अहसास
अहसास
आज तुम्हारी प्लेट्लेट्स और तीव्रता से गिर गईं हैं और तुम्हें दो बार उल्टी भी हो चुकी है। डेंगू बताया है तुम्हारे। डॉक्टर्स ने तुम्हें इंटेंसिव केअर यूनिट में लेकर विशेष निगरानी में इलाज शुरू कर दिया है। डॉक्टर का कहना है कि आपने अपनी पत्नी का ध्यान नहीं रखा, यह तो अच्छा है कि आपके बच्चे समझदार हैं और इनको समय रहते अस्पताल ले आए नहीं तो कुछ भी हो सकता था।
तुम खुद कभी अपनी दुःख तकलीफ बयां करती नहीं हो और यदि करती भी हो तो भी काम करना तो कभी छोड़ती ही नहीं हो तो मुझे कैसे आभास हो कि तुम्हें कितनी ज्यादा या कम पीड़ा है ?
"जब शादी हुई तभी मैंने देखा कि तुम जीवन के प्रति विशेष उत्साह से भरी हुई थी और मुझे तुम्हारे,"मेरे साथ अपने सपने पूरे करने की बात करना और दुनिया के उसूलों को बदलते हुए ,समाज में एक आइकॉन की तरह बनना, एक बचकानी व बेबुनियाद सोच ही लगती थी "जिसे मैं वास्तविकता के धरातल से बहुत दूर देखता था।"
तुम्हारा ,घर बाहर की ज़िम्मेदारी अपने हाथों में लेना व मुझे केवल ऑफिस के काम तक छोड़ देना, मुझे आराम तलबी बनाता गया।
" मैं क्यों नहीं समझ पाया कि जब मैं ऑफिस से घर आता तो तुम मेरे लिए चाय तैयार रखती थी और मेरे बालों में हाथ फेरती हुई मुझे तनाव से दूर करने की कोशिश करती थी।"
तुम चाहती थी कि तुम जितना मेरा ध्यान रखोगी ,फ्रेश मूड में मैं भी तुम्हारा उतना ही ध्यान रखूंगा लेकिन मैं मूड फ्रेश होने पर अपने दोस्तों से मिलने निकल पड़ता था। मुझे याद है, एक बार मुझे बुखार हुआ था और तुम मेरी तीमारदारी में सुबह उठते ही लग गई थी। मैं देख रहा था कि तुम्हारे चेहरे पर चिंता की बजाय कर्तव्यभाव व शांति है जो शायद तुम मेरे साहचर्य से अनुभव कर पा रही थी। तुम्हें लग रहा था कि मैं आज सारे दिन तुम्हारे साथ ही रहूंगा लेकिन बुखार उतरते ही मैं तुम्हें छोड़कर काम पर निकल पड़ा था और तुम्हारा चेहरा उतर गया था।
"मैं हमेशा सादा जीवन मे ही विश्वास करता आया हूँ परन्तु तुम जमाने के साथ चलने में रुचि रखती थी और बच्चों के भी सुंदर भविष्य के लिए कमर कसी रहती थी।"
मुझे यह सब ढकोसला लगता था। क्यों तुम परेशान होती हो और क्यों बच्चों को एक्स्ट्रा एक्टिविटी में भाग दिलाकर परेशान करती हो ?
तुम अपने सपनों व भावनाओं को मार कर मेरे साथ हर क्षण खुशी से बिताना चाहती थी लेकिन मैं केवल काम में ही डूबा रहना चाहता था या कभी समय मिला तो मित्र, नाते रिश्तेदार ही मेरे लिए विशेष रहे।
ऐसा नहीं है कि तुमने मुझे समझाने की कोशिश नहीं की । बहुत बार की, कई बार झुंझला कर मुझसे लड़ भी पड़ती थी तुम । लेकिन तुम्हारा गुस्सा दूध के उफान की तरह होता और दो मिनट बाद ही मेरी टाई ठीक करने लगती ,परन्तु मैं तुम्हें" धकियाता हुआ" ऑफिस के लिए निकल पड़ता व तुम डबडबाई आंखों से दरवाजे पर खड़ी मेरे लिए दुआएं करती रहती थी।
मुझे पता है ,हमारी हर लड़ाई व मेरे हर तिरस्कार के बाद तुम भगवान के पास मेरी दुआ सलामती की प्रार्थना ही करती रहती थी।
"मुझे अहसास तो हो गया था कि तुम विशिष्ट हो ,लेकिन मेरी व तुम्हारी परवरिश में ही इतना अंतर रह चुका था कि मैं कभी मानना भी नहीं चाहता था कि औरतें इतना सब कुछ कर सकती हैं।"
जब तेल मालिश करते हुए तुम मेरे बाल सहला रही होती तो मैं स्वयं को सबसे खुशनसीब इंसान समझता था लेकिन एक बार तुमने मुझे चाट खिलाने के लिए बोल दिया तो मैंने तुम्हें ' चटोरी' सम्बोधन दिया था जिसके बाद से मैंने तुम्हें कभी भी मेरे साथ या बाहर खाना खाते हुए भी नहीं देखा।
तुम्हारी आँखों में आए आंसू भी मेरे अंहकार को ही पोषित करते रहे कि औरतें आंसू लाकर पुरुषों को डराने की कोशिश करती हैं व मैं इसके बहकावे में नहीं आने वाला। तुम्हारे निष्काम कर्तव्य पालन का नतीजा यह हुआ कि बच्चे तुमसे जुड़ते गए और मुझसे दूर होते गए।
जब दोनों विभिन्न प्रतियोगिताओं में मैडल लाते तो सबसे पहले तुम्हें ही फोन करते या लाकर दिखाते। मेरे परिवार वाले भी तुमसे हमेशा खुश ही रहते थे क्योंकि जब भी हम छुट्टियों में जाते तुम १ महीने पहले से ही सबके लिए शॉपिंग शुरू कर देती थी।
"मेरी बहनों को महंगी साड़ियों की आशा भी तुमसे ही रहती थी।
तुम्हारी गुहार मेरी मां सुनती भी थी लेकिन किसी पुरुष को कैसे कोई औरत समझा सकती है ? बस वहां तुम मन हल्का कर सकती थी।"
मेरी निष्ठुरता स्वरूप तुमने अपनी किट्टी पार्टियां भी शुरू कर दीं लेकिन मुझे यह सब भी बर्दाश्त नहीं होता था क्योंकि बेवज़ह ड्रेस और खाने में खर्च लगता था मुझे।
समय के साथ ,अब मैं प्रौढ़वस्था की तरफ बढ़ रहा था व अकेलापन तथा तिरस्कृत महसूस करने लगा था । क्योंकि अब बच्चों के साथ तुम सशक्त हो चुकी थी ,फिर भी तुमने मेरी परवाह करनी कभी कम नहीं की।
अब बस, यह अंतर आ चुका था कि जिस सानिध्य के लिए तुम तरसती थी उसके लिए अब मैं तरसने लगा ,क्योंकि जब भी मैं चाहता तुम मेरे आस पास रहो, तुम किशोर हो रहे बच्चों से घिरी उनकी कोई समस्या सुलझा रही होती।
अब बच्चे भी अपनी अपनी जॉब में खुश हैं लेकिन तुम इतने सालों की चुप्पी या यूं कहें तिरस्कार स्वरूप अपने में ही सिमट चुकी थी जिसके कारण ,तुम्हें ३ दिन से चढ़ रहे बुखार को भी मैं देख नहीं पाया व जब रविवार को बेटा घर आया तो उसने तुम्हें एडमिट करवाया।
"अब तो बच्चों को भी मैं कबाड़ की वस्तु लगने लगा हूँ लेकिन मैं जानता हूँ कि तुम मुझे अकेला छोड़कर नहीं जाओगी।"
"ज़िन्दगी भर मैं खुद को तृप्त समझता रहा -----तुम तृषित रही।"
"आज मैं तृषित हूँ ----- तुम तृप्त दिखाई दे रही हो।"