अंदरुनी जख्म
अंदरुनी जख्म
ढोलक की लगातार तेज होती आवाज़ से सुहासिनी का रोम-रोम तिलमिला उठता।बाहर दरवाजे पर, किसी छोटे बच्चे की ,लगातार आती आवाज़ कान के पर्दे फाड़ रही थी।सुनकर भी अपने ही विचारों में खोई सुहासिनी उस आवाज़ से अंजान बनी रही।
"आंटी जी,जल्दी आओ मंगल गीत शुरू हो गए है।सब आपको बुला रहे हैं।"
जब बच्ची का खटखटाना ज्यादा तेज हुआ,तो दोनों हाथों से कान को कसकर बंद कर लिया।
फ़ोन की घंटी बजने पर,उसे भी एक तरफ उठा कर रख दिया।
"सुहासिनी...." कंधे पर किसी ने हाथ रखा तो रोम-रोम सिहर उठा।
"नहीं जाना मुझे।हाँ... नहीं सुनी मैंने किसी की आवाज़।"कह अभिषेक के सीने से लग रो पड़ी।
"सच से भागकर क्या हासिल होगा सुहू?जितनी जल्दी सामना कर लोगी जीवन सहज हो जाएगा।"
"कैसी बातें करते हैं जी आप!क्या इंसान का वजूद बस-तब तक है,जब तक वो सांस ले रहा है?रत्ना और मेरा रात दिन का साथ था।वो दर्दनाक दिन उस और उस काली रात का मंजर दिमाग से निकाल भी न पाई थी और ये....।"
"देखो सुहू जितनी जल्दी खुद को संभाल लोगी अच्छा है।जाने वाले चले गए,पीछे से जो रहे,उन्होंने अपनी खुशी ढूंँढ ली।इस स्वार्थी दुनियांँ में भावनाओं की कोई जगह नहीं।जाओ ,सच का सामना करो।क्या पता रत्ना की आत्मा तुम्हें वहांँ देख कुछ समय के लिए शांत हो ले!"
"जी" कह सुहासिनी बगल के मकान में गाए जा रहे मंगल गीतों में चल दी।
जैसे ही दरवाजे पर पहुँची पाँव ठहर गए।दोनों सहेलियाँ नेम-प्लेट एक साथ बनवा कर लाई थीं।सहसा ही मुस्कान उसके चेहरे पर आ गई।
"देखो सुहासिनी अपना नाम जरूर लिखवाएंँगे।"
"रत्ना अपना नाम!क्या करोगी?कौन जानता है हमें !ऐसा करो तुम्हारी नेम-प्लेट में मि. एंड मिसिज़ सोमिल लिखवा लो।"
"ना जी ना इसमें मेरा नाम कहाँ है!भैया ऐसा करो 'रत्ना-सदन' लिख दो।"
पलट कर बोली ,"अब तो सब जान जाएंँगे!"और कह हँसने लगी।
"आंटी आपको अंदर बुला रहे हैं।"जैसे ही बच्ची ने हाथ खींचा सुहासिनी की नजर नेम-प्लेट पर गई।पेंट करते समय रंग रत्ना नाम पर गिर गया होगा पर किसी ने साफ करने की जहमत भी न ऊठाई।शायद आज किसी के लिए उसका वजूद भी जरूरी न था।
"आइये भाभीजी" कह सोमिल ने हाथ जोड़ दिए।"
"आज अगर आप न आतीं,तो मैं खुदको कभी माफ न कर पाता।"
वहाँ गीतों के बीच बातें भी चल रही थीं।जैसे ही सुहासिनी पहुँची सबकी नजर उसपर जा टिकी।
सामने फूल माला पहने रत्ना की फ़ोटो टंगी थी।वही निश्चल सी मुस्कुराहट,मासूमियत और अनकहा सा दर्द।उस चेहरे को देख सुहासिनी के आँसू छलक पड़े।नजर बार-बार वहीं अटक रही थी।
नई-बहू सबके बीच बैठी थी।उसे देख मन ही मन सोमिल से घृणा होने लगी।इतने सालों के साथ में जब महीने भर में उसे भुला दूसरा विवाह कर लिया तो उस आदमी का क्या विश्वास!कितना प्यार करती थी।एक पल के लिए भी उसे अकेला ना छोड़ती।मेरी शादी के एक महीने बाद बहू बन मेरे पड़ोस में आई थी।छोटी सी थी,बीसवां वर्ष पूरा हुआ था।अच्छा लड़का मिल गया तो पिताजी ने शादी कर दी थी।नाजुक सी,छोटी सी,दीवार से झांँक बोली,"आप ही सुहासिनी भाभी हैं?ये कह रहे थे कभी मन ना लगे तो बगल में भाभी के पास चली जाना।"धीरे-धीरे बातों और मुलाकातों का दौर बढ़ता गया।
बिचारी को भगवान ने इस छोटी सी उम्र में क्या दिया!सात-आठ साल बच्चे के लिए इंतजार किया।क्या-क्या तकलीफें नहीं सही!दुनिया भर के टोटके ,पूजा-पाठ, इलाज,जिसने जो बताया सब किया लेकिन भगवान ने उसे ममता से वंचित रखा।कितना रोई थी उस दिन आकर,"भाभी हार गई मैं।जीने का कोई उद्देश्य नहीं रहा।"
सोमिल के प्यार ने उसके जीवन को गति दी।
कितनी खुश थी उस दिन,दौड़ी चली आई,"भाभी मुझे तो लग रहा है जैसे आज मुर्दे में जान आ गई।मैंने बताया था ना दीदी ने गलती से कन्सीव किया था।उनकी दो साल की बेटी है। उन्होंने फैसला लिया है वो बच्ची मेरी ममता की छांँव तले पलेगी।"
मंगल गीत गाए गए।घर को सजाया गया।बिटिया का नाम खुशी रखा।उसे जीने का मकसद मिल गया था।अचानक एक दिन सोमिल को अटैक आ गया।पर बच्ची की किस्मत का पलड़ा भारी था, वो जल्द ही ठीक हो गए।बहुत प्यार से पाला खुशी को।कभी एक आँसू नहीं गिरने देती।खुशी बड़ी होने लगी।स्कूल से कॉलेज तक आ गई।उसके लिए जीवन का सार खुशी थी।
बढ़ती बच्ची में बदलाव आने लगे।उसे कुछ समझाने को रत्ना टोकती, तो उसे अच्छा नहीं लगता।जैसे-जैसे बड़ी होती जा रही थी उसका मासूम स्वभाव बदलने लगा।उसे रत्ना की हर बात से परेशानी होने लगी।
"गलत को गलत कहना भी उसे बुरा लगता है,भाभी।"
"देखो रत्ना इस उम्र में बच्चों में बहुत परिवर्तन होते हैं।चिंता मत करो।सब ठीक हो जाएगा फिर तुमने उसे कभी कुछ नहीं कहा इसलिए उसकी सहनशक्ति भी थोड़ा कम है।"
एक दिन घबराती हुई रत्ना बदहवास सी भागी चली आई।दीदी,दीदी...खुशी !... सुबह मेरे टोकने पर नराज होकर निकली थी।जगह-जगह ढूंँढा...।"
इतने में दीदी का फ़ोन आया,"आज खुशी सही जगह पहुँच गई है।बहुत एहसान किया तुमने,मेरी बेटी को उन्नीस साल रखा।मुझे पता होता मेरी इतनी होनहार बेटी को तुम इस तरह परेशान करोगी,तो तुम्हें उसे देने की भूल मैं कभी नहीं करती।सच है,जो माँ न बन सकी वो ममता कहाँ से लाती ।"
"दीदी,ऐसा मत कहो।मैने तो उसे नाजों से पाला था।अपने दिल के टुकड़े की तरह अपना अंश समझ।गलत को गलत भी तो मांँ ही बताती है,मेरी परवरिश में,मेरी ममता में कहाँ गलती रह गई,नहीं जानती!नहीं जानती जो इंसान मेरा सब कुछ था उससे मैं इतना दूर कब और कैसे हो गई।इतना कि मेरा प्यार उसके लिए बेड़ी बन गया और मुझे आभास तक नहीं हुआ!मुझे खुशी से बात करवा दीजिए। मैं नए सिर से शुरुआत कर,अपनी गलती सुधारना चाहती हूंँ।उसके बिना मैं अधूरी रह जाऊँगी।"
"खुशी,मेरी बच्ची! कुछ बोल बेटा। जो माँ तेरे बिन दो घंटे नहीं रह पाती,उसे छोड़ आज तू,दो दिन रह ली।वापिस आजा बेटा तेरे बिन मेरे जीवन का कोई आधार नहीं।"
"आप मेरी चिंता न करें। मैं अपनी मम्मी के पास खुश हूँ।"
बेटी के शब्द उसे अंदर तक चकनाचूर कर गए पर उसके टूटने की आवाज़ किसी ने नहीं सुनी।
"देखो सुहासिनी भाभी ये सब क्या हो गया।अब मैं कैसे जीऊँगी!मेरा सब कुछ चला गया।आप साक्षी हैं मेरी ममता की।"
धीरे-धीरे रत्ना के चेहरे से खुशी जाती रही।अंदरूनी जख्म उसे अंदर तक खोखला कर गया और एक दिन सुबह-सुबह एम्बुलेंस की आवाज़ ने सुहासिनी के दिल की धड़कन बढ़ा दी।आवाज़ें बढ़ती गईं लोग इकट्ठा होते रहे।
'बिचारी...'.संबोधन के साथ जब वो भाग वहाँ पहुँची तो रत्ना के चेहरे पर वही शांत सी मुस्कुराहट थी।गर्दन एक तरफ लटकी थी।पुलिस सबको हटा उसके मृत शरीर को पंखे से उतार रही थी।मुँह पल्ले से दबाए सुहासिनी अपने साथी का चेहरा देख उसकी तकलीफ नहीं भूल पाई और खुशी को जितनी बद्दुआएं दे सकती थी देकर अपना मन हल्का कर लिया।
सुसाइड नोट मिला जिसमें स्वेच्छा से मरने का लिखा था।
पुरानी सब बातें याद कर सुहासिनी के चेहरे से आँसू टप-टप कर गिरने लगे।
"सुहासिनी....!"कहाँ खो गईं बेटा।पहचाना?मैं रत्ना की माँ।"
"आंटी जी आप !"कह सुहू चेतना में आई।रत्ना की फ़ोटो पर से नजर हटाई।
"चलो थोड़ी देर तुम्हारे घर चलते हैं।"रत्ना की माताजी ने कहा।
"आंटी जी आप,आप कैसे आ सकती हैं! उस आदमी के पास, जो दो महीने में आपकी बेटी को भूल उसकी जगह दूसरी को....।"
"रत्ना सोमिल से बहुत प्यार करती थी।जब डिप्रेशन में आई तो बोली,"माँ सोमिल का ध्यान आपको रखना है।मैं तो टूट कर बिखर गई हूँ,न जाने अब कभी संभल भी पाऊँगी कि नहीं।ये अंदरूनी घाव जो मुझे अंदर तक खोखला कर रहा था।अब नासूर बन चुका है।सोमिल आपकी जिम्मेदारी हैं इनकी ख़ुशी के लिए जो उचित लगे करना।"
"सोमिल ने बहुत मना किया।स्नेहा,गरीब घर की लड़की है।सोमिल की तकलीफ को देख रत्ना की कसम देकर ये रिश्ता मैने ही करवाया।ये सोच कि बेटी खो चुकी हूंँ ,किसी का बेटा न चला जाए।सुहासिनी तुमने जैसे रत्ना का साथ दिया स्नेहा का भी देना।"कह माँ चली गईं।
सुहासिनी सोचने लगी,आज रत्ना का वजूद भी उस घर से मिट गया।भगवान हर औलाद में माँ-बाप के प्रति भी उतनी ही ममता दे जितनी ममता माँ-बाप के दिल में होती है।"
दो-तीन दिन बाद सुहासिनी को आवाज़ आई,"भाभी..
... सुहासिनी भाभी आप ही है ना!कल रत्ना दी का चौथा महीना है उनके आशीर्वाद से मेरा जीवन बदल गया।आप उनके सबसे करीबी रही हैं। मैं चाहती हूंँ घर में खाने से लेकर लेन-देन,भजन-कीर्तन सबमें से उनकी महक आए।आप मदद करेंगी ना!"
जीवन फिर चल पड़ा नए साथी के साथ आज बस रत्ना की जगह स्नेहा थी।
