अहमक कौन

अहमक कौन

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वर्षों से जो तालाब कतरी तालाब के नाम से जाना जाता था आज एकाएक परमा तालाब कहलाने लगा और पगलु परमा।

पिछले बार की बाढ़ में कतरी तालाब बर्बाद हो गई। तालाब का किनारा टूट कर सपाट हो गया। लौटती पानी में पूरे तालाब में जलकुंभी का राज हो गया। जिससे धीरे-धीरे तालाब का पानी कीचड़ में बदल गया और तालाब तिरष्कृत हो सूखने लगा। इस वर्ष गाँव वाले उसके उद्धार की योजना बना रहे थे कि पुनः बाढ़ ने सबकी कमर तोड़ चार पांच दिनों में ही बाढ़ का पानी तो लौट गया पर उसकी लाठी की चोट से सबकी कमर टूट चुकी थी। सभी कटी हुई सड़क और अपने खेत को ठीक करने में लग गए। अब किसे फुर्सत थी की कतरी तालाब से किए वादे को सोचे और निभाए। उनकी नजर में तालाब के उद्धार से जरूरी अन्य कार्य थे। मगर पगलु अर्थात परमानन्द को सब याद था। वह अपनी बाल मण्डली की टोली को लेकर तालाब में प्रवेश कर गया। सभी ने मिल कर दो दिनों में सारे जलकुम्भी को तालाब से निकाल सड़क पर ला पटका। जल कुम्भी से मुक्त होते ही तालाब सांस लेने लगा, अब उसके टूटे किनारे की बारी थी, बच्चे थक चुके थे पर परमा हार नहीं माना। अपनी कुदाल ले कर तालाब के किनारे की मिट्टी काटने लगा। बच्चे साथ मिल कर हो.. हो.. कर उसका मन लगाते और परमा औरों को मनोरंजन का मौका देता।

परमा के काम से यदि कोई परेशान था तो उसकी माँ। बापू तो कहीं न कहीं से चिलम और भांग कि जुगाड़ कर मगन हो सो जाता। बेचारी माँ आँचल में रोटी के साथ कभी प्याज तो कभी अचार बांध कर ले आती। मनुहार कर अपने लाडले को खिलाती। उसे माँ के हाथ से खाते हुए देख बच्चे हो.. हो..करते।पिछले आठ दिनों से यही चल रहा था। आखिर परमा की मेहनत रंग लाई। तालाब का एक किनारा ऊंचा हो कर चिकना लगने लगा। अब गाँव के कुछ प्रबुद्ध लोगों की नजर उसके कामों पर गई। सभी अपने-अपने खेत खलिहान से निपट शाम में शाहीजी के दरवाज़े पर मीटिंग करने लगे। मीटिंग में बात-चीत का मुख्य केंद्र बिंदु था परमा। उसकी माँ के सिवा उसे आज तक किसी ने परमा नहीं पुकारा था। उसके सुंदर कार्य ने लोगों को पगलु से परमा बोलने को बाध्य कर दिया। 

पगलु की माँ लाखिया को जब मीटिंग की बात का पता चला तो वो घबरा गई। उसका बस चलता तो पगलु को अपने आँचल में समेट सबकी नजर से छुपा लेती। मगर कुछ कर नहीं सकती थी। वह लोगों की नजर में मंदबुद्धि था पर उसे पता था कि एक एक मिल कर ताकतवर हो जाते हैं और कठिन काम को भी सरलता से सम्पन्न कर लेते हैं। उसका पगलु आज ये कर दिखाया। आखिर बच्चों के संग मिल कर तालाब का उद्धार कर ही दिया। बड़े लोग मीटिंग कर रहे थे और बच्चे मिल कर पगलु को कंधे पर बैठा कर आवाज़ लगाने लगे - " परमा तालाब जिंदाबाद, परमा भैया की जय..परमा भैया की जय.." तो पगलु की माँ पीछे से निकल कर आई। उसे समझने में थोड़ी देर लगी लेकिन जब उसे पता चला कि उसके परमा के कारण दो साल से सूखा तालाब इस बार पुनः जी उठा है और अब इसे पूरी अच्छी तरह ठीक करने में पूरा गाँव सहयोग करेगा। उसके परमा को इस नेक काम के लिए इनाम दिया जाएगा तो वो गदगद हो गई। वो अपने परमा को लड़कों के कंधे पर बैठे दूर जाते देखने की कोशिश कर रही थी जो आँखों की बदरी के कारण धुँधला दिखाई दे रहा था। 

            



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