घरौंदा
घरौंदा
ठेकेदार...मिस्त्री...चौकीदार सभी का हिसाब चुकता कर मानस बहुत जल्दी अपने नए मकान में पत्नी बच्चों सहित आना चाहता था...बड़े ही धैर्य से वह दो साल में मकान बनवा पाया था। एक-एक वस्तु को देख परख कर उपयोगितानुसार सही जगह पर तैयार करवाया गया था।
आज मानस बहुत खुश था... हो भी क्यों ना...? आखिर जिंदगी भर की कमाई लगा दी उसने अपने परिवार को ये ख़ुशी देने में...बहुत बड़ा सपना होता है 'अपना घर'... बड़े प्यार से घर का नाम रखा गया ''घरौंदा"...
बस एक ही चीज खटक रही थी मानस को...बगीचे के दाहिने छोर पर वह बेतरतीब सा वृक्ष... तुरंत वह चौक से मजदूर ले लाया और कुछ ही समय में वृक्ष जमीन पर औंधा पड़ा था...बुलबुल पक्षी का घोंसला दूर छिटक गया और छोटे छोटे से सफ़ेद अंडे अनायास ही बिखर कर टूट गए...पक्षी युगल ने चीं..चीं..चीं..चीं..कर कोलाहल मचा दिया। इस बात से बेखबर मानस मजदूर को समझाने में व्यस्त था कि बगीचा कैसे पूरा साफ़ हो कि घर के आकर्षण में कोई कमी न रहे।