vijay laxmi Bhatt Sharma

Drama

5.0  

vijay laxmi Bhatt Sharma

Drama

अनकहा सा

अनकहा सा

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काकी रोज घर आती थी तब वो काकी नहीं थी अच्छी खासी खूबसूरत युवती होती थी, वक़्त के साथ साथ बहुत कुछ घटित होता रहा और खूबसूरत सुन्दर युवती कभी कभी बहुत से नीले निशानों के साथ आती रोहन बहुत छोटा तो नहीं था पर इतना बड़ा भी नहीं था जो कुछ समझ पाता।

यदा कदा उसके कान में मां की आवाज आती छोड़ क्यूं नहीं देती ऐसे दरिंदे को... तो आवाज आती भाभी कहां जाऊं अब तो एक और आने वाला है आप तो जानती हैं एक बार ब्याह कर माता पिता भी सोचते हैं की अच्छा हुआ अब हम गंगा नहा लेते हैं और कह दिया जाता है अब वही तुम्हारा घर है जिस हाल में भी पति रखे ससुराल वाले रखें, उसके माता पिता ने ये कह कर अलग कर दिया भाई रोज रोज पीकर यहां उलधम करता है।

अब तू ही संभाल तेरा पति है अब कहो भाभीजी कहां जाऊं सभी दरवाजे बन्द हैं अब यही मेरा नसीब है... वो रोज आती मां के साथ काम मै हाथ बंटाने के साथ साथ अपना सुखदुख बांटती और मां के काम प्र जाने के बाद मेरा ध्यान रखती जब तक मां घर नहीं आ जाती... पिता कभी मां के काम में कोई दखलंदाजी नहीं करते थे अमूमन वो घर से बाहर ही रहते थे अपने काम के सिलसिले में इसलिए मां को भी शायद काकी बहुत पसंद थीं...

वक़्त बीतता गया उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया वो कुछ बड़ा ही हुआ था की उसके पिता एक हादसे के शिकार हो गए और फिर वो युवा काकी हमारे साथ ही रहने लगी उनके बेटे को पढ़ाने की जिम्मेदारी मां ने के उसे एक हॉस्टल भेज दिया यही काकी की मर्जी थी मै भी अपनी उच्च शिक्षा के लिए बाहर चला गया पिता का कारोबार बड़ गया पर मां की साथी अब काकी ही थी दोनो साथ साथ बूढ़ी हों रहीं थीं और हम बड़े एक दिन जब मैं घर लौटा तो मां को प्रणाम कर उन की तरफ बड़ा और अनायास मुंह से निकला प्रणाम काकी वो पीछे हट गई थीं क्या के रहे हो रोहन बाबा...

क्या गलत कर रहा हूं हर वक़्त साए की तरह मेरे बचपन से बड़े होने तक जो मेरे साथ रहीं वो आप थीं... मेरी मां के अकेलेपन की साथी आप ही थीं और आज जब मै आपको आपके अधिकार का मान देना चाहता हूं तो आप पीछे हट रहीं हैं..

मेरी मां की खातिर आप अपने बेटे के साथ नहीं गईं की वो अकेली हो जायेंगी मैं इस कुर्बानी का अर्थ समझता हूं आपके बेटे से मुलाकात हुई थी अब वो भी हमारे साथ रहेगा आपके स्वाभिमान को ठेस ना पहुंचे इसलिए सामने वाला गेस्ट हाउस साफ करा दिया है सब यहीं इसी दायरे में मिलजुल कर रहेंगे आपने जो किया हमारे लिए उसका कर्ज तो मै चुका नहीं सकता पर आपका बड़ा बेटा होने के नाते इतना अधिकार मैंने स्वयं ले लिया कह कर मैंने काकी के पांव की धूल ले उनके झर झर बहते आंसू पोंछ मां को भी गले लगा आंसू ना बहाने की विनती की तो दोनो ने आशीर्वाद की झड़ी लगा दी... एक अनजान रिश्ता कब काकी बन गया पता ही नहीं चला।


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