तिरंगा
तिरंगा
आज पिंकी सुबह जल्दी ही उठ गई...स्कूल में गणतंत्र दिवस पर गीत जो गायेगी। राष्ट्रीय त्योहारों पर पिंकी खूब खुश रहती थी। स्कूल में कार्यक्रम होता और मिठाई भी मिलती थी। सहेलियों के साथ मौज मस्ती और खेलना कूदना। गुनगुनाते हुए माँ से बोली- माँ बीस रुपये दो ना...
आज हम सब सहेलियां मिलकर कुछ खाएंगे और झण्डा भी खरीदेंगे। बीस रुपये लेकर पिंकी रास्ते भर गीत गुनगुनाते रही-"मेरी शान तिरंगा है, मेरी जान तिरंगा है..." स्कूल में कार्यक्रम बढ़िया रहा। सहेलियों संग पैदल चलते चलते समोसे और चॉकलेट खाकर वापस घर पहुँची...
हाथ में अजीब सी पोटली देखकर माँ बोली- ये क्या बीन लाई और पैसे ले गई थी ना ? कहाँ है झंडा ? क्या खाया सहेलियों के साथ?? माँ समोसे और चॉकलेट खाई पर झण्डा नहीं खरीदा। क्यों?? देखो माँ स्कूल से लौटते हुए पूरे रास्ते मे तिरंगे के टुकड़े और फटे तिरंगे पड़े थे... हाथ मे पोटली दिखाते हुए पिंकी बोली...माँ हमे तिरंगे का मान रखना चाहिए, ये कोई खेलने की वस्तु नहीं है... इसलिए मैंने नहीं खरीदा, ये लो दस रुपये वापस...माँ बच्ची की बात पर गर्वित थी।