अधूरे सपने गूँगा प्यार
अधूरे सपने गूँगा प्यार


छवि फिर ओम पर गुस्से से विफर पड़ती है, आँखे लाल चेहरे क्रोध से मानो जलकर आग उगल रहे ही, मन ही मन में क्रोध से बुदबुदाते हुए छवि सब बिखरे सामान को
एक एक कर रख रही थी बोल रही आने दो फिर बताती हूँ। ओम आफिस से शाम को थका हारा आता है, आते ही घर की डोर वेल बजाता है, छवि जल्द ही दरवाजे पर पहुँच कर, दरवाजा खोली ओम मुस्कुराते हुए अंदर आकर बोला, छवि चाय पिला दो आज थक गया हूँ, विन कुछ जवाब दिए ही छबि रसोई में जाकर चाय बनाकर लाती है ओम के सामने रख देती है, विन बोले ही फिर अपने रम की ओर चल देती है। तभी ओम बोलता है क्या बात है छवि आज बहुत मौन हो, कुछ बोल नही रही
इतना सुनते ही छवि मानो विजली की तरह ओम पर क्रोध में खरी खोटी शब्दों से टूट पड़ती है, ओम समझ नही पाता की क्या माजरा है, देखो छवि जो कहना है साफ साफ बोलो, मैंने तुमसे रिश्ता किया, तुम मेरी धर्मपत्नी हो लेकिन तुम मीना को ऐसे बोलो गी या गलत समझो गी ती मुझसे बुरा कोई नही होगा, ओम ने छवि को गुस्सा दिखाते हुए बोला। यह सब सुनकर छवि ओम के आगे फफक कर रोने लगती है।
ओम फिर छवि का हाथ पकड़ कर अपने स्टोर रूम में ले जाता है, और धूल में सनी डायरी, अपने नाम खो चुके गिफ्ट को, बहुत सारे पुराने उपहारों को छवि को दिखलाते हुए समझाने की कोशिश करता है। बताता है की अगर मुझे शादी करना ही होता तो मैं मीना से ही करता ते सच है, ये भी सच है की मैं मीना को बहुत प्यार आज भी करता हूँ करता था, करता रहूँगा, लेकिन छवि तुम क्या प्यार को बुरा मानती हो, अरे ! प्यार तो वो दवा है जिससे जानवर भी इंसान बन जाता है। तुम खुद याद करो की कालेज में हम दोनों कितने अच्छे मित्र थे। जब से शादी हुई मैंने आज तक मीना का नाम भी नही लिया, तुम हो की बेवजह ही मुझ पर पगल कुत्ते की तरह दौड़ा रही हो। छवि सब मौन होकर सुनती रही, फिर बोली की तुम क्यों नही किये शादी, तुम्हे करना था, मुझसे क्यूँ कर लिए। छवि दरअसल मैं मीना से इतना प्यार करता था, लेकिन कभी जता न सका, फिर अचानक मीना के माँ की तबीयत बिगड़ जाती है, उनका भी आख़िरी ख्वाहिश थी की ओ मीना की शादी करके ही अंतिम साँस ले। जब मीना ने मुझसे ये बाताई तब मीना का रिश्ता पक्का हो चूका था, और जिसके एक ख़ुशी के लिए मैं अपने आप को जलाता रहा उसके बसने जा रहे घर में आग कौसे लगा सकता था। आज ओम को मीना बहुत याद आ रही थी,ओम बहुत लाचार भावुक हो चला था। फिर माथा पकड़ कर टेवल पर बैठ जाता है। ओम की बातो में सच्चाई झलक रही थी, छवि ने ओम से माफ़ कर देने के लिए ओम को गले लगाकर रोने लगती गई। ओम मुझे माफ़ कर दो मैंने तुम्हे गलत समझा, ,ओम ओम भी छवि को माफ़ करता है। फिर दोनों लोग बाते करते हुए अपने बालकनी में आते है। छवि बोली, अरे !मुझे डिनर बनाने में देर हो जायेगी तब,तक आप फ्रेश हो जाइये, मैं डिनर तैयार करती हूँ। बोलते हुए कप और प्लेट को टेबल से
उठाते हुए किचेन में चली जाती है।
इधर ओम निशब्द हो कर आसमान में बिखरे तारो में ही मीना को खोजने लगा, कल्पना की आगोश में आकर मीना को याद करने लगा। फिर अपने सर के बाल खुजलाते हुए घड़ी देखा, रात के 11 बज गए थे। फिर जल्द ही बाथ रूम से फ्रेश हो कर आता है मीना और ओम साथ में, रोज की तरह न्यूज लगाकर डिनर करते है
छवि को मन ही मन बहुत पछतावा ही रहा था, वो बार बार अपने आपको दरेर रही थी, बार बार ओम से कभी दाल कभी चावल, रोटी आदि पूछती। अब दोनों लोग खा चुके थे। दोनों लोग एक दूसरे को कभी दिल न दुखाने की बात कह, टेबल से उठ कर चल देते है।
इधर मीना भी अपने ससुराल में बहुत ही खुश थी। मीना को हमेशा अपने कैरियर की चिंता लगी रहती थी, मीना का पति भी,मीना का रिस्पेक्ट करता था। एक दिन मीना ने अपने सासू माँ से बोली, मम्मी मुझे आगे की पढ़ाई करनी है, मुझे हास्टल में डलवा दीजिये, किंतु मीना की एक न चली, और सासू जी ने सीधे जवाब दी की अब घर पर ही रह कर पढाई करो। मीना के सारे सपने अधूरे प्रतीत हो रहे थे। मीना ने अपने ससुराल में रहकर की परास्नातक की पढाई पूरी की। अब तक मीना
दो बेटियो की माँ बन चुकी थी, जिसकी वजह से मीना की
सासू माँ हमेशा उसे कहती की, मुझे एक बेटा चाहिए, बड़ी मन्नतो के बाद केशव का जन्म हुआ।
घर में खुशहाली का माहौल था, अपने बेटियो को व् बेटो को मीना ने बहुत अच्छे से पालन पोषण किया, अच्छे संस्कार दिए। मीना की दोनों बेटिया जॉब में आ गयी, बेटा नोयडा से इंजीनियरिग की पढाई के लिए हास्टल में दाखिल हुआ। पूरा परिवार हँसता खेलता, किसी चीज की कमी नही था। फिर अचानक एक दिन रात को 11 बजे एक अजनवी व्यक्ति फोन आता है। फिर मीना ने जब फोन उठाया।
कहानी का शेष भाग अगले अंक में ( भाग -04)