अन्याय
अन्याय
"बहन जी, हमने तो लड़का - लड़की में कभी भेद नहीं किया है। हमने तो अपनी बेटियों को बेटो के समान पढ़ाया - लिखाया है; काबिल बनाकर अच्छे घरो में बियाहा है।" लीला देवी अपनी नयी पड़ोसन को अपने परिवार के बारे में बताते हुए बोली।
"लेकिन मैंने तो कुछ और ही सुना है।" पड़ोसन थोड़ा हिचकिचाते हुए बोली।
"क्या सुना है?" लीला देवी चौक कर बोली।
"यही की तुम अपनी बड़ी बहू से दुर्व्यवहार करती हो।" पड़ोसन तपाक से बोली।
"गलत सुना है, वो तो खुद ही बहुत चिड़चिड़ी हैमैंने भी गुस्से में कभी कुछ बोल दिया होगा।" लीला देवी थोड़ा चिढ़कर बोली।
"मैंने तो यहाँ तक सुना है कि तुम्हारे पति ने अपनी सारी प्रॉपर्टी छोटे बेटे के नाम कर दी है। ये तो बड़े बेटे के साथ अन्याय है।" पड़ोसन चुटकी लेते हुए बोली।
"कोई अन्याय नहीं है; हमने तो यह कलह को ख़त्म करने के लिए किया है।" लीला देवी बोली।
"इससे कलह कैसे ख़त्म होगी?" पड़ोसन ने उत्सकता के साथ पूछा।
"देखो बहन जी मेरे छोटे बेटे का एक बेटा है और बड़े बेटे की एक बेटी है। बड़े बेटे की बेटी तो ब्याह कर अपनी ससुराल चली जाएगी; यदि उसके पिता के नाम कोई प्रॉपर्टी रही तो वो भविष्य में अपने पिता की प्रॉपर्टी के लिए मेरे छोटे बेटे और उसके पुत्र के साथ झगड़ा कर सकती है।" लीला देवी पड़ोसन को समझाते हुए बोली।
"अब समझ आया कि तुम्हारी बड़ी बहू चिड़चिड़ी क्यों रहती है।" पड़ोसन बोली।
"गलत चिड़चिड़ाती है वो, मेरे छोटे बहु - बेटा बहुत अच्छे है, उन्होंने कह रखा है कि भले ही बड़े भाई को प्रॉपर्टी में हिस्सा नहीं मिला है, लेकिन वो इस पुस्तैनी घर में जब तक चाहे रह सकता है।" लीला देवी बोली।
"अच्छे तो होंगे ही बड़े भाई का हक़ छीनकर। लेकिन धन्य तो तुम हो बहन जी, तुम लड़का - लड़की में भेद न करने की बात करती हो, लेकिन पोता-पोती में भेद करके कलह बचाने के नाम पर ये अन्याय कर रही हो।“ पड़ोसन उपहास के साथ बोली।
"अरे बातों में कितना वक़्त निकल गया, चलती हूँ।" कहकर लीला देवी उठ खड़ी हुई।