अपराधी से प्रेम
अपराधी से प्रेम
" मुझे तुमसे प्रेम हुआ था, जो हमेशा रहता भी। तुम्हारे व्यक्तित्व, तुम्हारी सोच से प्रेम हुआ था। अब जब पता चल गया कि व्यक्तित्व एक दिखावा था तो समझूंगी जिससे प्रेम किया वो मर चुका है। मरे हुए से भी प्रेम करना कोई अपराध नहीं, पर एक अपराधी से प्रेम करना ; एक डरावना ख़्वाब है, तुम वही डरावने ख़्वाब हो"- सुगंधा ने कहा।
सुगंधा बहुत अंतर्मुखी स्वभाव की लड़की थी। जो सबके सामने अपना दिल नहीं खोलते वो कागज़ पर उसे ऐसे उकेरते है कि पढ़ने वाला खुद को उसमें जीने लग जाए। उसके किरदारों को जीने लग जाए।
आज कल डिजिटल जमाना है तो, फेसबुक पेज वो कागज़ बन गया है।
पहले कागज़ पर लिखते थे, फिर उसे छुपाने के लिए तन्हा कोना ढूंढते थे। जिसके लिए लिखा उसको भी हवा तक नहीं लगती थी कि कोई कहीं पर तुम्हे लिखते हुए जी रहा है।
अब जमाना बदल गया, लोग लिखते हैं और सब उस पर अपनी सोच अनुसार अच्छी, बुरी टिप्पणी भी करते हैं।
सुगंधा भी आज के ज़माने की थी। फेसबुक पर अपने दिल की बातें लिखा करती थी। काफी फॉलोअर्स भी थे।
पर एक शख्स हर पोस्ट पर कमेंट करता था। उसके दिल की हर परेशानी, हर क्यूं का जवाब वो जरुर देता था।
धीरे धीरे दोनो अपनी रचना में एक दूसरे को लिखने लगे।
सुगंधा अब प्रेम में थी, उसे अब तक ऐसा कोई नहीं मिला जो आजकल के प्रेमियों की तरह घूमने फिरने, मुलाकात से ज्यादा जज़्बात को अहमियत देता हो।
सुगंधा पूरी तरह उस एहसास में डूब चुकी थी, इतना की वो ज़िद्द कर बैठी की मुझे मेरे एहसासों को एक चेहरा देना है।
प्रसून नाम था उस शख़्स का। प्रसून मना करता रहा। प्रसून को डर था कि कहीं सुंगंधा भी उसे देखकर बाकी लड़कियों की तरह उससे घृणा ना करने लगे।
प्रसून ने बोल ही दिया -" मै दिखने मै बिल्कुल वैसा नहीं हूं जैसा तुम मुझे सोचकर बैठी हो। तुम अगर एक बार मुझसे मिली तो शायद दोबारा मिलना पसंद नहीं करोगी। मैं तुम्हे खोना नहीं चाहता ।"
सुगंधा -" मैंने प्रेम तुम्हारी सोच से किया है, जज्बातों से किया है । मुझे इसके अलावा किसी और चीज से कोई मतलब नहीं"
प्रसून को हमेशा से ही अपने सांवले रंग, दुबले पतले शरीर, चेहरे पर चेचक के छूटे हुए निशानों की वजह से घृणा का सामना करना पड़ा था। अब भी उसे यही डर था। उसकी इस हीनभावना ने उसे अंदर से इतना तोड दिया था कि वो औरत के अक्स से ही नफरत करने लगा था। उसे डर था उसके अंदर का शैतान कहीं सुगंधा को भी ना नुकसान पहुंचा दे।
सुगंधा प्रसून से मिली। सुगंधा को खुशी थी कि कोई उसे समझता है वो कोई सपना नहीं, हकीकत में कोई है।
सुगंधा से मिलकर तो प्रसून और भी असहज हो गया। प्रसून ने सोचा भी नहीं था कि सुगंधा इतनी खूबसूरत होगी। अब तो प्रसून के मन का डर और भी बढ़ गया।
उसने सुगंधा से उसका फोन लिया, उसे चैक किया कहीं उसकी ज़िन्दगी में कोई और तो नहीं। पूरी मुलाकात में वो बातें करने की बजाय बस उसके फोन के मैसेंजर को ही चैक करता रहा।
सुगंधा बस उसे देखकर मुस्कुराती रही, उसे पता ही नहीं था वो फोन में उसकी कोई कविता नहीं पढ़ रहा बल्कि अपने मन में गढ़ी हुई कहानियों का किरदार खोज रहा है।
पहली मुलाकात के बाद ही प्रसून ने बोल दिया मुझे तुमसे शादी करनी है, सुगंधा तो पहले ही तैयार थी।
सुगंधा ने कहा मेरे फाइनल एग्जाम हैं उसके बाद घर आ जाना मां बाबा के साथ।
प्रसून खुश था पर उसकी खुशी सुगंधा के चेहरे तक जाती और वो उदास हो जाता। इतनी सुंदर लड़की है और सिंगल कैसे?
कहीं इसके पास कोई दूसरा फोन तो नहीं? कहीं कोई दूसरी सिम हो ?
कहीं फेसबुक,वॉट्सएप पर कोई दूसरा अकाउंट ?
प्रसून बचपन की घृणा, और अपने पुलिस कि नौकरी में देखे केस में इतना उलझ गया था कि वो मानने को तैयार ही नहीं था ।
उसने सुगंधा को परखने के लिए जाने कितने फेक अकाउंट बनाए, अलग अलग नंबर से फोन किए।
अपनी नौकरी का फायदा उठाकर सुगंधा के नंबर को टेप कराया । कहीं कुछ नहीं मिला।
सुगंधा इस सब को अपने लिए उसकी फिक्र मानकर बस खुद पर इतराती रही ।
एक दिन सुगंधा को महसूस हुआ कोई उसका पीछा करता है, घर से कॉलेज, कॉलेज से घर। उसने प्रसून को भी बताया।
प्रसून ने कहा तुम्हारा वहम होगा। प्रसून को ये कहना ही था क्योंंकि वो प्रसून ही तो था जो उसके पीछे जाने किसको खोजने निकले था।
सुगंधा कॉलेज एक दिन बाइक से अाई, अपने मामाजी के बेटे के साथ।
प्रसून को ये बात गवारा नहीं हुई कॉलेज से बाहर आते ही, बिना सोचे सुगंधा का हाथ पकड़कर बोला -" मुझे पता था तुम भी और लड़कियों जैसी हो, चालबाज!!कौन था तेरा यार जो सुबह आया था ?"
सुगंधा जो कभी लड़कियों के साथ कैंटीन तक में भी नहीं बैठी, सबके सामने ये बातें उससे बर्दाश्त नहीं हुई। गुस्से में उसने अपने सब अकाउंट डिलीट कर दिए। नंबर ऑफ कर दिया।
शाम होने पर जब मां ने सुगंधा को जगाया तो उसे तेज बुखार था। मां ने दवाई दी। सुगंधा ने फोन ओन किया। 123 मिस्ड कॉल देखकर वो हैरान थी।
तभी फोन बजा। सुगंधा ने फोन उठाया।
सामने प्रसून था। उसका पारा सातवे आसमान पर था।
उसने बोला में 5 घंटे से तुम्हारे घर के पास वाली दुकान पर हूं। बाहर आओ और अपना फोन दो नहीं तो मैं घर आ जाऊंगा।
सुंगध डर गई, मां से पैन लेने जाने का बोलकर प्रसून को फोन दे अाई। प्रसून की लाल आंखें देखकर वो डर गई।
2 दिन कॉलेज भी नहीं गई। फिर फेसबुक को दोबारा चलाया तो देखा पासवर्ड बदला जा चुका था, ईमेल, फेसबुक सब ।
उसे पता था ये सब प्रसून ने किया होगा, वो अगले दिन कॉलेज के लिए निकली। मेट्रो स्टेशन के नीचे प्रसून था।
प्रसून -" बैठो!! अभी मेरे साथ ।"
सुगंधा घबराइ कहीं कोई देख न ले । मुंह पर दुपट्टा बांधकर बैठ गई।
प्रसून ने एक काफी शॉप पर बाइक रोक दी।
सुगंधा को फोन दिया और बोला मुझे पता है तुम्हारे पास कोई दूसरा फोन भी होगा।
सुगंधा रोई, खूब कसमें खाई।
तब जाकर प्रसून माना। तुम मेरी हो, मै तुम्हारे नजदीक किसी को देख नहीं सकता।
फिर दोबारा सुगंधा ने अपने प्यार के हाथों मजबूर होकर उसे माफ़ किया और पहले कि तरह बात होने लगी। अब उसके सब सोशल अकाउंट प्रसून ही चलाता था।
एक दिन सुगंधा कॉलेज से बाहर अाई तो हिंदी के प्रोफेसर ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए बोला - बधाई हो बेटा!! जोनल कॉम्पिटिशन में तुम्हारी रचना पहले स्थान पर अाई है। मै भूल गया था आज बताना। तुम्हे देखकर याद आया।"
प्रसून को कहां बर्दाश्त था। उसने फिर से अपनी वही हरकतें दोहराई और दो दिन बाद माफी मांगी।
सुगंधा जो कभी फूलों सी मुस्कुराती थी अब मुरझा चुकी थी।
ऐसे ही कभी रिक्शावाले को हंसकर 5 रुपए छुट्टे ना होने पर रखने को बोल दिया तो भी इल्जाम।
इतने इल्जाम की अब सुगंधा टूट चुकी थी, सब रचना बंद, पढ़ाई से दिल उठ गया, घर की चहल पहल; सब उसे अब डराते थे कहीं आस पास प्रसून ना हो। कहीं प्रसून गलत ना समझ ले।
अपनी इस हालत से बाहर आने का कोई रास्ता उसे नहीं दिखा तो उसने प्रसून के ऑफिस में शिकायत कर दी ।
वो अब इस सबसे पीछा छुड़ाना चाहती थी।
प्रसून ने वहां उसी पर झूठे इल्जाम लगाए, ये चरित्रहीन है । इसका जाने कितने लड़कों से चक्कर चल रहा है। दो के तो क्रेडिट कार्ड तक ये इस्तेमाल कर रही है।
सुगंधा को ये सब पता ही नहीं था कि उसके पासवर्ड, अकाउंट, फोन के साथ छेड़छाड़ के पीछे प्रसून की ये अपराधिक मानसिकता थी।
वो खूब रोई। किस्मत से डीसीपी साहब ने उसे समझा और उसकी आईडी से किए मैसेज से कंप्यूटर के आईपी एड्रेस का पता कराया तो पता चला ये सब प्रसून ने हो किया था।
डीसीपी साहब ने बिना परवाह किए सुगंधा को कहा -" इसको जोर से लगाओ चांटे। जितनी तकलीफ है उससे कहीं ताकत से। "
प्रसून पर डिपार्टमेंटल जांच के आदेश दे दिए।
सुगंधा ने प्रसून से कहा, तुम्हारी शक्ल से प्यार नहीं किया था ये भूल गए तुम !!
तुम्हारे व्यक्तित्व और सोच से किया था, जो की एक झूठ थी।
तुम अपराधी हो, मेरा प्यार मर चुका है। मरे हुए से प्यार किया जाता है, पर उतना ही की वो दूर रहे। ख़्वाब तक में ना आए ।
तुम तो एक बहुत बुरा ख़्वाब थे।
डीसीपी साहब ने खूब सराहा सुगंधा की हिम्मत को।
उसे अपना नंबर दिया कहीं दोबारा इसकी वजह से कुछ परेशानी हो तो मुझे बताना। अपने जैसी और लड़कियों को भी समझना इस जैसे अपराधिक मानसिकता वालों से कैसे लड़ना है?
इनके हाथों जाने कितनी लड़कियां ब्लैक मेल की जाती है और सुसाइड कर लेती है।
ज़रूर लिखो पर उसके किरदार को किसी अपराधी मत ढूंढना बेटा।।
सुगंधा की किस्मत और हिम्मत ने उसे बचाया।