अपने पराये
अपने पराये
सुधा आज सुबह से ही बहुत व्यस्त थी। बहुत दिनों बाद बेटी ससुराल से जो आ रही थी...हमेशा से कुछ ज्यादा ही व्यस्त थी आज, एक साथ कई काम करती हुई वह पति और कामवाली को हिदायतें भी देती जा रही थी। घडी की सुइयों के साथ सुधा के हाथ चलते ही जा रहे थे। दिमाग में सब पूर्व नियोजित था कि दामाद जी को चॉकलेट चाय पसंद है... खाना क्या बनेगा...बैठक में सब व्यवस्थित है कि नहीं... बेटी के कमरे में सब ठीक है कि नहीं...बेटी दामाद को तोहफे क्या देना है...आदि आदि । एक दो बार तो पति भी बोल उठे...अरे सुधा, तुम तो ऐसे कर रही हो जैसे कोई बाहर का व्यक्ति आ रहा हो। परन्तु सुधा कहाँ मानने वाली थी। पूरे घर में रूम फ्रेशनर छिड़क आई । कहीं कुछ कमी ना रह जाये... बहुत बड़े घर में जो ब्याही है बेटी । शादी के बाद पहली बार दामाद जी आ रहे हैं, स्वागत सत्कार तो उनके हिसाब का ही होना चाहिए । अचानक फ़ोन की घंटी घनघनाई... सुधा फ़ोन पर लपकी, उधर से आवाज आई "सुनो माँ... हम एयरपोर्ट से निकल गए हैं, तुम नाहक ही परेशान मत होना, इन्होंने कल ही फाइव स्टार होटल में ऑनलाइन रूम बुक करवा लिया था... शाम तक तैयार रहना, हम सब डिनर बाहर ही करेंगे और हाँ, पिताजी से कहना अच्छा सा कोई कोट सूट पहन लें...नहीं तो वो कुरता पायजामा छोड़ते ही नहीं औऱ..." सुधा के कानों में पति के शब्द गूँज रहे थे " कोई बाहर का व्यक्ति थोड़े आ रहा है।"