दहेज बिन दुल्हन

दहेज बिन दुल्हन

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दयाराम ,अपनी पुरानी साईकिल पर बैठ अपनी धुन में मन ही मन में कुछ सोचते चले आ रहे थे ,तभी एकाएक साईकिल का ब्रेक लगते हुए बोलेअरे!ये तो बाजार आ गया ,घर के लिए कुछ सब्जी भाजी लेते चलें ,बच्चों के लिए कुछ टॉफ़ी ले लें ,कहते हुए गोलू की दुकान पर जा पहुँचे ।"अरे!गोलू जल्दी समान देना अँधेरा हो रहा है ,जल्दी घर जाना है ,अक्सर मुझे घर पहुँचने में देर हो जाती है" ,मुस्कुराते हुए दयाराम बोल।"जी गुरूजी जल्दी करता हूँ" गोलू सामान पैक करने लगा ,दया राम अपने गाँव के प्राथमिक शाला में शिक्षक है ,गाँव के सभी लोग सम्मान में उन्हें गुरु जी ही कहकर बुलाते हैं।तभी गोलू बोला ,गुरूजी आपका सामान ,गुरूजी पैसा देते हुए दुकान से बाहर निकले ही थे कि उनका नाती यश दौड़ता हुआ उनके पास आया बोला !बाबू जी जल्दी घर चलिए ,पापा मम्मी से लड़ाई किये हैं और मम्मी को बहुत मारे हैं, मम्मी को खून भी बह रहा है ,मम्मी बेहोश हो गयी है।

        

दयाराम के आँखों के सामने पहले कई बार हुए कलह के बिम्ब अनायास ही दिखने लगे ।हड़बड़ाते हुए नाती को साईकिल पर बैठाकर घर की तरफ निकल पड़े! दयाराम को दो पुत्र है राकेश ,और राजीव ,।दोनों की शादी बड़े ही धूमधाम से किये थे ।राकेश जो की बड़ा पुत्र है कुछ कम पढ़ा लिखा होने के कारण ,इनकी शादी गाँव में ही राधा से करा दी थी ।राधा के पिता जी एक गरीब किसान थे ,और मजदूरी करते थे ।बेटी राधा सुशील ,सुंदर शिक्षित कन्या थी ।इसलिए दयाराम ने राकेश की शादी बिना दहेज़ लिए ही की थी ।जब की राजीव की शादी में उन्हें बहुत दहेज़ मिला था ,जिसके कारण राजीव की पत्नी का घर में काफी सम्मान था।

राधा को अक्शर सासू के द्वारा तो कभी ,राजीव ,कभी राजीव की पत्नी ताना मारती रहती थी ,काम नहीं करेगी तो क्या राज करेगी ,दहेज़ में कुछ लायी होती तो बोलती । राधा अपने सिर को हाथ से दबाये आँगन में अचेत पड़ी थी ,यश इतने में बाबू जी के साथ घर आ टपका ।बाबू जी का हाथ पकड़कर मम्मी के पास ले गया ।और यश फूट फ़ूट कर रोने लगा।

दयाराम पहले की तरह भौचक्के हो कर खड़े रहे ।उनके समझ में नहीं आ रहा क्या करे ।तभी उधर से राकेश की माँ ,जोर से चिल्लई !जब बोल रही थी कि शादी नहीं करना है तो बोले की लड़की पढ़ी लिखी है ,देख लो इसके नखरे ।जीने नहीं देगी कलमुँही ,जब से मेरे घर में कदम रखी है तभी से नर्क मचा रखी है।यह बोल कर घड़ियाली आँसू गिराकर रोने लगती है।


 कुछ देर बाद दयाराम बोले क्या हुआ ये सब बेटा क्या कर दिए ।राधा तो हमेशा घर काम भी करती थी ,कभी अग बिन खाये भी सोना हो ,बोली नहीं आज क्या हुआ? दबी आवाज में राकेश से दयाराम ने पूछा ? इस पर राकेश बोला माँ से पूछो ?आये दिन झगड़ा राधा से करती है ।

मेरे न बोलने पर बोलती है जोरू का गुलाम है।राधा कराहते हुए अपनी आँखों को हिलाया ,सामने यश खड़ा था।उसे देख रोने लगी ,और अपने गले लगा लिया।

राकेश भी अपनी माँ की हर करतूत से वाकिफ था ,पर मजबूर था ।कमाई का साधन न होने के कारण रात दिन खेती में लगा रहता था।राधा रात दिन घर के काम में व्यस्त रहती थी। सास ससुर की सेवा भी करती थी।


राजीव की पत्नी सौम्या अमीर घर से थी ।वह दिन भर मोबाईल में ब्यस्त रहती ,घर का एक काम नहीं छूती ।बीमार होने पर दयाराम को दवाई खाने को पानी तक नहीं देती।लेकिन क्या मजाल कोई उसे कुछ बोले,बस मशीन हो जाती पुरखो तक गाली देती ,सब के सब स्नान रहते ।आज की घटना से राकेशबहूत आहत हुआ था।वोराधा कोलेकर घर से चला गया,जाते हुए राधा ने दयाराम को चरण छूकर आशीर्वाद ली ।सास को ताकी तक नहीं।

सास मुँह बिचकाते हुए बोली ,कीचड़ को कीचड़ ही पसंद है ,जाये जहाँ जाना है ,दो दिन में सब वापस यहीं आएगी।


इधर सौम्य के साथ दयाराम उनकी पत्नी रहने लगे।अब खेती का काम दयाराम और चूल्हा बर्तन उनकी पत्नी खुद करती थी।दयाराम बीमार पड़ गए ,,उनकी पत्नी को समय नहीं मिल पता की घर का काम कर सके। इस बात को लेकर फिर राजीव और सौम्य आये दिन लड़ते रहते थे । कई दिनों से दयाराम बिस्तर नहीं छोड़े थे, उनकी पत्नी भी काफी कमजोर हो चुकी थी।एक दिन सौम्या गुस्से में बोली !"मैं कोई नोकरानी नहीं जो बना कर रोज खिलाऊँगी ।अपने माँ बाप की सेवा तुम खुद करो ,हमारे वश की बात नहीं।आँगन में असहाय लाचार पड़े दयाराम और उनकी पत्नी सुन कर स्तब्ध थे ।

उनके आँखों से आँसुओ की धार बह चली।राजीव लाल चेहरा लेकर आँगन में आया ही था कि देखा उनके माँ बाप घर से जा चुके थे।काफी रात हो चुकी थी अतः सड़क के किनारे फुटपाथ पर ही रात दोनों ने बिताई।सुबह होने पर इधर राकेश काम के तलाश में जा रहा था की ,उसकी नजर माँ ,और पिता जी पड़ी ,संहमा ,फिर पीछे मुड़कर देखा ,दौड़कर उनके पास गया, बोला "बाबू जी और माँ आपलोग यहाँ?"

यह सुनकर दोनों राकेश को गले लगा कर रोने लगे ।सारी दास्ताँ सुनाई। बोले" बेटा मुझे माफ़ कर दे ।बेवजह उस दिन मैंने ही राधा को मारने के लिए तुझे बहकाया था।देवी जैसी बहु का सदैव दहेज़ के लालच में अपमान किया।अब मुझे पता चल गया की दुल्हन ही दहेज़ है।, माँ को हुए अपनी गलती का एहसास पर ,राकेश प्रसन्न था ,बोला" माँ ऐसी कोई बात नहीं चलो घर चलो!" राकेश अपने माँ पिता के साथ घर आया ,राधा अपने सास ससुर को

देखकर सारे सितम भूल कर उन्हें गले लगा लिया ,राधा का परिवार माँ बाप को पाकर स्वर्ग से सुंदर हो गया।




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