अहंकार
अहंकार
किसी ने ठीक ही कहा है
"खाली हाथ आया था खाली हाथ जाएगा
जो तू कमाया है वो दूसरा कोई खायेगा"
कोई भी इंसान अपनी जिंदगी में करोड़ों की सम्पत्ति बना ले पर वह जाएगा तो खाली हाथ ही। इस दुनिया से जाने के बाद सिर्फ तुम्हारे कर्म ही तुमको लंबे समय तक अपनों की यादों में जिंदा रखेंगे। फिर इस छोटे से जीवन में अहंकार किस बात का।
अब आती है कि अहंकारी कौन है, अहंकारी के क्या लक्षण हैं, तो इसे इस प्रकार समझ सकते हैं।
दूसरों की छोटी-छोटी गलतियों पर भड़कता है व अपने बड़े-बड़े दोषों को भी स्वीकार नहीं करता। महत्त्वपूर्ण पदों पर लम्बे समय तक बने रहता है। ...सदा विफलताओं का ठीकरा दूसरों के सिर फोड़ता है व सफलताओं का श्रेय स्वयं लेता है।
अहंकार की समस्या वाले लोग केवल अपनी राय को ही महत्व देते हैं । उन्हें दूसरों को यह सुनने देने की ज़रूरत महसूस होती है कि उन्हें क्या कहना है, भले ही वे ग़लत हों। लोगों से भरे कमरे में एकमात्र व्यक्ति बनने की चाहत जिसकी आवाज़ सुनी जाए, अहंकारी लोगों का कोई आश्चर्यजनक लक्षण नहीं है
अहंकार कब और क्यों आता है मनुष्य के अंदर थोडा सा बल, बुद्धि, धन, ऐश्वर्य, और पद मिलने से मानव अहंकारी बन जाता है और हर समय अपना ही गुणगान करता रहता है। उसे अपने से श्रेष्ठ कोई नहीं दिखता। इन्हीं कारणों से उसका पतन होता है। इसलिए कभी अपने बल, धन और पद पर घमंड नहीं करना चाहिए।
जब व्यक्ति यह सोचने लगता है कि यह कार्य मैं कर सकता हूँ तो इसे आत्मविश्वास कहते हैं लेकिन जब वह यह सोचने लगता कि यह कार्य केवल मैं ही कर सकता हूँ तो यह अहंकार का रूप ले लेता है। मानव के अन्दर अहंकार का जन्म ऐसी ही विचारधारा के कारण होता है।
उपसर्ग अहंकार किसी व्यक्ति की स्वयं की भावना, या आत्म-महत्व को संदर्भित करता है। अहंकारी होने का मतलब है अपने आत्म-महत्व के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर सोचना - मूल रूप से यह सोचना कि आप बाकी सभी से बेहतर हैं। आप अपने दोस्तों को और अपने समाज को लगातार यह याद दिलाकर इस अहंकार को व्यक्त कर सकते हैं कि आपके पास एक शानदार आकृति या शानदार दिमाग है, आप जैसा दूसरा नहीं।
अक्सर शाम के वक्त गार्डन में टहलते वक्त कई बुजुर्गों से मुलाकात होती रहती है और किसी किसी से हमारे घनिष्ठ सम्बन्ध बन जाते हैं। उसी गार्डन में एक महाशय भी अक्सर टहलने आते थे, उनकी ये खासियत थी कि वो किसी से बात नहीं करते थे, सिर्फ अपने में मस्त रहते थे। यह किसी को पता नहीं था कि इस स्वभाव को अहंकार कहें या कुछ और।
कुछ लोग बड़े मिलनसार होते हैं, अपने से आगे बढ़कर अपना परिचय दे कर दूसरों से सम्बन्ध बनाते हैं पर कुछ लोगों का स्वभाव इसके विपरीत अंतर्मुखी होता है जिसके चलते इस तरह के लोग स्वयं से मिलने की पहल नहीं करते। इन्हीं बातों के बीच एक महाशय ने ये बताया कि ये
शर्मा जी, जो अभी हाल ही में एक मल्टी नेशनल कम्पनी से अवकाश प्राप्त किए हैं, कम्पनी में महाप्रबन्धक के पद पर कार्यरत रहे, इन्हें अपने पद का अहंकार अपने पूरे कार्यकाल में रहा जिसके चलते ये महाशय किसी से सहजता से नहीं मिलते थे, इनका ये स्वभाव आज भी यही है और इसी के चलते किसी से नहीं मिलते, या मिल नहीं पाते।
कुछ लोग अपने पद को इस तरह अपने साथ चिपका लेते हैं कि रिटायरमेंट के बाद भी नहीं छोड़ पाते। इनको ये नहीं मालूम कि एक रिटायर्ड व्यक्ति की हालत फ्यूज बल्ब की तरह है क्योंकि फ्यूज बल्ब में लोग ये नहीं देखते कि ये बल्ब कितने किस कम्पनी की है या कितने वॉट की है।
ये अहंकार सिर्फ मनुष्य तक सीमित नहीं है वरन् देवताओं में भी इस अहंकार को देखा जा सकता है।
एक दिन दुर्वासा मुनि विष्णु जी के पास पहुंचे। उस समय विष्णु जी ने दुर्वासा मुनि को अपनी दिव्य माला उपहार में दी। विष्णु जी से मिलकर दुर्वासा मुनि लौट रहे थे। तभी उन्हें रास्ते में देवराज इंद्र दिखाई दिए।
इंद्र अपने ऐरावत हाथी पर सवार थे और दुर्वासा मुनि पैदल थे। इन दोनों ने एक-दूसरे को देख लिया। उस समय दुर्वासा जी ने सोचा कि विष्णु जी ने जो माला दी है, वह मेरे किसी काम की नहीं है। ये माला इंद्र को दे देता हूं। इंद्र स्वर्ग के राजा हैं तो इन गले में ये माला शोभा देगी। ऐसा सोचकर दुर्वासा मुनि ने विष्णु जी की माला इंद्र को उपहार में दे दी।
देवराज इंद्र ने दुर्वासा जी से वह माला ले ली। उस समय देवराज इंद्र का अहंकार जाग गया। वह अपने ऐरावत हाथी पर बैठे हुए थे, स्वर्ग के राज-पाठ का घमंड था। इसी घमंड की वजह से इंद्र ने सोचा कि ये सामान्य सी माला मेरे काम नहीं आएगी। ये सोचकर इंद्र ने वह माला अपने ऐरावत हाथी के ऊपर डाल दी। ऐरावत ने अपनी सूंड से वह माला पकड़ी और पैरों से कुचल दी।
ये सब दुर्वासा मुनि ने देख लिया, अपने उपहार का ऐसा अपमान देखकर वे क्रोधित हो गए। गुस्से में उन्होंने इंद्र से कहा कि आज तूने अपने राज-पाठ और पद के घमंड में मेरे उपहार का अनादर किया है, मैं तूझे शाप देता हूं, तेरा सारा वैभव चला जाएगा और तू स्वर्गहीन हो जाएगा।
दुर्वासा मुनि के शाप से डरकर देवराज इंद्र ब्रह्मा जी के पास पहुंचे, उस ब्रह्मा जी ने इंद्र को समझाया कि ये सब आपके अहंकार की वजह से हुआ है। दुर्वासा मुनि का शाप सत्य होकर रहेगा। इसके बाद असुरों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया और देवता पराजित हो गए। इंद्र को स्वर्ग से जाना पड़ा था।
लाइफ मैनेजमेंट
इस कथा का संदेश यही है कि हमें कभी भी अपने पद, धन, घर-परिवार का अहंकार नहीं करना चाहिए। कभी किसी को छोटा न समझें। किसी के उपहार का अनादर न करें। अहंकार की वजह से रावण, कंस जैसे महाशक्तिशाली लोग भी नष्ट हो गए। इसलिए इस बुराई से अपने आप को दूर रखना चाहिए।
