Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Chhabiram YADAV

Abstract

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Chhabiram YADAV

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अधूरे सपने गूँगा प्यार

अधूरे सपने गूँगा प्यार

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गातंक से आगे----

मीना दौड़कर फोन उठाती है ,फोन से रुआंसी आवाज में हलो!की आवाज आती है ।मीना सामान्य तौर पर पूछती है ,"आप कौन" ,"जी मैं पुलिस स्टेशन नोयडा से बोल बोल रहा हूँ ।" यह सुनकर मीना सकपका गई ,बोली "जी बोलिये" उधर से जवाब आता है "आपका बेटा छत से गिर गया उसकी मौत हो गयी है ।" यह सुनकर मानो मीना का संसार ही उजड़ गया , मिना बेसुध पागल होकर चीख चीख रोने लगी ,लेकिन होनी को कौन टाल सकता है।बेटे की मौत के बाद से मीना एक लाश बनकर रह गयी थी ।सारा दिन आंसुओ को बहने से रोक नहीं पाती ।आंखों के सामने बस बेटे की आने की परछाई ही दिखती ।

ओम को जब यह समाचार मिलता है तो ओम भी टूट सा गया ।एक दिन ओम मीना को फोन लगाकर बात करता हे।फोन पर मीना एक जानी पहचानी आवाज सुनकर कुछ देर सहम सी जाती हैं खो जाती है अतीत की यादों को खँगालने में, "अरे!ओम बोल रहे हो !छपाक से मिना बोली !उधर ओम भी हड़बड़ाते हुए बोला " जी " मिना फोन पर फफक कर इतना रोयी इतना रोयी ,मानो उसके शरीर से निकल चुका प्राण फिर वापस मिल गया हो ।लगभग तीस वर्षों के बाद आवाज कानो में आयी थी ।जिस आवाज को सुने बिना ओम का खाना नही पचता था ,वही ओम 

एकदम से भूल गया ,फोन को हाथ मे लिए दोनों ओर से खामोशियाँ ही बातें कर रही थी ।तभी मीना बोली ,!अरे ओम आप कैसे हो?ओम ने बिल्कुल सहज भाव से बोला ठीक हूँ और छवि कैसे है ,मीना पूछी ,वो भी ठीक है।

ओम बोला "मीना मैं अगले सप्ताह तुम्हारे गांव आ रहा हूं ।" मीना खुशी हो जाती है और "उस दिन का इंतजार है,बोलकर फोन रख देती है।" एक एक दिन ओम के आने के इंतजार में मीना के दिन कट जाते है।आज सुब्ह सुबह ही कौन आगया ,मीना नींदद से उठकर दरवाजे पर गयी ।दरवाजे पर खड़े ओम को देखकर मीना एकदम सुधबुध खो बैठी ।बहुत देर तक न बोलने पर ओम ने बोला ,"छवि यही मीना जी है" ,मीना ने छवि को बच्चो सहित अन्दर ले गयी ।फिर ओम से मीना बोली "कितने दिन तक कि छुट्टी है?" ओम धीरे से बोला "05 दिनों की।" नाक सकेलते हुए मीना बोली "बस 05 दिन की ?" मीना चाय बना कर लाती है ,फिर बहुत सारे गीले शिकवे बातें कर ,आज मीना पहली बार इतनी खुश थी फिर दोपहर को ओम अपने घर चलने को कहता है लेकिन मीना उहापोह की स्थिति में अनमने से बोलती है "ठीक है! "ओम अपने घर से ही ड्यूटी चला जाता है ,एक दूसरे से बाते होती रहेगी।दोनों अपने नम्बर एक दूसरे से ले लिए थे।


     अब मीना अपने सपनो से निकलकर हकीकत की जिंदगी जीने लगी थी ।हमेशा अपने काम करके पूजा पाठ करती और जो भी समय बचता कविताये लिखती बस यही जिंदगी थी मीना की।मीना की कविताओं को ओम आज भी उसी भाव से पढ़ता था जिस भाव से बचपन मे मीना के साइकिल में हवा भरता था।दोनों अपने अपने जीवन मे खुश थे लेकिन कभी कभी एक अनजानी टीस मन को भेदकर जाती और दोनों छटपटा पड़ते।दोनों के दिलो में एक दूसरे के प्रति आज भी वही सम्मान जिंदा है ।आज भी मीना मौन होकर हमेशा ओम के मैसेज का जवाब देती ,पढ़ती और हमेशा अपना आशीर्वाद ,रखना मुझ पर क्योंकि तुमने हमेशा मुझे मौन रूप में ही प्यार किया ।कभी इजहार ही नही किया ओम ने बताया कि "मैंने समझा कि तुम्हारे पापा नही मानेगे इसलिए।"ऑनलाइन बाते करते करते कब मीना अपने गहरी निद्रा में सो गयी पता ही न चला।



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