अंधविश्वास का साम्राज्य
अंधविश्वास का साम्राज्य
"देखोना मम्मी जी मुन्ना कबसे रोये जा रहा है और बुखार के साथ इसके शरीर पर ये कुछ लाल लाल दाने भी हैं ।,,
प्रिया ने अपनी सास सुमित्रा जी को अपने एक साल के बेटे के शरीर में उभर आये लाल दानों को दिखाते हुऐ कहा तो उन्होंने ध्यान से उसे देखते हुऐ कहा.......
"अरे बहू इसे तो माता ( चेचक) निकल आईं हैं और तुम कल से महीने से हो शायद इसीलिये मुन्ना खीज रहा है क्योंकि जब माता आती हैं तो रजस्वला वाली स्त्रियों को उनके आसपास भी नहीं आना चाहिए और तुम तो मुन्ना को गोदी में लेकर घूम रही हो। लाओ इसे मुझे दो और अबसे मुन्ना के सही होने तक तुम इसको छूना मत।,,
"पर मम्मी जी मुन्ना तो इतना छोटा है वो मुझसे दूर कैसे रहेगा ।एक काम करती हूं मैं इसे अपने पास ही रखती हूं मैं साफ सफाई का पूरा ध्यान रखूंगी।और उसे डॉक्टर को भी दिखा लाती हूं।,,
अपनी सास की बात सुनकर प्रिया घबराते हुऐ बोली तो सावित्री जी उसे झिड़कते हुऐ बोलीं.....
"एक बार में बात समझ नहीं आती जब मैने बोल दिया कि दूर रहो तो दूर रहो मैं संभाल लूंगी उसे ।और माता आने पर डॉक्टर को दिखाने की जरूरत नहीं होती वो तो हमारे भजन पूजन से खुश होकर दो चार दिन में स्वत:ही चली जायेंगी।,,
सासो मां के साथ प्रिया की ननद काव्या ,ससुर और खुद उसके पति की भी यही राय थी कि वो उससे दूर रहे और डॉक्टर से भी दूर रहे। तो मन मारकर वो अपने काम में लग गई पर मुन्ना बोतल से दूध पीकर थोड़ी देर तो खेलता फिर थोड़ी देर में ही दहाड़े मारकर रोने लगता जिसे सावित्री जी बमुश्किल चुप करा पातीं।
मुन्ने को रोता देखकर प्रिया का कलेजा मुंह को आता उसे लगता दौड़कर वो उसे अपनी गोद में उठा सीने से लगा ले।पर फिर अगले ही पल मुन्ने की तबियत और उसका भला सोच (क्योंकि घर के सभी लोगों के हिसाब से उससे दूर रहने में ही उसकी भलाई थी) वो जैसे तैसे अपने मन को कड़ा कर खुदको रोकती। क्योंकि अंधविश्वास के साम्राज्य में जकड़ी पूराने ख्यालात की उसकी सासो मां की ये पुरानी आदत थी जब भी वो महीने से होती बड़ी छुआ छूत मनाती फिर अभी तो मुन्ने को माता आईं थी अगर वो मुन्ने के आसपास भी दिख जाती तो उसकी सारी बिमारी का दोष सावित्री जी उसी के सर मढ़ देती।
अभी मुन्ने को माता आये एक दिन ही हुआ था कि प्रिया की ननद काव्या को भी बुखार के साथ माता आ गईं।बुखार की गर्मी से प्रिया की ननद को बिना समय के पीरियड भी चालू हो गया। उधर मुन्ने की भी हालत बिगड़ती जा रही थी।अब प्रिया से रहा न गया उसने मुन्ने और काव्या को डॉक्टर के यहां ले जाने की ठान ली ।
उसको तैयार होता देखकर सावित्री जी मुंह बनाते हुऐ बोलीं ....
" छोटे से बच्चे को बीमार छोड़ कहां चली बहू तुम्हारी सवारी?"
"डॉक्टर के यहां जा रहीं हूं मम्मी जी मुन्ने और काव्या को लेकर।,,
प्रिया ने सधे शब्दों में कहा तो सावित्री जी उससे लगभग चिल्लाते हुऐ बोलीं....
"एकबार समझाने से बात समझ नहीं आती क्या जब कहा है कि माता अपने आप ठीक हो जायेंगी तो हो जायेंगी बस तुम उन दोनों से दूर रहो।मुन्ना की भी हालत तुम्हारी वजह से ही बिगड़ गई है क्योंकि जब उसको माता आईं तब तुम महीने से थी और तुमने उसे छुआ इसलिये उसे छूत लग गई देखना अब वो तुमसे दूर है तो कितने जल्दी ठीक होता है।,,
"और वो जो काव्या माता निकलने के साथ ही महीने से हो गई उसको उसके ही शरीर से कैसे दूर रखोगी मम्मी जी।सच तो ये है कि ये चेचक एक बिमारी है इसमें हमारे महीने से होने या न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता न ही बीमार को कोई छूत लगती है।हां इसमें साफ सफाई का ख्याल रखना चाहिये वो मैं पूरा रख रही हूं और अब इन लोगों को डॉक्टर को भी दिखाऊंगी ताकि वो जल्दी ठीक हो जाऐं।,,
ये कहते हुऐ प्रिया मुन्ने और काव्या को गाड़ी में बिठा निकल गई।डॉक्टर के यहां से आकर जब प्रिया ने अपनी सासो मां को बताया कि.....
"डॉक्टर के हिसाब से ये बिमारी एक दूसरे से साफ सफाई का ध्यान न रखने से फैलती है! और इसका इन्फेक्शन चौदह दिन पहले ही हो जाता है। मैने पता किया है जब चौदह पंद्रह दिन पहले काव्या मुन्ने को लेकर अपनी सहेली के यहां गईं थीं तब उनके यहां किसी को चेचक आईं थीं वहां से आकर मेरे लाख कहने पर आपने मुन्ने और काव्या को ये कहकर कि...
"अभी तो कपड़े बदले थे बिल्कुल साफ है ये तो"
न तो कपड़े बदलने दिये न ही साबुन से उसके हाथ मुंह धोने दिये बस इसीलिये उसको इन्फेक्शन हो गया है।डॉक्टर ने दवाई दी है जल्द ही दोनों को आराम मिल जायेगा।
प्रिया का कहना एकदम सही था दवाई खाने और प्रिया की देखभाल से दूसरे दिन ही दोनों को बुखार में आराम मिल गया और तीसरे दिन दानों में। ये देखकर सवित्री जी को भी समझ आ गया कि महीने से होने में कोई छूत नहीं होती ये तो एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। उसदिन के बाद उन्होंने बहू के उन मुश्किल दिनों में उसे छुआ छूत के तानें सुनाना छोड़ समझना शुरू कर दिया।और किसी भी बिमारी में अंधविश्वास के साम्राज्य को छोड़कर उसे बीमारी की तरह ही ट्रीट कर दूर करना भी।