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Kumar Vikrant

Tragedy Crime

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Kumar Vikrant

Tragedy Crime

अँधा कुआँ- घड़ी

अँधा कुआँ- घड़ी

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तीन दिन से उस अंधे कुएं में गिरी दिवा की एकमात्र साथी थी उसकी कलाई घड़ी जिसके रेडियम से चमकते अंक उसे समय का अंदाजा देते थे। पहले दिन वो सहायता के लिए पुकारती रही, चिल्लाती रही; लेकिन न कोई मदद को आया न ही किसी की आवाज ही उस पाताल तोड़ कुएं की तली तक पहुँच सकी।

चिल्लाते-चिल्लाते उसकी आवाज बैठ चुकी थी अब वो उस अंधे कुएँ की सीलन भरी तली पर कभी लेट जाती थी कभी बैठ जाती थी। लेटते बैठते समय उसे सिर्फ सुदीप की याद आती थी; न जाने उसने साथ ऐसा क्यों किया?

एक साल पहले

"दिवा मेरी जान मुझे उम्मीद न थी कि अपनी ऑनलाइन दोस्ती सिर्फ एक ही मुलाकात प्यार में बदल जाएगी।" सुदीप होटल की कमरे में दिवा का हाथ अपने हाथों में लेते हुए बोला।

"ज्यादा मत उड़ो आशिक महोदय, मैं एक शादीशुदा औरत हूँ.........."दिवा हँसते हुए बोली।

"जानेमन ये आशिक भी तो शादीशुदा है; लेकिन प्यार के बीच में ये हमारी शादियां कहां से आ गई?" सुदीप दिवा की आँखों में आँखें डालता हुआ बोला।

"जिस दिन इस आशिकी का मेरे पति को पता चल गया उस दिन तुम उसके हाथों भगवान को प्यारे हो जाओगे।" दिवा चेतावनी भरे शब्दों में बोली।

"तो क्या इलाज है इस बात का........क्या किया जाए तुम्हारे पति का?" सुदीप ने पूछा।

"बस संभल कर रहो.......छिप कर प्रेम करते रहो......." दिवा बोली।

"प्रेम तो ठीक है लेकिन मेरे डूबते कारोबार का क्या होगा.........ये होटलों के खर्चे कब तक उठा पाऊँगा?" सुदीप दिवा की आँखों में आँखें डालकर बोला।

"उसकी चिंता तुम मत करो; बहुत पैसा है मेरे पति के पास, मेरे पति की दौलत में अब तुम्हारा भी हिस्सा हो गया है; मैं तुम्हारे लिए सब कुछ करूँगी, तुम बस अब मुझे प्यार करने की चिंता किया करो बाकी सब मैं कर लुंगी।" दिवा प्यार भरे स्वर में बोली।

उसकी तो कभी कोई कमी नहीं रहेगी जानेमन, तुम जब चाहो, जहाँ चाहो बंदा वही तुम्हें प्यार करने के लिए हाजिर रहेगा।" सुदीप मधुर स्वर में बोला।

तीन दिन पहले

"सुदीप तुमने एक साल से मेरा जी भर कर यूज किया है, खूब पैसा लूटा है मुझसे। अब ऐसा क्या हो गया कि मुझसे किनारा कर रहे हो?" दिवा जंगल की पगडंडी पर सुदीप का हाथ थामे हुए चलते हुए बोली।

"नहीं मैं तुमसे किनारा नहीं कर रहा हूँ लेकिन मेरे बीवी बच्चे भी है उनको भी समय देना पड़ता है और रही यूज करने की बाद यूज तो तुमने भी खूब किया है मुझे......." सुदीप जंगल में आगे बढ़ते हुए थोड़ा गुस्से में बोला।

"मैं और तुम्हारा यूज, पागल मैंने प्यार किया है तुमसे......" दिवा भी ताव में आते हुए बोली।

"जैसे प्यार तुम मुझसे करती है फिर तो वैसा ही प्यार मैं तुमसे भी करता हूँ अब इसमें यूज होने और करने वाली बात कहाँ से आ गई?" सुदीप उसी उखड़े हुए लहजे में बोला।

"जिस लहजे में तुम बात कर रहे हो उससे तो लगता है कि तुम्हारा मन मुझसे भर चुका है इसलिए अब मुझसे किनारा कर रहे हो।" दिवा अपने गुस्से को शांत करते हुए बोली।

"दिवा प्रेम के लिए जिस समर्पण की जरूरत होती है तुम्हारा वो समर्पण सिर्फ मेरे लिए ही नहीं बहुत लोगों के लिए है और तुम जैसा प्रेम मुझसे पा रही हो उसी प्रकार का प्रेम न जाने कितनों से पा रही होगी इसलिए जो प्रेम के क्षण मेरे हिस्से में आते है उन्हें एन्जॉय करो और शिकवे शिकायत छोड़ दो।" सुदीप गंभीर स्वर में बोला।

"तुम्हारा मतलब मै हर किसी को अवेलबल हूँ, जो चाहे मुझे प्रेम कर सकता है?" दिवा गुस्से में तमतमाते हुए बोली।

"हर किसी को नहीं जिनके साथ तुम आजकल देखी जाती हो, होटलों में भी, सुनसान जगहों में भी.........." 

सुदीप गुस्से से बोला।

"होशियार मिस्टर सुदीप तुम मेरे चरित्र पर ऊँगली उठा रहे हो........" दिवा गुस्से से कांपते हुए बोली।

"हट कु...... तेरा भी कोई चरित्र है, दिन में सत्तर लोगों को अपने जलवे दिखाती घूमती है, मैं ही पागल तो जो तुमसे प्रेम कर बैठा।" सुदीप उसे गली देते हुए बोला।

"गाली देता है नीच, क्या नहीं किया मैंने तेरे लिए, तुझ फटीचर को कौन जानता था, बना फिरता था कलाकार दुम........" दिवा ज्वालामुखी की तरह फट पड़ी।

"क्या किया तूने मेरे लिए?" सुदीप गुर्रा कर बोला।

"हर जगह तुझे प्रोमोट किया, तेरी कलाकारी को बेशर्म होकर हर एक के सामने पेश किया, पैसे खर्चे तुझे अंधाधुंध नगद पैसा दिया।" दिवा जोर से बोली।

"और बदले में मेरे प्रेम का, मेरा यूज किया........" सुदीप उसी लहजे में बोला।

"और तो यूज हुई ही नहीं?" दिवा भड़कते हुए बोली।

"दोनों यूज हुए, दोनों ने एक दूसरे को प्रेम किया तो ये अहसान बीच में कहाँ से आ गया?" सुदीप ने पूछा।

"जिस लहजे में बोलोगे, उसी लहजे में जवाब मिलेगा। अब बताओ मुझे इस भयानक जंगल में क्यों लेकर आए हो?" दिवा नाराज लहजे में बोली।

"तुम्हें प्रेम करने के लिए......." सुदीप ने जवाब दिया।

"अच्छा; तो करते क्यों नहीं प्रेम?" निशा थोड़े शांत लहजे में बोली।

"तुम्हारा गुस्सा शांत हो तो कुछ करूं न......." सुदीप बोला।

"ये कौन सी जगह है?" शहर से दूर का ये हिस्सा तो मैंने आज तक देखा ही नहीं था।" दिवा बात बदलते हुए बोली।

"आजादी के बाद सरकार को यहाँ सोना मिलने की उम्मीद थी, उसी चक्कर में एक ड्रिलिंग कंपनी ने इस सारे एरिया में बहुत गहरे-गहरे कुए खोदे। सोना तो मिला लेकिन उसकी मात्रा इतनी काम थी कि फायदे के बजाय नुकसान होने की ज्यादा संभावना थी इसलिए यहाँ ड्रिलिंग बंद कर दी गई। अब ये पूरा क्षेत्र अंधे कुओं से भरा हुआ है, उन कुओ में आदमी या जानवर जो भी गिर जाता है वो कभी उन कुओ से बाहर नहीं निकल पाता है और वही मर जाता है।" सुदीप ने जवाब दिया।

"बहुत भयानक जगह है और ऐसी जगह तुम मुझे प्रेम करने के लिए ले आये अगर हम किसी कुएं में गिर गए तो बहुत बुरी मौत मरेंगे।" दिवा दहशत से बोली।

"उजाड़ जगह है, प्रेम करने के लिए इससे अधिक उचित जगह कहाँ मिलेगी?" सुदीप बोला।

"तो करो ने प्रेम; फिर इस मनहूस जगह से निकल जाते है।" दिवा चिंता से बोली।

"जो हुक्म, लेकिन प्रेम करने से पहले तुम्हें एक गिफ्ट देना चाहता हूँ......" सुदीप बोला।

"कैसा गिफ्ट?" दिवा ने पूछा।

"एक कलाई घड़ी.... इस कलाई घड़ी के नंबरों पर रेडियम लगा है, इसके नंबर अँधेरे में भी चमकते है। लो इसे तुम्हारे हाथ पर बांध दू ये घड़ी......" सुदीप बोला।

"लो बांध दो और मुझे प्रेम करो फिर चलो यहाँ से......" दिवा मुस्करा कर बोली।

"अब अपना मोबाईल मुझे दो।" सुदीप घड़ी दिवा के हाथ पर बांधते हुए बोला।

"क्या करोगे मोबाईल का?" दिवा अपना मोबाईल सुदीप को देते हुए बोली।

"अरे यार मेरे मोबाईल की बैटरी डाउन है, प्रेम करने से पहले तुम्हारे साथ एक सेल्फी लेनी है।" सुदीप एक अंधे कुए के किनारे पर खड़ा होकर दोनों को मोबाईल फोन की स्क्रीन में लेते हुए बोला।

"अरे दोनों फोकस में है अब लो सेल्फी।" दिवा हँसते हुए बोली।

"बिलकुल जानेमन, अब तुम्हे मेरी दी हाथ घड़ी की अहमियत का भी पता लग जाएगा।" कहते हुए सुदीप ने अपनी कोहनी जोरदार तरिके से दिवा के पेट में मारी।

दिवा संभल न पाई और चीखते हुए अंधे कुएँ में गिरती चली गई।

सुदीप ने चीख कर कहा, "मर सा.... चली थी मुझ पर अहसान जताने, बदचलन कहीं की।" कहते हुए उसने दिवा को फोन अपने पैरो से कुचल कर तोड़ दिया और टूटे फोन के टुकड़े भी उसी अंधे कुएं में फेंककर वहां से चला गया।

पाँच दिन बाद

आज उस अंधे कुँए में गिरे हुए दिवा को पाँच दिन बीत चुके थे; खाने और पानी की कमी से दिवा लगभग अधमरी हो चुकी। अब वो समझ चुकी थी कि उसकी मृत्यु नजदीक है इस वीराने में उसे बचाने के लिए कोई नहीं आएगा। उसके जहन में सुदीप जैसे हर आदमी तस्वीर उभर आई जिनके साथ मिलकर उसने हर पाप किया था। तभी उसकी निगाह सुदीप की दी कलाई घड़ी के चमकते नंबरों पर गई उसने नफरत के साथ घड़ी उतार कर उस अंधे कुए की दीवार पर दे मारी, घड़ी दीवार से टकरा कर उछली और फिर से उसके पास आ गिरी। दिवा की साँसो की तरह घड़ी भी रुक चुकी थी लेकिन उसके रेडियम लगे नंबर अभी भी चमक रहे थे।


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