अनुभूति पहले प्यार की

अनुभूति पहले प्यार की

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युवावस्था की दहलीज पर कदम रखती शान्या की सहेलियाँ जब उस खास विषय पर चर्चा में व्यस्त रहती थी जो इस उम्र में युवाओं को अपनी ओर भरपूर आकर्षित करता है "प्रेम", तब वो जी-जान से लगी होती अपने भविष्य को एक दिशा देकर, आत्मनिर्भर बनकर अपने परिवार का सहारा बनने की कोशिश में।

अपने-अपने पुरुष-मित्रों के बारे में, तोहफों के लेन-देन, प्रेम-पत्रों और भविष्य के लिए होने वाले वादों-इरादों की चर्चा करते हुए अक्सर शान्या की सहेलियों की आँखों में एक अलग सी चमक हुआ करती थी, जिसे देखकर वो मुस्कुरा देती थी, लेकिन उसकी ज़िन्दगी में इस चमक के लिए कोई जगह नहीं थी।

जब भी कोई उसे कहता कि तुम्हें भी इस खूबसूरत भावना का अनुभव करना चाहिए वो मुस्कुराते हुए कहती "हम मध्यमवर्गीय लड़कियों के जीवन में इन परी कथाओं वाले प्रेम के किस्सों के लिए जगह नहीं होती, हमारी ज़िंदगी में होते हैं समझौते परिवार की खुशी और समाज में उनके मान-सम्मान के लिए।"

अपने आस-पास जब वो आये दिन लोगों को, अपने दोस्तों को साथी बदलते हुए देखती तो उसे बड़ी हैरानी होती थी कि क्या यही इनका प्रेम है, इतनी जल्दी इनके वादे-इरादे बदल जाते हैं और फिर खुद से कहती थी, "मेरी तो समझ से परे है ये सब। हम इन चीजों से दूर ही भले।"

आज शान्या ने अपना स्नातक पूरा कर लिया था और लोक-सेवा आयोग की मुख्य परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद साक्षात्कार के लिए उसका चयन हो चुका था।

बाजार में कुछ जरूरी चीजें खरीदते हुए उसकी मुलाकात अपने पुराने सहपाठी अभिराज से हुई। उसका चयन भी इस साक्षात्कार के लिए हुआ था। बातों ही बातों में उसने शान्या को तैयारी के लिए एक इंस्टीट्यूट का नाम सुझाया जहाँ वो खुद भी जाने वाला था। शान्या को उसका सुझाव पसंद आया।

अपने घर में बात करके उसने अगले दिन उस इंस्टिट्यूट में नामांकन करवा लिया। अब कक्षा के बहाने अक्सर ही शान्या और अभिराज की मुलाकात होने लगी। आजकल की लड़कियों से बिल्कुल अलग, दिखावे से दूर, अपनी पढ़ाई में मगन, काम से काम रखने वाली शान्या को कब अभिराज पसंद करने लगा उसे खुद भी पता नहीं चला। लेकिन उसने कभी भी अपनी भावनाओं का इजहार शान्या से नहीं किया।

देखते ही देखते साक्षत्कार का दिन भी आ गया।

शान्या और अभिराज दोनों को ही अपने चयन की उम्मीद थी।

परिणाम के दिन सूची में अपना नाम देखकर उन दोनों की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था।

बहुत सोचने के बाद अभिराज ने शान्या को फोन किया और मिलने के लिए कहा ताकि साथ मिलकर इस खुशी को बाँट सके। शान्या इंकार नहीं कर सकी।

कॉफी हाउस में बातचीत करते हुए अचानक ही जब अभिराज ने उससे पूछा कि "क्या तुम्हारा मन नहीं करता तुम्हारी सहेलियों की तरह तुम्हारी ज़िन्दगी में भी कोई खास हो", तब शान्या ने मुस्कुराते हुए अपनी एक प्रिय पुस्तक की प्रिय पंक्तियां दोहरा दी "मेरी ज़िंदगी में प्लेबॉय के लिए जगह नहीं है, मुझे संगी चाहिए। जिसमें स्थिरता हो, उदारता हो, जो मुझे बदलने की कोशिश किये बिना मुझे वैसे ही अपना ले जैसी मैं हूँ, जो मेरी पारिवारिक स्थिति को झेल ले।"

ये सुनकर अभिराज कुछ ना कह सका।

अपनी नौकरी पर जाने से एक दिन पहले अभिराज शान्या के घर पहुँचा उससे अंतिम बार मिलने के लिए तब वो बच्चों की तरह डाँटते हुए, मनुहार करते हुए अपनी माँ को दवा खिला रही थी। वहां पहुँचकर उसे पता चला शान्या अपने माता-पिता की एकलौती संतान थी और उसके परिवार की सारी जिम्मेदारी अकेले उसके ऊपर थी। आज वो शान्या की कही हुई बात का अर्थ समझ पा रहा था। अपनी माँ के प्रति उसके इस स्नेह को देखकर अभिराज के मन में शान्या के प्रति इज्जत और बढ़ गयी थी।

कुछ महीने बीतने के पश्चात जब अभिराज को अहसास हुआ कि वो वास्तव में शान्या से मोहब्बत करता है और उसके साथ उसका साथी बनकर ताउम्र रह सकता है तब उसने अपने माता-पिता से बात की और उन्हें रिश्ते की बात करने के लिए शान्या के घर भेजा।

शान्या के माता-पिता इस रिश्ते से बहुत प्रसन्न थे और उनकी खुशी देखकर शान्या ने भी इस रिश्ते के लिए हाँ कह दी।

रिश्ता तय होने के बाद जब शान्या और अभिराज की मुलाकात हुई तो अभिराज ने उससे पूछा "तुमने किसी दवाब में तो हाँ नहीं कि इस रिश्ते के लिए ? तुम खुश हो ना ?"

शान्या ने कहा, "हाँ एक आम लड़की की तरह खुश हूँ मैं, मेरे परिवार को तुम पसंद हो, तुममें ऐसी कोई खामी नहीं कि तुम्हें रिश्ते के लिए मना किया जा सके, लेकिन मैं झूठ नहीं कहूँगी की मेरे मन में प्रेम-मोहब्बत जैसे कोई जज्बात नहीं उभरते, शायद मैं ऐसी ही हूँ अजीब।"

अभिराज ने कहा "कोई बात नहीं, तुम्हारी ये अजीब बात ही पसंद है मुझे।"

तय मुहूर्त में दोनों की शादी हो गयी और अपनी नई जिंदगी, नए रिश्तों में दोनों ने एक-दूसरे का हाथ थामे प्रवेश किया।

एक-दूसरे के सहयोग से, आपसी समझ से ज़िन्दगी अच्छी गुजर रही थी की एक दिन खबर मिली शान्या कि माँ बहुत बीमार है। शान्या और अभिराज तत्काल उनके पास पहुँचे। शान्या उन दिनों गर्भवती थी। ज्यादा दौड़भाग करना उसके लिए संभव नहीं था। अभिराज ने बिना किसी शिकन के माँ की चिकित्सा और उनकी देखभाल की जिम्मेदारी ले ली।

उन्हें लेकर डॉक्टर के पास जाना, उनके लिए खुद खाना बनाना और दवा देना, सकारात्मक बातें करके उनका मनोबल बढ़ाना, बखूबी कर रहा था वो।

आस-पास सभी शान्या की माँ से कहा करते कि आपका दामाद तो बेटे से भी बढ़कर है।

कभी-कभी शान्या अभिराज से कहा करती "तुम सोचते होगे कैसी लड़की से शादी कर ली कि पीस रहे हो अब घर और दफ्तर की दोहरी जिम्मेदारियों में।"

और अभिराज मुस्कुराते हुए कहता "साथी हूँ मैं तुम्हारा। जो तुम्हारा है वो मेरा भी है, चाहे खुशी हो, गम हो या जिम्मेदारियां हों।"

शान्या की देखभाल में भी उसने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उसके छोटे-बड़े किसी काम को करने में उसे कोई झिझक नहीं होती थी।शान्या कहती भी की नौकर तो है सारे कामों के लिए पर अभिराज कहता- अपनी पत्नी और संतान की देखभाल करना मेरा कर्तव्य भी है और अधिकार भी।

आखिरकार वो दिन भी आ गया जब शान्या अपनी संतान को जन्म देने वाली थी।

ऑपरेशन थियेटर में जाते हुए उसके कानों में अभिराज की बात पहुँची। वो डॉक्टर से कह रहा था " मेरी पत्नी का पूरा ख्याल रखियेगा, किसी भी कीमत पर उसे कुछ नहीं होना चाहिए।"

अभिराज के बारे में सोचते हुए धीरे-धीरे शान्या होश खोने लगी। कुछ वक्त बाद बच्चे के रुदन से उसकी आँख खुली। उसने देखा अभिराज अपनी बिटिया को गोद में लिए उसे दुलारते हुए चुप कराने की कोशिश में लगा था।

दर्द के बावजूद शान्या मुस्कुरा उठी। उसे होश में आया देखकर अभिराज ने मुस्कुराते हुए उसे देखा और कहा "इस अनमोल तोहफे के लिए मैं तुम्हें जितना धन्यवाद कहूँ कम है।"

शान्या मुस्कुराते हुए बोली "प्यार में धन्यवाद की कोई जगह नहीं होती, और फिर पहली बार आज मैंने अपने प्रेमी को कोई तोहफा दिया है तो वो अनमोल तो होना ही था।"

ये सुनकर अभिराज हैरानी से शान्या को देख रहा था।

शान्या ने आगे कहा- हाँ अभि, आज मैंने महसूस किया है कि मोहब्बत किसे कहते हैं, ये कितना अनमोल, कितना अद्भुत और सुंदर अहसास है। मैं हमेशा ही मोहब्बत के नाम पर होने वाले फरेब और खिलवाड़ के खिलाफ थी और लगता ही नहीं था कि जिसे सच्ची मोहब्बत कहते हैं वैसा कुछ हकीकत में होता भी है। ये तोहफों के लेन-देन, बेसिर-पैर के वादे, कुछ दिनों तक टाइम-पास और फिर ऊब जाने के बाद किसी दूसरे साथी की तलाश, मोहब्बत के नाम पर ये सब कभी मुझे समझ ही नहीं आये।

मैं सोचती थी हकीकत में अगर कुछ होता है तो बस किसी के साथ समझौता करके किसी तरह ज़िन्दगी गुजार देना।

लेकिन मैं बहुत खुशकिस्मत हूँ कि तुम्हारे रूप में मुझे वो मोहब्बत मिली है जो हर कदम पर मेरा सम्बल है, मेरे मुस्कुराने की वजह है। ये साथ, ये रिश्ता कोई समझौता नहीं, प्रेम के साथ अपने जीवन में एक-दूसरे की स्वीकारोक्ति है।

उन दोनों को बधाई देने पहुँची शान्या की सहेलियों ने शान्या की बात सुनकर कहा "तो आखिरकार मैडम को हो ही गया पहला प्यार।"

शान्या ने अभिराज का हाथ थामते हुए कहा "पहला भी और अंतिम भी।"

अभिराज ने कहा- चलो इसी बात पर आज फिर प्रेम पर लिखी अपनी किसी प्रिय किताब की प्रिय पंक्ति सुना दो।

अभिराज की आँखों में देखते हुए शान्या बोली "किसी को प्रेम करने का अर्थ है कि तुम उसकी बगल में बूढ़े होने के लिए तैयार हो।"

तभी उनकी लाडली बिटिया का रुदन फिर शुरू हो गया।

अभिराज ने उसे शान्या की गोद में देते हुए कहा "ऐसा लग रहा है हमारी बिटिया अपनी भाषा में अपने माँ-पापा की प्रेम-कहानी के शुरू होने की खुशी जता रही है।"

अपनी नन्ही परी को दुलारते हुए उन दोनों की खिलखिलाहट से अस्पताल का कमरा गुलजार हो उठा था।


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