पूजा की थाली
पूजा की थाली
"बहू, बारात जल्दी ही नई दुल्हन को लेकर पहुंचने ही वाली है सब तैयारी कर ली हैं न?"
"हाँ माँजी, सब तैयार हैं ।"
तभी शीला दीदी दौड़ती सी आई और बोली ," चलिए बुआजी बहु की आरती उतारिये, गाड़ी बाहर खड़ी है।"
"हां चलती हूँ "
"शुचि बेटा चलो बारात आ गई है, बहु को पधराना नहीं है क्या ? "
"चलिए माँजी मैं आती हूँ " कुछ कसमसाती-सी शुचि बोली ।
नहीं शुचि बेटा, तुम्हें यह थाल हाथ में लेकर मेरे साथ आगे-आगे चलना है और अपनी बहू को घर में प्रवेश करवाना है, यह मंगल कार्य केवल और केवल तुम करोगी क्योंकि हेमंत का अधूरा छोड़ा हुआ गृहस्थ यज्ञ तुमने ही पूर्ण किया है और आज पूर्णाहुति भी तुम ही दोगी। "
सजल नेत्रों से शुचि ने अपनी सास को देखा जो हेमंत के जाने के बाद पिछले पंद्रह वर्षों से उसके लिए ढाल बनकर रही है और उसके जीवन की सच्ची की पूजा की थाली है।
आसपास मौजूद सभी लोगों की आँखें इस अद्भुत पूर्णाहूति हेतू इन दोनों पूजा की थाली के आगे नतमस्तक थी।
