अँधेरी दोपहर
अँधेरी दोपहर
"अरे मैडम ,मौसम खराब हो रहा है। आज तो आप जल्दी निकल लीजिये। ",वृंदा के साथी प्रोफेसर ने कहा।
गहन सोच में डूबी हुई प्रोफेसर वृंदा ने उनकी बात को सुना -अनसुना करते हुए ,अपनी आँखें किताब में गड़ाए हुए ही कहा ," जी सर। "
प्रोफेसर साहब फिर दूसरे साथियों से गपशप में व्यस्त हो गए थे । वृंदा किताब पढ़ नहीं रही थी ;इतनी देर से किताब की ओट में अपनी ज़िन्दगी के एक अहम् फैसले के विषय में सोच रही थी;उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि ज़िन्दगी उसे ऐसे दोराहे पर लाकर खड़ी कर देगी ,जहाँ से आगे बढ़ने के लिए किसी भी राह को चुनना इतना मुश्किल हो जाएगा ।
किताब से जैसे ही वृंदा कि नज़रें हटी , उसने खिड़की से बाहर देखा ,नीला आसमान अचानक से काला स्याह हो गया था। बादलों ने सूरज को अपने आगोश में छिपा लिया था;मानो आज बादलों ने सूरज का क़त्ल ही कर दिया हो।कुछ देर पूर्व तक सूरज की रोशनी से चमचमाती धरती के चेहरे पर कालिमा छा गयी थी ;दिन में भी रात हो गयी थी । वृंदा की भी तो सुकून भरी ज़िन्दगी में ऐसे ही अचानक से अँधेरे ने दस्तक दे दी थी।
जब तक वृंदा प्रभात से नहीं मिली थी ;सब कुछ सही तो था। ऐसे ही तो एक अँधेरी दोपहरी में उसे कॉलेज से घर जाते हुए प्रभात मिल गया था। मौसम की ऐसी मेहरबानी थी कि न तो कोई ऑटो मिल रहा था और न ही कोई टैक्सी। बड़ी मुश्किल से एक ऑटो आता हुआ दिखाई दिया मानो प्यासी धरती को बारिश की, दो बूँदें मिल गयी हों .यहाँ पर एक अनार दो बीमार वाली जैसी स्थिति हो गयी थी .ऑटो एक था और जाने वाले दो ,वृंदा और प्रभात। मजबूरी में दोनों को एक ही ऑटो में एक साथ सफर करना पड़ा था। उसके बाद भी संयोग से दोनों की २ -४ और मुलाकातें हुई। यह संयोग तो केवल वृंदा के लिए था ;लेकिन प्रभात ने योजनाबद्ध तरीके से मिलने का प्रयास किया था।
धीरे -धीरे मुलाकातें बढ़ी ;दोस्ती हुई ;प्यार का इज़हार हुआ। यहाँ तक तो सब सही था। लेकिन अब पिछले कुछ दिनों से प्रभात ,वृंदा पर शादी के लिए दबाव बना रहा है।वृंदा के लिए यह प्रस्ताव गले में अटकी हुई हड्डी बन गया था;न निगलते बन रहा था और न उगलते .वृंदा का अतीत उसे इस प्रस्ताव को मानने से रोक रहा था ।वृंदा समझ नहीं पा रही थी कि वह प्रभात को अपने अतीत के बारे में क्या और कैसे बताये ?
उसे डर था कि उसके जनम और परिवार की सच्चाई जानकर कहीं प्रभात उसे छोड़ कर ही न चला जाए। विवाह के पूर्व प्रभात और उसके परिवार को सच्चाई बताना जरूरी भी है ;उन्हें सचाई जानने का पूरा हक़ भी है । झूठ की बुनियाद पर कोई भी रिश्ता लम्बे समय तक नहीं चलता।लेकिन वह सच्चाई कैसे बताये ; झूठ के साथ जीना सच का सामना करने से कहीं अधिक आसान होता है .
प्रभात उसके जीवन में खिली हुई धूप से ओतप्रोत चमकीली दोपहर जैसे था ,जिसके कारण उसके जीवन में एक नयी रोशनी बिख़र गयी थी । लेकिन अब विवाह का प्रस्ताव ,काला स्याह बादल बनकर इस रोशनी को निगल रहा था .
वृंदा एक अनचाही संतान थी . वृंदा की माँ एक वेश्या थी ;जो अपने जीवन का संचालन अपने शरीर का सौदा करके करने को मजबूर थी . जिन्होंने कठिन और विपरीत परिस्थितियों से लड़कर वृंदा को आज इस मुकाम तक पहुँचाया था । अपनी पृष्ठ्भूमि के कारण हमेशा से ही वृंदा अकेले ही रही थी ; वह हमेशा दूसरों से सुरक्षित दूरी बनाकर ,अपने काम से काम रखने वाली लड़की रही थी ।वृंदा को अपनी माँ पर गर्व है।
उसने एक बार अपनी माँ से पूछा भी था कि ," माँ ,तुमने मुझे अपने गर्भ में ही क्यों नहीं मार दिया ?इस पाप को क्यों जनम दिया ?वैसे भी तो यह बीज आपके गर्भ में अनचाहे ही तो आ गया होगा . "
" बच्चा ,पाप नहीं होता है। पापी तो यह दुनिया है। अपने पाप को न्यायोचित ठहराने के लिए बच्चे को पाप की निशानी बोल देती है। तू तो मुझे ईश्वर का दिया सबसे पवित्र और अनमोल उपहार थी । तुझे कैसे नष्ट करती भला ? तेरे कारण ही तो मुझे जीने कि एक वजह मिल गयी थी .मेरी अँधेरी ज़िन्दगी में तू एक रोशनी बनकर आयी थी .",माँ के इस उत्तर ने वृंदा के अशांत मन को शांत कर दिया था।
माँ की यह बात याद करते ही जैसे वृंदा गहरी निद्रा से जाग गयी थी । एक मजबूत और दृढ निश्चयी माँ की बेटी भला इतनी कमजोर कैसे हो सकती है। अंधेरों में जीने वाली उसकी माँ ने उसे रोशनी के साथ जीना और आगे बढ़ना सिखाया था।उसे इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए उसकी माँ ने भी तो कितनी लड़ाइयाँ लड़ी थी ; अपनी अंदर की दुनिया से और बाहर की भी दुनिया से .माँ ने अकेले ही यह लड़ाई लड़ी और जीती भी .तब ही तो वृंदा माँ की उस काली दुनिया का हिस्सा नहीं है .वह अपनी प्रतिभा के बल पर अपना जीवन जी रही है . मजबूत माँ की बेटी वृंदा इतनी कमजोर नहीं हो सकती है .
वृंदा ने आखिर अपनी राह चुन ही ली थी ; वह प्रभात को सब कुछ बता देगी। उसके बाद प्रभात जो भी निर्णय ले ;प्रभात की मर्ज़ी है।
वृंदा ने बाहर देखा तो काले बादल छंट चुके थे। सूरज फिर उसी प्रकाश के साथ चमक रहा था। वृंदा के भी चिंता के काले बादल छंट चुके थे ;उसकी मुस्कान में पहले वाली चमक लौट आयी थी।