अपने घर की स्त्री
अपने घर की स्त्री
"मुझे देर हो रही है!! ऑफिस में आज महिला दिवस का समारोह है, सब मुझे ही संभालना है। तुम थोड़ा फुर्ती दिखाओ काम में! " - रवि ने सीमा को कहा।
इन औरतों को घर ही रहना होता है, फिर भी इनको आराम चाहिए!!
रवि बड़बड़ाता हुआ , ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहा था।
रवि एक गैर सरकारी संस्था के साथ काम करता है जो औरतों के सशक्तिकरण, उनके रोजगार के लिए काम करती है!!
आज महिला दिवस का समारोह है और प्रबंधन की जिम्मेदारी रवि बाबू पर ही थी!!
रवि की आदत थी रोज यूंही ऑफिस के काम के दबाव का गुस्सा सीमा पर ही निकालता था।
शादी को 10 साल हो चुके, 2 बच्चे भी हैं।
पर बच्चों की देखभाल, पढ़ाई सब सीमा के ही हिस्से था!!
रवि तो सिर्फ घर के राशन के पैसे, बच्चों की फीस देने को ही बच्चों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी समझता था!!
जो दूसरी औरतों को सशक्त बनाने के भाषण देता था उसके घर में भी कोई औरत है उसका उसे कोई एहसास ही नही था!!
सीमा बहुत तंग आ चुकी थी अपनी इस हालत से!!
पर करती भी क्या!! और कहती तो कहती किससे!!
जब कभी मां को बताया तो मां ने यही कहकर बेटी को समझा दिया की तुझे किसी चीज की कमी रखता हो तो बता बेटी!!
अब हारकर किसी से कुछ कहना ही छोड़ चुकी थी!!
एक दिन बेटी के स्कूल में स्पोर्ट्स डे पर पैरेंट्स टैलेंट का भी एक राउंड था!!
तब सीमा ने बहुत ही सुन्दर कविता सुनाई।
सबने जब अंत में प्रथम पुरस्कार आने पर बधाई दी तो पता चला की ये कविता किसी बड़े लेखक की लिखी नहीं थी खुद सीमा ने ही लिखी थी!!
तब प्रोग्राम में चीफ गेस्ट के तौर पर आई शालिनी जी ने उन्हें कहा की मेरी एक पत्रिका है महिलाओं के लिए हर 3 माह में निकलती है। क्या आप उसमें लिखेंगी!!
मैं आपको हर आर्टिकल के लिए कुछ राशि देना चाहूंगी, इनाम स्वरूप।
सीमा ने बोला - "मैं शौक के तौर पर लिखती हूं मैम। ज्यादा पढ़ नहीं पाई। आपको कुछ लिखकर भेज दूंगी आप देख लेना सही लगे तो!!"
शालिनी जी ने कहा -" अरे पत्रिका आपकी ही है, और आपके जैसी महिलाओं के लिए ही है। जो घर के काम संभालते हुए भी अपने सपने और शौक जिंदा रखना चाहती है! आप जरूर लिखियेगा!!"
सीमा ने आज तक रवि को ये बात बताई नहीं थी, वरना वो हमेशा की तरह उसका उपहास ही करता।
रवि ने फिर आवाज लगाई -" नाश्ता दे रही हो या ऐसे ही चला जाऊं!! लंच तो आज वहीं करूंगा!!"
सीमा ने नाश्ता टेबल पर रखते हुए पूछा -" आपको आने में देर होगी क्या!! मैं बच्चों को ले जाऊं बाहर घुमाने!! "
रवि ने मजाक उड़ाने वाली हंसी में कहा -" हां ले जाना!! तुम घरेलू महिलाओं का तो यही महिला दिवस है की बच्चों के साथ पार्क में बैठकर आइसक्रीम खाई, गप्पे लड़ाए!!"
मुझे देर हो रही है !! ये कहकर चला गया!!
ऑफिस पहुंचा, सारा इंतजाम चेक किया!!
इतने में शालिनी जी भी आ गई, नमस्कार रवि जी!!
रवि ने प्रणाम करते हुए कहा -" आइए मैडम! आप तो सबसे पहले आ गईं!!"
शालिनी जी ने कहा -" आज तो हमारा दिन है, वैसे भी बाकी 364 दिन तो दुनिया के नाम कर दिए। आज मेरी पत्रिका की 4 महिला लेखकों को भी यहीं सम्मानित करूंगी!! आपकी रेखा मैडम आ चुकी क्या!!"
रवि ने हां में सिर हिलाया और शालिनी जी को रेखा मैडम के केबिन तक छोड़ आया।
रेखा जी इस संस्था की संस्थापक हैं जहां रवि बाबू काम करते हैं।
उधर सीमा भी कुछ घबराई हुई सी कभी बच्चों के बाल बनाती कभी बार बार अपनी साड़ी का पल्लू ठीक करती!!
आज पहली बार कोई सम्मान मिलने जा रहा है, वो भी खुद की पहचान, हुनर के दम पर!!
झटपट तैयार होकर पहुंच गईं समारोह स्थल पर!!
वहां शालिनी जी ने स्वागत किया; बच्चों और सीमा को बिठाया।
रवि , रेखा मैडम के केबिन से बाहर आया और मंच संचालन किया!!
सीमा तो रवि बाबू को देखते ही हैरान हो गई!!
उसके पैर जम से गए!!
बच्चों ने दबी आवाज में कहा -" मां चलो पापा को पता चल गया हम घूमने नहीं गए!!"
सीमा अब कहती भी तो क्या !!
फिर तालियों की आवाज के साथ शालिनी जी और रेखा जी मंच पर गई।
एक एक करके सबको सम्मानित किया गया।
फिर नाम आया सीमा तिवारी जी लेखिका!!
सीमा पहले तो उठी नहीं फिर खुद को हिम्मत दी आज रवि बाबू की पत्नी नहीं लेखिका सीमा को सम्मान मिल रहा है!!
सीमा को देख रवि बाबू के चेहरे का रंग ही उड़ गया!!
बाहर दूसरी महिलाओं को सशक्त करते करते कब उनके घर की महिला खुद ही सशक्त हो गई उन्हें मालूम ही नहीं था!!
रवि बाबू ने चुप्पी ऐसे साध ली जैसे बिल्ली को देख चूहा चुप हो जाता है!!
शालिनी जी ने सीमा जी का परिचय सबको करवाया!!
रवि जी कृपया वो सम्मान पत्र दीजिएगा !!
रवि बाबू , सीमा से नजरें तक नहीं मिला पाएं।
शालिनी जी ने कहा -" सीमा जी कुछ कहना चाहेंगी!!"
सीमा जी ने हौसले से माइक पकड़ा और कहा -" हां!! जरूर!! पहले तो सबको प्रणाम। शालिनी जी का बहुत बहुत धन्यवाद । मैं तो भूल ही चुकी थी कि मैं घरेलू महिला के अलावा भी कुछ हूं; या यूं कहूं की मैं जिंदा भी हूं या बस काम करने वाला एक रोबोट हूं।
शालिनी जी ना मिलती तो मैं ये यकीन कर चुकी थी कि आदमी सिर्फ दूसरे घर की महिला को ही जिंदा समझता है और उसके सशक्तिकरण का काम करता है। अपने घर की स्त्री भी कोई सजीव प्राणी है उसका उसे अंदाजा ही नहीं!!
बहुत बहुत शुक्रिया शालिनी जी, मुझे मेरे होने का एहसास दिलवाने के लिए।"
ये कहकर एक बड़ी सी मुस्कान लेकर मंच से नीचे आकर अपने बच्चों को गले लगाया।
रवि बाबू जो ना ऑफिस में कुछ कह पाए न घर आकर कुछ कह पाए।
सीमा ने ही सामने से कहा -"लीजिए रवि बाबू चाय पीजिए!! आप थक गए होंगे महिला दिवस मनाकर। हम घरेलू महिला भी पार्क में बैठकर आइसक्रीम खा आईं है!!"
रवि बाबू को सीमा की बातें चाय में उठती भांप सी गरम लगी।
पर बोले कुछ नहीं ये सोचकर की कहीं भांप से खुद को जला न बैठें।
दोस्तों !! बड़े बड़े भाषण देने से अच्छा है, अपने घर में भी सुधार कर लिया जाए।
स्त्री अपने मर्जी से अपना सब छोड़ आपके घर की जिम्मेदारी निभाती है जिस दिन उसने ठान लिया की अब खुद की पहचान भी बनानी है तो वो रास्ते खोज ही लेती है ।
मेरी तरफ से सभी को महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।