अजीब
अजीब
अमर सरल और सेवाभावी था वो जिस गांव में रहेता था वहां सभी को वो मददगार बनकर वो अपना समय और रूपए भी गंवाता था।
उस गांव के महाजन ललित भाई उनकी बेटी की शादी थी।
अमर ने बिना बुलाए ललित भाई के घर जाकर शादी की सारी जिम्मेदारी लें ली यह देख ललित भाई अमर को धन्यवाद करने की बजाय बोले की ये तो गांव का है इस लिए तुझे सब काम भरोसा से सौंपा बाकी मैरी इक आवाज़ पर आसपास के दस गांवों के लोगों खडे पग रहते।
अमर को अजीब लगा पर
वो कुछ बोला नहीं और घर चला गया।
फिर भी ललित भाई को जब जब जरुरत पड़ी अमर ने बिना कुछ कहे हंसते हंसते सभी काम निपटा दिया बिना अपेक्षा।
अमर दिल से भावनाओं सभर इन्सान था वो अपने दिल की ही सुनता था वो दूसरे की भांति बुद्धि से नहीं सोचता था इस वजह से बार बार ललित भाई के हाथों अपमानित होने के बावजूद भी उनके कामकाज में खडा रहता था।
गांव में एक नया भाडूआत रहने आया चेतन जिसको गांव के एक कारखाने में मेनेजर की पदवी मिली थी.
उसने देखा की यह कारखाना तो ललित भाई का है उसने चापलूसी और दिखावा करके ललित भाई का भरोसा जीत लिया।
चेतन के आने से ललित भाई बात बात पर अमर को अपमानित करने लगे।
अमर को उनकी कही बातें दिल पर लग गई उसने ललित भाई के यहां जाना छोड़ दिया।
एक दिन चेतन कारखाने की नगद और ललित भाई के घर से रुपए और गहने सब लेकर भाग गया।
पुलिस केस हुआ और पुलिस ने सभी जगह ढूंढने पर भी चेतन हाथ नहीं आया।
तब ललित भाई को अमर की अहमियत का पता चला और वो मन ही मन में बोले मुझे तो *चुल्लू भर पानी में डुब जाना चाहिए* जो में सही और ग़लत की परख ना कर सका लानत हैं मुझे।
