Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

4.5  

Dhan Pati Singh Kushwaha

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अनलॉक से गहराता कोरोना संकट

अनलॉक से गहराता कोरोना संकट

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"नमस्ते और शुभ आशीर्वाद, बच्चों ; विजय की ओर से। कैसे हो तुम सब ?"-डाॅक्टर विजय ने बातचीत में व्यस्त चारों बच्चों का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा।

गले में सुशोभित हो रहे स्टेथोस्कोप से डाक्टर होने का अनुमान लगाते हुए चारों बच्चों ने एक स्वर में कहा-"नमस्ते डॉक्टर साहब, हम सब अच्छे हैं। आपका धन्यवाद।"

"हम चारों मित्रों की ओर से मैं हर्षित एक राष्ट्ररक्षक कोरोना योद्धा के रूप में देश और मानवता के लिए अपना समय,अपनी अमूल्य सेवाएं देने के लिए आपका हृदय से कोटि-कोटि आभार प्रकट करता हूं जो आप इस समय कोरोना से संघर्षरत समाज के कल्याण हेतु दे रहे हैं।"-दोनों हाथ जोड़ आदर से सिर नवाते हुए हर्षित अति हर्षित होते हुए बोला।

आज हर व्यक्ति को अपनी क्षमता के अनुसार समाज की रक्षा हेतु सामाजिक योद्धा की महती भूमिका बड़ी समझदारी के साथ अपनी पूरी क्षमता से अपनी-अपनी जगह निभाने की घड़ी है। क्या हम सभी लोग उन दिशा-निर्देशों का उचित तरह से पालन कर रहे हैं ?तुम सब युवाओं को ही तो इस देश की बागडोर संभालकर समाज को दिशा देनी है। आज हमारे देश की राजधानी इस दिल्ली में कोरोना वायरस का संक्रमण आग की तरह फ़ैल रहा है, जानते हो क्यों? तुम्हें छोड़कर बाकी तीनों ही अपने मास्क और शारीरिक दूरी के सुझाए मानकों के पालन को ध्यान में रखते हुए अपनी स्थिति देखो ? "-डाॅक्टर साहब ने हर्षित की ओर मुखातिब होते हुए पूछा।

हर्षित की बहन हर्षिता जिसने अपना मास्क ठुड्डी पर लगाया था उसनेे,"क्षमा कीजिएगा", कहते उसे ठीक करते हुए नाक और मुंह दोनों को ढक लिया। सुबोध भी,"सारी , लगाना भूल गया था", कहते हुए उसने अपनी जेब से निकालकर अपना मास्क लगा लिया। अनमोल ने शर्मिंदा होते "मैं घर से लाना भूल गया" कहते हुए सिर झुका लिया।

डॉक्टर विजय ने अपने हैण्ड बैग से एक सर्जिकल मास्क निकालकर अनमोल को लगाने को देते हुए कहा-"कुछ युवा सोचते हैं कि उनका प्रतिरक्षा तंत्र शक्तिशाली है तो उन्हें यदि हल्का-फुल्का संक्रमण होता भी है तो उन्हें खतरा कम है।पर ऐसे लोग ध्यान रखें कि वे भले स्वयं बच जाएं पर लापरवाही के कारण दूसरे बहुत सारे लोगों को यह संक्रमण दे सकते हैं।उनके द्वारा दिया गया संक्रमण अनेक लोगों में से कई एक के लिए प्राणघातक भी हो सकता है। किसी के द्वारा संक्रमित होने वालों में उनके अपने निकटतम परिजन,प्रियजन होने की ही संभावना अधिक है क्योंकि हम सर्वाधिक उसी के सम्पर्क में आएंगे जो जितना ज्यादा निकट होगा। वास्तव में 'इतना तो चलता है' वाली सोच कई बार बहुत ही खतरनाक और कभी-कभी प्राणघातक भी सिद्ध होती है। किसी दुर्घटना में बाल-बाल बच जाने के संस्मरण सुनाने वाले लोग मिलते हैं क्योंकि ये उन भाग्यशाली लोगों में से होते हैं जिन्हें दुर्घटना में जीवन दान मिला होता है। कितनी मामूली चूक प्राणलेवा सिद्ध हुई ये संस्मरण बताने वाला कोई नहीं होता है क्योंकि जो बता सकता था वह तो दुनिया छोड़ करके जा चुका होता है।यह जरा सी चूक प्राण गंवाने व्यक्ति के परिवार, समाज और राष्ट्र की अपूरणीय क्षति होती है।जाने वाला तो चला जाता है पर दुष्परिणाम तो वे भोगते हैं जो इस लोक के कष्ट भोगने के लिए बच जाते हैं। "सुबोध ने अपनी जिज्ञासा प्रकट करते हुए कहा-"चार चरणों के लाकडाउन के बाद किए गए अनलाक में लोगों का उमड़ना अप्रत्याशित भी नहीं कहा जा सकता।इस बीच सारी गतिविधियों के बंद होने के कारण जन भावनाओं पर लगा बांध की उद्विग्नता के कारण शिथिलता पाते ही कुछ लोग खुद पर नियंत्रण न रख पाए। उन्हें यह भी ध्यान या ज्ञान नहीं रहता कि यह शिथिलता प्रशासन दे रहा है संक्रमणकारी रोगाणु, जीवाणु या विषाणु नहीं।उसकी दृष्टि में पढ़ा-लिखा - अनपढ़, अमीर-गरीब, कुशाग्रबुद्धि-मंदबुद्धि, शहरी-ग्रामीण,सवर्ण-दलित सभी एक समान हैं।"

"यह सोच ही तो वह कारण है जिससे संक्रमण के मामले दिल्ली पूरे देश के सारे शहरों को पछाड़ कर नंबर एक पर आ गई।सड़क पर उमड़ती भीड़ में बहुत से लोग दो गज की शारीरिक दूरी और मास्क सहित दूसरे दिशा-निर्देशों की धज्जियां उड़ाने में किसी प्रकार के अपराध बोध स्थान पर स्वयं को गौरवान्वित सा अनुभव कर रहे हैं।यह संक्रमितों और जान गंवाने वालों की संख्या लोगों को केवल समाचारों का आंकड़ा लगती है। केवल अंधेरा तब छा जाता है जब इस श्रेणी में कोई उनका अपना प्रियजन-परिजन आता है।इस भीड़ में क्या सचमुच वे ही आए होंगे जिनका घर से बाहर निकलना अपरिहार्य था। हमने लाकडाउन के समय में भी ऐसे सिरफिरों को देखा और उनके गैरजिम्मेदाराना रवैए का दुष्परिणाम भोगा और भोग रहे हैं।" 

"सोशल मीडिया पर अनेक भ्रामक खबरें भी आती है। कुछ लोग किसी सूचना का अपनी सुविधा के अनुसार अर्थ लगा लेते हैं। ऐसे में हम लोगों को क्या करना चाहिए।"-अनमोल ने अपना प्रश्न रखा।

"सभी लोगों को और विशेषकर युवा शक्ति को सही स्रोत से प्रामाणिक जानकारी अर्जित करके जन जागरूकता अभियान चलाकर सही तथ्यों को उचित स्वीकार्य ढंग से सबके बीच रखते हुए लोगों को जागरूक करने की जिम्मेदारी लेकर जन-भागीदारी की श्रृंखला प्रक्रिया अनवरत चलानी होगी। समाज से एक समस्या जाती है तो दूसरी आ जाती है। हम सबका यह दायित्व है कि अपनी पूरी शक्ति के साथ समाज के प्रति अपने दायित्व का निर्वहन करते रहें। अनलॉक तो अनिवार्य रूप से होना ही है। स्थानीय परिस्थितियों का आकलन कर स्थानीय प्रशासन को निर्णय की शक्ति इसी लिए तो दी गई है।अब लोगों को समझ की शक्ति की जिम्मेदारी तुम्हारे जैसे समझदार और साहसी युवा शक्ति की है। " -चारों युवाओं को शुभ कामनाओं से परिपूर्ण सकारात्मकता भरा आशीर्वाद देते हुए डॉक्टर विजय ने विदा ली और चारों युवाओं ने करबद्ध प्रणाम करते हुए उनकेआशीर्वाद और संदेश एवं अपने दायित्व को हृदयंगम कर लिया।


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