Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win

Dr.Shweta Prakash Kukreja

Inspirational

3  

Dr.Shweta Prakash Kukreja

Inspirational

अपने आप की तलाश

अपने आप की तलाश

2 mins
476


वो अक्सर चुप ही रहती। शायद उन्हें यहीं सिखाया गया था कि अच्छी औरतें ज्यादा बात नही करती है। सारा दिन एक मशीन की तरह वो काम करती रहती। सासूमाँ की दवाईयाँ या नितिन की फाइल या बच्चों का टिफ़िन सुबह से लेकर वो शाम तक बस काम ही करती रहती।


इस पर भी कभी कभी सासूमाँ कहती, "सारा दिन बहुरिया काम ही क्या करती है....हर काम की तो बाई है ना। " नितिन भी खिसिया लेते ,"तुमको क्या पता पैसे कमाने में कितनी मेहनत लगती है, तुमको तो बस खर्च करना आता है। बच्चे भी न छोड़ते उसे, "छि माँ कैसे रहती हो आप, हमेशा लहसुन की बदबू आती है आपके पास से। "


जब मदर्स दे आता को संग फ़ोटो खिंचवा फेसबुक पर डालते। नितिन भी जब ऑफिस की कपल पार्टी होती तो उसे ले जाते। ऐसा लगता जैसे सब उसे इंसान नहीं एक मूर्ति समझ रहे थे। जब मन आया साथ खड़ा किया वरना होश ही नहीं रहता कि वो ज़िंदा भी है नहीं।


पर वह तब भी कुछ न कहती। घुटती रहती पर अपनी जिम्मेदारियों से कभी पीछे न हटती। कविताएँ लिखने का शौक था उसे। कभी समय मिलता तो अपनी पुरानी डायरी खोल के अपनी रचनाएँ पढ़ती। खुद को कोसती, सवाल करती पर जवाब में बस खामोशी ही मिलती।


नितिन अब रिटायर हो चुके थे। दोनों बच्चे अपने जीवन में व्यस्त थे। एक दिन उसने बच्चों को फोन लगा घर बुलाया। तीनों बाहर कमरे में थे कि तभी वो सूटकेस ले बाहर आई। बेटा बोला, "माँ कहाँ जाने का प्लान है?" नितिन भी असमंजस में थे।


"पिछले पैंतालीस सालों से आप सब के हिसाब से चलती आ रही हूँ। आप सब की ज़रूरतें पूरी करते करते खुद को ही खो बैठी हूँ। आज मेरी खामोशी मुझे जीने नहीं दे रही है। खामोशी का शोर मुझे सोने नहीं देता, घुटन होती है मुझे। अब मैं आज़ाद होना चाहती हूँ। मैं अपनी सारी ज़िम्मेदारियाँ पूरी कर चुकी हूं। अब बस अपने प्रति जो जिम्मेदारी है उसे पूरा करना है। " अपनी बात सहजता से कह दी उसने।


"आप कैसे जा सकती हो माँ, पापा के बारे में तो सोचो। "बेटे ने कहा।

"अगले महीने मेरी डिलीवरी है माँ कैसे होगा सब कुछ?" रोनी सूरत के साथ बेटी बोली।


"सब हो जाएगा तुम सब अब मेरे बिना रह सकते हो। पर अब मैं अपने बिना नहीं रह सकती। जीवन के इस पड़ाव पर अब में खुद को खोजना चाहती हूँ, अपने खोये हुए अस्तित्व की। " और वो चल पड़ी, कभी न लौटने के लिए...बिना पीछे मुड़े।


Rate this content
Log in

More hindi story from Dr.Shweta Prakash Kukreja

Similar hindi story from Inspirational