अपने अपने चाँद
अपने अपने चाँद
हर रोज की तरह सांझ आसमान से होते हुए उसकी आँखों मे उतर आई थी। सांझ और उसे दोनों को ही चाँद का इंतजार था। अपने घर के दरवाजे पर खड़ी वह और सांझ एक दूसरे को आँखों ही आँखों से दिलासा दे रहे थे। वह आज रोज से भी ज्यादा अनमनी थी।
सांझ ने अपने पीले से नारंगी और फिर कुछ स्याह होते दुपट्टे को फैला कर खुद को अच्छी तरह ढंक लिया। वह अब भी भावशून्य आँखों से सांझ को देख रही थी।
सांझ मुस्कुरा कर उसके पास उतर आई। " सब्र करो, आ जायेगा।"
" कितना सब्र? ..... आ भी जाएगा तो मेरे पास कितने पल रुकेगा ! बस कुछ पल ही न।" एक उच्छवास के साथ वह बोली।
सांझ ने अपने हाथ उसके कंधे पर रख कर उसे अपने गले से लगा लिया। "मेरे पास ही भला कितनी देर रुकता है वह ! बस कुछ पल ठहर कर निशा के आगोश में चला जाता है और मैं..... मैं ..... इंतजार करती हूँ फिर अगले दिन का जब चाँद कुछ पल के लिए मेरे पहलू में आ जायेगा। " सांझ की ओढ़नी अब भूरी और स्याह रंग में रंगने लगी थी। पूरब के एक किनारे से हल्की दूधिया रंगत दूर से आती हुई दिख रही थी।
" थोड़ी देर में ही चाँद आने वाला है सांझ। ", वह उसके गले से अलग हो गई मगर सांझ के हाथ अब भी उसके कंधे पर थे। वे दोनों ही पूरब की तरफ कुछ खोई - खोई सी देख रही थीं।
" कुछ पल ही सही मगर उन पलों में ये चाँद सिर्फ तुम्हारा होता है सांझ...।", उसकी तरफ बिना देखे सांझ हल्के से मुस्कुरा उठी। सांझ ने चाँद के स्वागत के लिए बाहें खोल ली थीं।
" वह भी आता होगा, तुम दुखी मत हो।"
" वह आएगा....." फीकी सी मुस्कान आ गई उसके चेहरे पर।" हाँ, शायद उसकी आवाज क्षितिज के एक छोर से आएगी... सिर्फ आवाज .... जिसमे मेरे अलावा बाकी सभी बातें होगी। तुम्हारा चाँद कम से कम तुम्हारे साथ आता तो है। मेरा चाँद तो.….....।', बात अधूरी छोड़ दी थी उसने।
सांझ की ओढ़नी अब स्याह रंग में रंग रही थी और वह मुस्कुरा कर चाँद का स्वागत कर रही थी। बस कुछ पल ही थे सांझ के पास चाँद के साथ।
वह उन दोनों के उन पलों में अपनी बात कहकर रुकावट नहीं डालना चाहती थी। बिना बोले मुस्कुरा कर उसने सांझ से विदा ली और कुर्सी पर बैठकर इंतजार करने लगी उस चाँद का जो उसका नहीं था।

