Shweta Prakash Kukreja

Children Stories Others

3.4  

Shweta Prakash Kukreja

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ये भी तो धोखा है!

ये भी तो धोखा है!

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सत्यमेव जयते स्टूडियो


“कुछ लोग अपने रास्ते खुद बनाते है बजाए दूसरों के राह पर चलने के…ऐसे ही नौजवान से आज हम आपकी मुलाकात करवाने जा रहे है जिन्होंने एक छोटी सी उम्र में एक नेक काम की शुरुआत की है जो समाज के लिए मिसाल बन गयी है। तो आइए मिलते है अर्श तालिब से..”तालियों की आवाज़ से सेट गूंज उठा।


“शुक्रिया आमिर सर, मैं खुद को बहुत छोटा मानता हूँ इन सब तारीफों के लिए..क्योंकि मैं बस अपनी दिल की सुन रहा हूँ। शायद अगर तब मुझे वो धोखा न मिलता तो शायद आज मैं कुछ और ही कर रहा होता।“ बड़ी सरलता के साथ अर्श बोला।


“ज़रूर आपकी माशूका बेवफ़ा हो गयी होगी।“ आमिर ने छेड़ते हुए कहा।

“नहीं जनाब माशूका नही..तब मैं सिर्फ़ गयारह साल का था। मुझे याद है अब्बू मेरे लिए एक बकरा लाये थे। बहुत छोटा, मासूम आंखों वाला…मेरा जिगरी था वो। मैं उसे टोनी बुलाता टोनी स्टार्क…बहुत बड़ा फैन था मैं आयरन मैन का। तीन साल का हो गया था जब ईद पर मैं उसके लिए नया पट्टा लाया। मैंने मोतियों से उसपर उसका नाम लिखा टोनी। उस दिन सुबह देखा तो अब्बू टोनी को नहला रहे थे…मैं भी खुश हो उनके पास आया। उसको नई माला पहनाई ,गुलाल लगा उसको सजाया। मैं भी नए कुर्ता पहन उसके साथ फ़ोटो खिंचवा रहा था कि अब्बू औऱ चचाजान आये और टोनी के ले जाने लगे। मैं भी उनके पीछे गया तो देखा टोनी को हलाल करने की बातें हो रही थी।


मैं चीखा..."अब्बू मेरे टोनी को मत मारो …प्लीज अब्बू आप कोई दूसरा बकरा ले आओ पर टोनी को छोड़ दो।" 

"अर्श इसकी बलि नहीं देंगे तो ईद कैसे मानेगी, ऐसे ही तो बकरीद मनाते है।" अब्बू ने समझाया।

"नहीं….नहीं माननी मुझे बकरीद।अब्बू ये तो धोखा है ना…हमने उसे पाला पोसा, बड़ा किया, आज उसे सजाया….इस दिन के लिए की उसको मार के हम उसे ही खा जाए। नही अब्बू अल्लाह भी धोखा कबूल नहीं करता।"


अब्बू रुक गए पर चचाजान आये, ”क्यों फ़िज़ूल में वक़्त ज़ाया कर रहे है भाईजान। जानवर क्या समझे धोखा इसे तो हम लाये ही मारने के लिए थे…वो तो तुम्हारे लिए इतने साल ज़िंदा रखा। चलो छोड़ो उसे।" और उन्होंने टोनी को मुझसे छीन लिया..मैं बस रोता रहा…उसका मिमियाना मेरे दिल को चीर रहा था। कमरे से बाहर निकलते खून को देख मैं समझ गया कि अब टोनी नही रहा। उस दिन न मैंने खाना खाया और न ही अपने कमरे से निकला।


आज भी यही सोचता हूं कि जानवर बेज़ुबान होते है तो क्या उनमें ज़ज़्बात नही होते? आप ही बताए जब उन्हें प्यार समझ आता है तो धोखा भी तो समझते होंगे। बस तभी से मैंने ईद बिना बलि के मनाना शुरू किया और आज वही हर किसी को समझाना चाहता हूँ। मेरी संस्था उन सभी जानवरों को आसरा देती है जो हम बंदों के सताए हुए है। कभी कभी शर्म आती है खुद को इंसान कहने में…इंसानों को तो धोखा देते ही है….जानवरों को भी नही छोड़ते।“ अर्श के इन इल्जामों से सभी का दिल छलनी हो गया।



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