अनोखा बंधन
अनोखा बंधन




आज अपने दर्पण के सामने खड़ा हूं पत्थर सा स्तब्ध सा, अपने आपको देखता अपने से ही संवाद करता ।इतनी ठंड में भी माथे का पसीना चुहचुहा रहा है ।दिल पर एक भारी बोझ सा अनुभव हो रहा अंदर से न जाने कौन मुझे धिक्कार रहा है "यह तुमने क्या किया? और क्या होता चला गया"
जब से अस्पताल से लौटा हूं पुरानी यादों की किरचें चुभ रही है।विचलित हूँ छोड़ गई है मुझे ! ना मुझे वह छोड़ सकती ना मैं उसे छोड़ सकता ।
दो बहनों के बीच मैं इकलौता लाडला भाई था दी की शादी हो गई थी ।वह कभी-कभी तीज त्यौहार पर आती ,मेरी बल्लैयां लेती ,मनुहार ,सत्कार करते नहीं थकती थी।मेरी बहन मायरा सबसे छोटी पढ़ाई लिखाई में तेज, गोरी ,सुंदर ,कोमल एवं संवेदनशील थी। मेरा मन पढ़ाई में नहीं लगता ,स्कूल में जाना आना तो समय पर था पर बीच के समय बाहर की दुनिया मुझे बुलाती रहती। कभी मूवी ,कभी दोस्तों के साथ घूमना फिरना, गपशप करना ,चाट पकौड़ी खाना इत्यादि मां का लाडला जो ठहरा। अब यह सब करके तो फेल होना ही था
पर बात बात में मायरा की प्रशंसा मां के द्वारा सुनसुन कर मेरे अंदर एक हीन भावना पनपने लगी थी ।जैसे-जैसे वह ऊंचे सोपान पर चढ़ती गई मेरी ईष्या बढ़ती चली गई ।
उस रक्षाबंधन को वह पीला टॉप और छोटी छोटी बिंदी से भरी स्कर्ट में प्यारी भोली भाली गुड़िया सी लग रही थी ।दौड़ती हुई मेरी तरफ ही राखी बांधने आ रही थी पर मैं उसके उसके खिले मुखड़े को देखते ही जल उठा ,और उसे जोर से धक्का दे दिया ।वह लोहे पर जा गिरी उसका माथा फट गया था खून बहता देखकर भी मैंने ना किसी को बुलाया और ना ही उसे उठाया।वक्त के साथ उसका घाव भर रहा था वह मेरी तरफ देखती पर मैं अन्जान ढीट बेशर्म बना रहा
अब तो धीरे धीरेउसकी दुखती रग को छेड़ कर मुझे आनंद आने लगा था । माथे पर गहरी चोट के स्थाई दाग देखकर मैं जबतब गाने लगता है "ऐ चांद तुझमें भी दाग है " मायरा एकदम शांत रहती और उसका शांत होना मेरे अंदर उफान ला देता।
शादी के बाद मायरा का जीवन कष्टमय था । परिवार से परेशान त्रस्त होकर जब भी वह घर आती तो डर लगने लगता ,कहीं इस मकान में अपना अधिकार तो लेने नहीं आई, कहीं मां को भड़काने तो नहीं आई।
जिंदगी खुशी-खुशी दौड़ी जा रही थी । एक दिन मां ने कहा" मायरा तुम्हें याद कर रही है काफी बीमार है एक बार उससे जाकर मिल लो""
अपनी अमीरी के अंधेपन में, दौलत के लालच में मायरा का घर पर आना जाना मैंने बंद करवा दिया था ।सालों मैं ने उससे कोई रिश्ता नहीं निभाया मां के बहुत जोर देने पर आखिर मेरे पैर अस्पताल की तरफ मुड़ ही गए।
कमरे में पैर रखते ही मेरे आंखों से आंसू बहने लगे । हरे रंग की चादर के नीचे निढाल निश्चल लेटी , उसकी आंखें कुछ कहना चाहती थी पर कुछ कह नहीं पा रही थी। ग्लुकोज की टप टप गिरती बूंदे चिढ़ा चिढ़ा कर जता रही थी कि पाइप के सहारे उसके हाथ की रक्त वाहनों से गुजरती हुई ये बूंदें, धीरे-धीरे उसके शरीर पर एकाधिकार कर रही हैं ।पूरा शरीर मिट्टी के ढेर में बदल रहा था ।अपने स्वाभिमान में जीने वाली अब अपनी मर्जी से बोल भी नहीं सकती थी । उसकी दशा देखकर मेरा शरीर कँपकँपाने लगा
उसने इशारे से मुझे अपने पास बुलाया और कहा ""मैं कहीं नहीं जा रही हूं दादा तुम्हारे आस-पास ही रहूंगी। मैं इस अदृश्य हवा में रहूंगी। बादलों से गिरने वाली बूंदों में समाकर ,जो तुम्हें भिगोकर शीतलता का अहसास कराएगी उनमें रहूंगी ।अपने आंगन की मिट्टी के कण कण में जो हर रोज तुम्हें मेरा एहसास दिल आएगी उसमें रहूंगी।
मेरे मानस पटल पर मायरा का चेहरा नाचने लगा ।बचपन का एक ही थाली में खाना खाना ,उसका अंधेरे से डरना ,बात बात पर मुंह फुलाकर रूठना, एक दूसरे की ढाल बनना, चोटी खींचने पर मां से उसका शिकायत करना, अपने हिस्से की मिठाई और पैसे झट से मुझे दे देना।काश वह समय वापस आ जाए जब हमारे बीच कुंठाओं की नागफनी नहीं थी ,ईर्ष्या की दहकती आग नहीं थी ।अब क्या करूं? बचपन में पॉकेट मनी भी पूरी नहीं पड़ती तो उसी से लेकर मौज मस्ती करता था। उसी मायरा के कष्टों से मैंने कोई नाता नहीं जोड़ा
मां मुझे जितना डाँटती, उतना ही मैं उसे रुलाता चिढाता था ।कब मेरा गुस्सा नासूर बन गया मुझे पता ही नहीं चला ।"मेरे भाई"
बातें अचानक थम गई थी ।मुझे अपने आप से घृणा होने लगी मुझे रोता देख मां बिखर पड़ी "अब रोने से क्या फायदा आखिर तू चाहता क्या है? जिसे तूने इतनी तकलीफ दी है पता है उसने क्या किया?" मैं मकान का चौथा हिस्सा उसको देना चाहती थी पर उसने इंकार करते हुए कहा ""नहीं मां मैं और दादा एक ही बाग के फूल हैं क्या हुआ जो वक्त ने हमें थोड़ा दूर कर दिया ?पर वही तो मेरा रक्षक संरक्षक, मेरे मायके का आंगन है, स्नेह और विश्वास की गांठ है मेरे दरवाजे की रौनक है इसलिए तो हर साल रेशम की डोरी अपने प्रेम से पिरो कर मैं भेजती हूं, कभी ना कभी तो उसे मेरी याद आएगी ही'" और इतने सालों की सहेजी अनमोल राखियां लाकर मां ने मेरे हथेली पर रख दी।