बिरासत
बिरासत
सेठ ज्ञानचन्द्र अपनी कड़ी मेहनत से अपने व्यवसाय में खूब तरक्कीकर रहे थे ।उनका इकलौता बेटा मंटू बहुत ही दिमकदार बालक था ।ज्ञानचंद्र प्रतिदिन गंगा स्नान करने जाते थे ,पूजा अर्चना के बाद ही अपनी दुकान पर बैठते थे ।प्रवित्ति से बहुत कंजूस थे ,मंटू जब भी कुछ भी मांगता बिना रुलाये कभी नहीं देते तथा उससे हमेशा कहते" बेटा ये बिरासत सब तुम्हारे लिए ही तो है ।मेरे मरने के बाद सब तुम्हारा ही तो है।" मंटू बोला बापू घर में पानी की इतनी किल्लत है , नलकूप को हमेशा बंद रखें" ,,इस पर ज्ञानचंद्र बोले कि "बेटा ,घर में पानी बहुत है वो भी फ्री का है, चाहे जितना बहाओ कोई पैसा थोड़ी देना है।इस पानी को बचाकर ,तुम्हे कौन बिरासत मिलेगी।"
एक रात अचानक मंटू को भयानक प्यास लगी और मंटू पानी पानी कहते कहते बेहोश हो गया ,लेकिन ज्ञानचंद्र पानी के लिए घड़े में हाथ डाले तो पानी एक बूँद नहीं ,ज्ञानचंद्र माथ पकड़ कर दुकान में गए वहा भी पानी नहीं ,ज्ञानचन्द्र तत्काल घर गए देखे की बेटा मर चुका था ।सेठ अपनी छाती पीट पीट रोने लगे और कहने लगे मैं अपने बेटे के लिए इतनी बिरासत बनाई ,एक एक कौड़ी बचाकर उसके भविष्य को बनाया था।पर असली बिरासत को तो
बचाया ही नहीं।काश !एक एक बूँद जल बचाया होता तो वो मेरे बेटे को बचा लेती ,और सेठ पानी पानी कह कर रोने लगे ।