मुफ़्तखोरी
मुफ़्तखोरी
आज फिर नंदू शराब पी कर घर आया। पत्नी दरवाजा खोलते ही चिल्लाई। घर में एक फूटी कौड़ी नहीं और आज फिर तुम पी कर आ गए। नंदू ने पत्नी को धक्का दिया और बिस्तर पर जा कर औंध गया। बेटी सहम कर माँ के पीछे जा दुबकी। नंदू का यह रोज का ही क्रम था, आदतन होने के कारण वह सुबह अपने आप सामान्य हो गया।
नहाया और तैयार हो कर जाने लगा पत्नी ने समझाने की कोशिश की। थोड़ा पैसा घर में भी लाया करो। सब पी जाते हो। बच्ची के पास ढंग के कपडे तक नहीं। दो महीने से किराया नहीं दिया। काम पर भी रोज नहीं जाते। ऐसा कैसे चलेगा।
पर नंदू के चेहरे पर मुस्कान थी। पत्नी से बोला तू चिंता क्यों करती है। सब हो जाएगा, ला तीनों के आधार कार्ड ला कर दे। अभी तहसील ऑफिस जाता हूँ और गरीबी रेखा के नीचे वाले रजिस्टर में नाम लिखवा कर आता हूँ। फिर सस्ता अनाज मिलने लगेगा, मुफ्त में बिजली, मुफ्त आवास।
