STORYMIRROR

अपना पराया

अपना पराया

3 mins
1.7K


रेल ने स्टेशन से धीरे धीरे रेंगना शुरू ही किया था कि एक आदमी अचानक चढ़ते समय रेल की पटरियों में आ गया था। ट्रेन चलते चलते रूक गई, उसे देखने के लिए अचानक भीड़ उमड़ पड़ी थी। पैरों से विकलांग उस व्यक्ति की बैशाखी पास ही पड़ी ट्रेन के एक डिब्बे में मोहन, रवि और सतीश बैठकर ताश खेल रहे थे। वे तीनों कॉलेज में पढ़ते थे एवं होस्टल में तीनों रूम मेट थे। ट्रेन के लोग भी उतरकर उसे देखने जाने लगे थे अतः ट्रेन में एक तरह की अफरा तफरी मची थी।

मोहन ने खिड़की से बाहर झांका, बहुत भीड़ जमा होते जा रही थी अतः प्लेटफार्म की जनता को देखकर उसकी भी तीव्र इच्छा हो रही थी। इतना सब मुश्किल से चन्द लम्हों में घटित हुआ था, अपने खेल में व्यवधान देखकर रवि ने कहा- ‘अरे मोहन, तू अपने पत्ते फेंक न, अपना टाइम क्यों वेस्ट कर रहा है ? फिर इतना अपसेट क्यों हो रहा है ? मरने वाला कौन तेरा अपना है ?

इतना सुनकर मोहन थोड़ी देर के लिए स्तब्ध रहा। दर्द की शिकन उसके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी, वैसे सफर में दुर्घटना का घट जाना कोई नयी बात नहीं थी, मोहन ने ऐसी अनेक घटनाओं का सामना किया था और कई परिवारों की पीड़ा का यथार्थ भी उसने प्रत्य़क्ष भोगा था। अतः मोहन ताश के पूरे पत्ते फेंककर भीड़ में गुम हो गया, लौटने पर वह गुमसुम-गुमसुम था। ट्रेन कुछ घंटे रूककर गन्तव्य की ओर चल पड़ी।

तीनों मित्र एक दिन अपने होस्टल में गपशप कर रहे थे कि वार्डन ने आकर सूचना दी कि रवि तुम्हें घर से फोन आया है। आज तक रवि को घर से अचानक फोन नहीं आया था। अतः रवि दौड़कर फोन की ओर लपका। रवि के दोनों दोस्त भी साथ हो लिये। रवि को फोन पर जब यह पता चला कि मिल में कार्य करते समय उसके भाई का हाथ कट गया है। खबर सुनते ही उसका दिल बैठने लगा और वह फूट-फूट कर रोने लगा।

पूरे परिवार की जिम्मेदारी रवि के भाई पर ही थी अतः अब सारी जिम्मेदारी रवि को ही संभालनी थी। मित्रों ने तुरंत ही रवि का सामान बैग में भरा और वे रवि को लेकर पुनः रेल में सफर कर रहे थे। डिब्बे में अब खामोशी थी, रवि अकेला बैठा शून्य को निहार रहा था। अचानक रेल ने सीटी बजायी और रेल धीरे धीरे रूकने लगी थी।ट्रेन आज उसी स्टेशन पर रूकी थी जिस पर पिछले दिनों घटना घटी थी। रवि को न जाने क्या हुआ कि उसकी रूलाई फूट पड़ी थी। शायद उसे अपने कहे शब्द याद आ गये थे। उसे वक्त के साथ अपने पराये का बोध हो गया था। दोनों मित्र उसे ढाढस बंधाने और समझाने का प्रयास कर रहे थे। ट्रेन ने सीटी बजायी और द्रुतगति से दौड़ने लगी थी लेकिन अब रेल के डिब्बे में पहले जैसी खामोशी नहीं थी, लेकिन उसमें रवि की सिसकियां गूंज रही थी।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy