अकेलापन

अकेलापन

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“हैलो माँ क्या कर रही हो “फोन पर सुबह सबेरे शलभ की आवाज सुन कर दीपा जी का मन प्रसन्नता से भर गया।जब से शलभ नौकरी के सिलसिले में उनसे दूर हुआ है बाकी लोगों के रहते हुये भी उसकी चुलबुली शरारतों के बिना पैदा हुआ घर का अकेलापन तो जैसे काटने को दौड़ता है। पर सुबह का समय काम का होता है तो वह फोन जल्दी रखनें के मूड में थीं उन्हे लगा कि यह तो उसके ऑफ़िस जानें का समय है तो वह बात क्यों कर रहा है। तो उन्होंने कहा “अच्छा बेटा फोन रखो तुम ऑफ़िस जानें की तैयारी करो।”

“माँ तुम फोन मत काटना। मैं बहुत परेशान हूँ। इस महानगरी में कोई मुझसे बात करनें वाला नहीं है। दिन तो पूरा ऑफ़िस में काम करते गुजर जाता है। शाम को जब घर आता हूँ बहुत थक जाता हूँ और रात में सो जाता हूँ। कल तुमको फोन मिलाया तो फोन उठा नहीं। अब मैं कैब का इन्तजार कर रहा हूँ जब तक वह आती नहीं मुझको बोलनें देना। बहुत दिन तक चुप रह कर अकेले रहते हुये पक सा गया हूँ। चारों तरफ दौड़ते भागते लोगों की भीड़ के होते हुये भी मैं इस समय नितान्त अकेलापन महसूस कर रहा हूँ। तुमसे बात करके लगता है कि तुम कहीं मेरे आस पास ही हो। और जब डाँटती हो तो बहुत ही अच्छा लगता है। “

सुलभा जी सोचने लगीं “यहाँ तो हमारा कुछ कहना बुरा लगता था इसी लिये महानगरी की राह पकड़ी थी कि कम से कम वहाँ कोई टोकने वाला न होगा “पर प्रगट में बोलीं “अच्छा तो तुम चाहते हो कि मैं तुम्हें फोन पर भी टोकती रहा करूँ। ”

तभी “अच्छा कैब आ गयी है और मेरा मन भी हल्का हो हो गया है फोन रखता हूँ। तुम मुझे थोड़ा डाँटती रहा करो। अच्छा लगता हैं। बाय माँ। लव यू माँ।”


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