक़्त नहीं है का बहाना बनाकर टाल जाती, इससे कमलकिशोर का मन खिन्न हो जाता।

  फिर एक शाम शहर की सड़कों के बीचों बीच राज की मोटर चली जा रही थीं, रेडलाइट पर राज ने मोटर रोकी तभी उसी वक़्त कमलकिशोर भी अपनी मोटर में राज की मोटर के बगल में जा खड़ा हुआ, उसने देखा कि उस मोटर में राज अकेली नहीं है उसके संग श्रीधर बाबू भी हैं, राज ने कमलकिशोर को अनदेखा करते हुए हुए ग्रीनलाइट होने पर अपनी मोटर आगे बढ़ा दी, अब कमलकिशोर भी कहां हार मानने वाला था, उसने राज का पीछा करना शुरू कर दिया, राज ने मोटर की रफ़्तार बढ़ा दी और किसी अंजान सड़क पर चल पड़ी, श्रीधर ने राज से ये सब करने का कारण पूछा तो वो बोली___

कमलकिशोर हमारे पीछे पड़ा है और कहीं उसने हमें साथ में देख लिया तो दीदी को ना बोल दे।

श्रीधर बोला___

घबराती क्यों हो ? तब तक लोगों से भागोगी, एक ना एक दिन तो सच्चाई सामने आनी है, तुम सड़क के किनारे मोटर रोक दो और अगर कमलकिशोर तुमसे कुछ कहना चाहता है तो सुन लो , उसमें हर्ज ही क्या है ?

आप समझते क्यों नहीं ? श्रीधर बाबू! वो सबको बता देगा, राज बोली।

तो बताने दो, उसके मन में क्या है ?ये भी तो पता चले, श्रीधर बोला।

जैसी आपकी मर्जी और इतना कहकर राज ने मोटर रोक दी, मोटर रूकते ही कुछ ही देर में किशोर की मोटर भी आ पहुंची और उसमें से किशोर उतरकर राज के पास आकर बोला____

   क्या हुआ राज ! तुम मुझसे भाग क्यों रही हों ? मुझे पता चल चुका है कि तुम शायद श्रीधर बाबू से मौहब्बत करती हो।

श्रीधर और राज भी मोटर से बाहर उतरे तब राज बोली___

इसी बात से तो डरती थी किशोर कि कहीं तुम्हें इस बात का पता ना चल जाए तो तुम मुझे ग़लत समझ बैठो।

ग़लत तो मैं अभी तक समझ रहा था कि तुम मुझे पसन्द करती हो, मुझे ये मालूम ना था कि तुम्हारे दिल में मेरे लिए जरा सी भी जगह नहीं है, चलो अच्छा हुआ आज मेरी ये गलत़फहमी हमेशा के लिए दूर हो गई और तुम भी, किशोर बोला।

ऐसा ना कहो किशोर!मेरा दिल जानता है कि मैंने तुम्हें सिवाय एक अच्छे दोस्त से ज्यादा कुछ नहीं समझा, मेरे दिल में तुम एक अच्छे दोस्त की अहमियत रखते हो, राज बोली।

अब इन बातों का कोई फ़ायदा नहीं राज!आज मेरे दिल के इतने टुकड़े हुए हैं कि शायद वो टुकड़े कभी जुड़ पाएं, अगर वक़्त के साथ साथ वो टुकड़े जुड़ भी गए तो दरारें तो कभी भी ना भरी जा सकेंगीं, जब इन्सान का भ्रम टूटता है ना तो भ्रम के साथ साथ वो इन्सान भी टूट जाता है, यही आज मेरे साथ हुआ है, किशोर बोला।

ना! किशोर ! भगवान के लिए ऐसी बातें ना करो नहीं तो मेरा सीना छलनी हो जाएगा, राज बोली।

सीना तो आज मेरा छलनी हो रहा है, तुमसे मौहब्बत करने की मुझे इतनी बड़ी सज़ा मिलेगी मैं ये जानता होता तो मैं तुमसे कभी दिल ना लगाता, किशोर बोला।

मुझे माफ़ कर दो किशोर! मैं तुम्हारी गुनाहगार हूं, राज बोली।

तुम माफ़ी क्यों मांगती हो राज!गुनाह तो मैंने किया है तुमसे दिल लगाकर उसी की सज़ा भुगत रहा हूं, किशोर बोला।

किशोर! दिल पर भला किसका इख्तियार है, किस पर कब आ जाएं, क्या पता ? मुझे भी पता नहीं चला कि मैं कब श्रीधर बाबू को अपना दिल दे बैठी, राज बोली।

कोई बात नहीं राज!मुझे इसका कोई शिकवा नहीं कि तुम श्रीधर बाबू को चाहती हो और हमेशा उनको ही चाहते रहना, मैं ईश्वर से प्रार्थना करूंगा कि आप लोगों का प्रेम ऐसे ही बना रहें, आपलोंगों की जोड़ी को किसी की नज़र ना लगे, मैं जल्द ही विलायत लौट जाऊंगा, अब मैं यहां रह कर भी क्या करूंगा ? जिसके लिए मैं यहां टिका हुआ था वो तो अब पराई हो गई है, वहां विलायत में कोई तुम जैसी अगर मिल गई तो इत्तिला कर दूंगा, वैसे तुम जैसी मिलना तो नामुमकिन है तुम तो करोड़ों में एक हो, अब मैं चलता हूं और इतना कहकर किशोर जाने लगा।

  जरा सुनिए तो किशोर बाबू! श्रीधर बोला।

अब कहने सुनने के लिए कुछ बचा ही नहीं है, बस आपसे इतनी विनती है कि राज को हमेशा खुश रखने की कोशिश कीजिएगा , वैसे बड़ी वाले किस्मत वाले हो श्रीधर बाबू, मुझे आज आपकी किस्मत से रश्क हो रहा है, लेकिन सिवाय रश्क के मैं कुछ कर भी तो नहीं सकता, ये भी मेरी बेवकूफी है....

नमस्ते!और इतना कहकर किशोर मोटर में जा बैठा, उसने मोटर स्टार्ट की और चला गया।

श्रीधर और राज उसे जाते हुए देखते रहे।

  उस रात तीनों को नींद नहीं आईं, तीनों ही परेशान थे, सबसे ज़्यादा किशोर और दो तीन रोज़ बाद राज़ को ख़बर मिली कि किशोर वापस विलायत लौट गया है।

ये सुनकर राज को बहुत कष्ट हुआ, ये बात जब नन्दिनी को पता हुई तो उसने राज से पूछा ___

क्यों राज! तुम्हें किशोर ने उसके जाने की ख़बर दी थी, पता नहीं अचानक क्यों चला गया, कमलकान्त बाबू को भी उसने नहीं बताया।

जी ! दीदी!शायद उसे कोई जुरूरी काम था, राज बोली।

अच्छा तो तुमसे कहकर गया है, नन्दिनी ने पूछा।

तब ठीक है, नहीं तो कमलकान्त बाबू खामखां में परेशान हो रहे थे कि ना जाने क्या बात है ? कि किशोर अचानक विलायत चला गया, अगर ये बात है तो मैं उनसे कह दूंगी, नन्दिनी बोली।

  ऐसे ही सबका वक्त गुज़र रहा था, किशोर कभी कभी राज को विलायत से ट्रंककाॅल करता रहता , धीरे-धीरे उसके दिल से अब राज की यादें धुंधली हो चुकीं थीं क्योंकि वहां उसके साथ पढ़ने वाली एक विलायती मेम ने उसे अपना साथी चुन लिया था, वो राज सी तो नहीं थी लेकिन हां अच्छी थी, ये ख़बर उसने जब राज को बताई तो राज के दिल को बहुत तसल्ली हुई।

 ये बात उसने श्रीधर से भी कही, ये सुनकर श्रीधर को भी अच्छा लगा।

अब नन्दिनी का मिल में लोगों से बहुत ही सौम्य व्यवहार हो गया था, अब वो पहले की तरह लोगों पर नहीं भड़कती थी, सबसे अच्छा सुलूक करती, उसका व्यवहार देखकर अब मिल में लोग मन लगाकर काम करने लगे थे, इसलिए मिल की तरक्की भी बढ़ गई थी, ये देखकर देवनन्दिनी ने सबकी तनख्वाह में बढ़ोत्तरी कर दी, इससे मिल के कर्मचारियों में काम करने का उत्साह और भी बढ़ गया।

   ये सब देखकर श्रीधर को भी अच्छा लगा और एक शाम को वो नन्दिनी के केबिन में पहुंचा, तब नन्दिनी घर जाने की तैयारी कर रही थी, उसका सब समान पैक हो चुका था, बस घर के लिए निकलने वाली थी, तब श्रीधर ने नन्दिनी से कहा....

मैं आपसे ऐसी ही उम्मीद रखता था, देखा आपने जब से आप खुश रहने लगीं हैं तब से आपने भी सबको खुश रखना शुरू कर दिया है, यही तो मैं चाहता था।

जी!श्रीधर बाबू!ये तो सब आपकी बदौलत ही मुमकिन हो पाया है, नहीं तो गुस्से और खराब स्वाभाव के कारण मुझे सब बुरा कहते थे, मुझे तो सबने खड़ूस का ख़िताब़ दे रखा था लेकिन आपने ही तो समझाया कि मुझे कैसे रहना चाहिए, मुझे तो आपका शुक्रिया अदा करना चाहिए, देवनन्दिनी बोली।

नहीं देवी जी! ये तो आपकी इच्छाशक्ति है जो आपने ये कर दिखाया, श्रीधर बोला।

ऐसी बातें ना करें श्रीधर बाबू! ये तो आपका विश्वास था मुझ पर जो जीत गया, देवनन्दिनी बोली।

तब श्रीधर ने सोचा ये अच्छा मौका है आज पूछ ही लेता हूं, इनके मन की बात,

 ये सब तो ठीक है लेकिन मुझे आपसे कुछ और भी जानना था, श्रीधर बोला।

जी कहिए! क्या जानना चाहते हैं आप मुझसे ? देवनन्दिनी बोली।

जी मैं....जानना...चाहता...था कि, कैसे पूंछू ? कुछ समझ नहीं आ रहा, श्रीधर बोला।

संकोच मत कीजिए, श्रीधर बाबू! जो पूछना है दिल खोलकर पूछिए, नन्दिनी बोली।

जी, क्या कमलकान्त बाबू से आपका रिश्ता दोस्ती से भी आगे का है या मुझे ही कोई ग़लतफहमी हो रही है ?श्रीधर ने संकोच करते हुए पूछा।

जी! वो तो सालों से चाहते हैं कि ये दोस्ती का रिश्ता शादी के बंधन में तब्दील हो जाए लेकिन ....ये कहते कहते नन्दिनी रूक गई....

जी आगे कहिए, रूक क्यों गईं ? लेकिन.....आगे क्या ?श्रीधर ने पूछा।

लेकिन मैं ही इस रिश्ते से रजामंद नहीं हूं, नन्दिनी बोली।

लेकिन क्यों ? आपको क्या एतराज़ है ? कमलकान्त बाबू इतने बड़े डाक्टर हैं, दौलत और शौहरत उनके कदम चूमती है, फिर क्या बात है ? मैं कुछ समझा नहीं, श्रीधर बोला।

बात ये है कि मैं किसी और को पसंद करती हूं, नन्दिनी बोली।

क्या मैं ये जान सकता हूं कि वो खुशनसीब कौन है, श्रीधर ने पूछा।

जी! अब कैसे कहूं ? नन्दिनी बोली।

जी कहिए ना! श्रीधर बोला।

जी! वो आप हैं, जिसने मेरे दिल को गुलाम बना रखा है और इतना कहकर नन्दिनी अपने कमरे से शरमाते हुए निकल कर घर जाने के लिए मोटर में जा बैठी।

 ये सुनकर श्रीधर के पैरों तले से जमीन खिसक गई और वो वहीं पड़ी कुर्सी पर बैठ गया, कुछ देर तक उसके मन में उथल-पुथल होती रही, कुछ देर बाद जब उसका मन शांत हुआ तो उसने टेबल पर पानी से भरा गिलास उठाया दो घूंट पानी पिया, जैसे ही उठने को हुआ तो मुंशी जी नन्दिनी के केबिन का ताला बंद करने आ पहुंचे क्योंकि वो ही सालों से छुट्टी होने पर सबके जाने के बाद सारी मिल को अपनी निगरानी में बंद करवाते आएं हैं फिर पूरी तसल्ली होने के बाद ही वो अपने घर का रूख़ करते हैं....

  मुंशी जी ने श्रीधर देखा तो बोले____

अरे, श्रीधर बाबू! आप अभी तक घर नहीं गए।

जी बस जा रहा था, श्रीधर बोला।

क्या कोई परेशानी है आपको ? क्या मैं आपकी परेशानी की वज़ह जान सकता हूं, मुंशी जी ने पूछा।

जी, ऐसा कुछ नहीं हैं, अब मैं चलता हूं और ऐसा कहकर श्रीधर घर की ओर रवाना हो गया, मिल से बाहर आकर उसने एक तांगा पकड़ा और कुछ देर बाद वो घर पहुंच गया।

  घर पहुंचा तो सुलक्षणा को श्रीधर कुछ परेशान सा दिखा, श्रीधर को परेशान देखकर सुलक्षणा घर के किवाड़ बंद करना भूलकर श्रीधर के पीछे-पीछे आ गई और उसने श्रीधर से उसका कारण जानना चाहा, श्रीधर ने पहले तो ना-नुकुर किया लेकिन बाद में सब बता दिया.....

लेकिन जब श्रीधर ये सब बातें सुलक्षणा को बता रहा था तो रोजमर्रा की तरह राज उनके घर जा पहुंची, उस दिन उसकी मोटर खराब हो गई थी इसलिए मैकेनिक के पास छोड़कर वो तांगा पकड़कर श्रीधर के घर पहुंच गई.....

लेकिन उसे नहीं पता था कि आज वो ऐसी सच्चाई से वाक़िफ होने वाली थी जो उसके प्रेम के सपने को हमेशा हमेशा के लिए तोड़ देगा, जो खूबसूरत ख्वाब वो महीनों से बुन रही थीं, वो आज टूटने वाला था, श्रीधर की बात सुनकर उसे धक्का सा लगा।

और ये बात सुनने के बाद वो श्रीधर से कुछ बोलें बिना और उससे मिले बिना ही चुपचाप निकल आई और तालाब किनारे बैठकर खूब फूट फूटकर रोई, जब उसके मन का गुबार निकल गया तो वो वापस घर आ गई।

क्रमशः____


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