अधूरा ख़्वाब

अधूरा ख़्वाब

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"कैसे हो ?"

"ठीक हूँ, और ..तुम ?"

"हाँ, मैं भी। बहुत दिनों बाद आज तुम दिखे, कहाँ रहते हो आजकल ? चलो सामने पार्क है, बैठकर कुछ बातें कर लूँ ।"

तेज कदमों से हम दोनों पार्क की घास पर जाकर बैठ गये। बातों का दौर चल पड़ा, वह कहने लगा, "मैं अब इस शहर में नहीं रहता। जैसे ही पता चला, तुम्हारी शादी हो गई यहीं किसी अमीर घरानों में। दिल धक्क से रह गया ! तुमने कभी कुछ बताया नहीं । खैर ! तुम दूर हो गई मुझसे, सो... इस शहर में रहने का मेरा दिल नहीं किया ! मैं, उदास और अकेला महसूस करने लगा, चौक- चौराहे, गली-नुक्कड़, जहाँ कहीं भी जाता ..हर जगह तुम्हारी यादें मुझे पीछा करती। शहर काटने लगा था मुझे । समझता था, पहले की तरह अब तुमसे कहीं अकेले में बात नहीं होगी, कोचिंग सेंटर भी जाना तुमने छोड़ दिया था। शायद अब जाकर तुमसे मिलना भी मुझे उचित नहीं लगा इसलिए इस शहर से मैं दूर चला गया। मैं तो ठहरा अनाथ, जहाँ धर वहाँ घर ! न कोई घर और न कोई गृहस्थी !

आज, अचानक इस शहर का कुछ काम आ पड़ा, इसलिए मैं आया हूँ । काम हो गया, अब वापस जा रहा हूँ। चलते-चलते तुमसे मुलाक़ात हो गई। सचमुच तुमसे मिलकर बहुत ही अच्छा लगा। अमीर घराने में जाकर भी तुम नहीं बदली। वाह ! देखते ही झट से मुझे पहचान लिया।"

कहते-कहते वो भावुक हो गया, उसकी नजरें मुझे देखने के बजाय जमीन पर टिक गई।

मैं बात को बदलने की कोशिश की, और तपाक से बोल पड़ी, "और तुम भी कहाँ बदले ! बिल्कुल पहले की तरह वही शांत, सौम्य। ये लो मेरा फोन नम्बर है, जब कभी फिर इस शहर में आना हो, मुझे मेसेज से जरूर बता देना। मैं यहीं मिलने आ जाऊंगी तुमसे।"

"थोड़ा सा रूको....एक बात मैं तुमसे कहना चाहता हूँ, कहूँ... ?"

"अरे .. हाँ, बताओ तो सही, मुझसे फोरमेलिटी ? भूल गए क्या, मैं तुम्हारी बेस्ट फ्रेंड हूँ ?"

"सच्ची ?"

"हाँ, सच्चीमुची।" हा हा हा हा ... हमदोनों पहले की तरह जोर से हँसने लगे।

" अच्छा बताओ, क्या कहना है ?"

"मैं तुमसे बहुत दूर तो चला गया, यह सोचकर कि तुमको और तुम्हारे परिवार को मुझसे कभी कोई परेशान नहीं हो। कभी हमारी दोस्ती तुम्हारे दाम्पत्य के बीच में न आ जाये ! पर सच बात तो यह है....मैं तुमसे कभी दूर हो ही नहीं पाया। यहाँ से जाने के बाद, तुम्हारे करीब और भी अधिक आ गया हूँ। सोते जागते, कभी तुझे भूलता ही नहीं। अब, मुझे किसी से प्यार करने का दिल भी नहीं करता ! गरीब जो हूँ। अब समझ में आया मुझे, गरीबी सच में बहुत बड़ी गाली होती है। सच,अपनी गरीबी पर बहुत मलाल है मुझे, गरीब होने के कारण, मैं तुम्हारा जीवनसाथी नहीं बन सका। यही कारण था जो तुम्हारे माता-पिता मुझे इस काबिल नहीं समझे और तुम भी शायद ... खैर ! छोड़ो..! तुम सुख से रहती हो, इतना ही मेरे लिए काफी है पर, अभी भी मेरा मन किसी चीज में नहीं लगता है इसलिए मैं समाज सेवा करने लगा, बीमार और लाचार की सेवा ताकि अगले जन्म गरीबी की अभिशाप से मुक्ति पा सकूँ ! बस इतना ही कहना था। दिल से दिल तक बात पहुंचानी थी, सो कह दिया तुमसे। जैसे मन का सारा बोझ उतर गया, हल्का महसूस कर रहा हूँ अब।

ठीक है, चलता हूँ। कभी, किसी तरह ... कोई भी जरूरत पड़े तो बेहिचक मुझे फोन से बता देना। लो, रख लो यह मेरा नया नम्बर है। भरोसा रखना, मैं सुनते ही आ जाऊँगा। आखिर हमदोनों बेस्ट फ्रेंड जो हैं !" कहते कहते वो भावुक हो गया, उसकी नज़रें मुझसे हटकर जमीन पर टिक गई।"

"कैसे बताऊँ तूझे, भूली तो मैं भी नहीं कभी तुम्हें ! पर, हालात के साथ बदलना सीख लिया खुद को।" मैं मन ही मन बुदबुदायी और उसके हाथों को अपने हाथों में भर ली... कुछ देर सन्नाटा पसरा रहा। कब दोनों का हाथ फिर से अलग हो गया, पता भी नहीं चला !

उसे जाते हुए मैं एकटक देखती रही .. उस पल को मौन, साक्षी बन जीती रही, जब तक वो नजरों से ओझल नहीं हो गया।

काश ! सबके मन की बात हो जाती तो दुनिया में कोई गरीब नहीं कहलाता !


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