अब वो नहीं

अब वो नहीं

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जाने कैसा मौसम  आया

शब्द नहीं हैं क्या गुनगुनाया

फूल नहीं हैं फिर भी जाने

कैसे गन्ध का झोंका आया।

जाने किसने बदल डाला है मौसम का मिजाज।जलवायु परिवर्तन के दिलचस्प नजारे हैं।जिन्होंने जीवन में कभी बादल का टुकड़ा भी नहीं देखा था,बाढ़ में डूब रहे हैं और जिन्होंने कभी धूप नहीं देखी थी प्रचंड लू में झुलस रहे हैं।खैर आदमी का बस ही क्या है मौसम पर।

आज की रात जिज्ञासा भरी रात थी।जिज्ञासा थी सौंदर्य की आने वाले खूबसूरत पल की,जब मेरी शुभ्रा से मुलाकात होगी।शाम को उसने मुझे फोन किया था कि कल मैं उससे एक जगह मिलूं।पूरी रात उसकी याद में गुजरी।उससे हुयी बातों की यादें आयीं।बहुत ही सुंदर लड़की थी शुभ्रा और जितनी सुंदर थी उतनी ही खुशमिजाज भी थी।जब मिलती अपनी खुशमिजाजी से सराबोर कर देती थी मुझे।कभी मैं उससे यह नहीं पूछ पाया कि कहां रहती है वह,या क्या काम करती है।कई बार मैंने सोचा था कि अबकी मुलाकात होगी तो उससे उसके बारे में पूछूँगा।लेकिन जब भी वह मिलती उसकी खुशमिजाजी में ही डूब जाता था मैं।इतनी कहानियां थीं उसके पास कि मिलते ही एक कहानी सुनाना शुंरु कर देती, मैं उसकी कहानियां सुनने लग जाता था और उसे देखता रह जाता था।उससे कुछ पूछना ही भूल जाता था मैं और जब वो चली जाती मैं पश्चाताप करके रह जाता था कि इस बार भी मैं उसके बारे में कुछ पूछ नहीं पाया।


अलबत्ता मुझे उससे शाम को हुयी बातें याद आ रही थीं,उसने मुझसे कहा था मैं किसी काम की नहीं हूँ, या मैं अपने लिये कोई काम कर ही नहीं सकती।हाँ मैं किसी के भी काम आ सकती हूँ और जो काम मैं कर सकती हूँ वो काम कोई मुझसे लेता ही नहीं या लोग यही समझते हैं कि मैं कोई काम कर ही नही सकती।उसने मुझसे मेरी शिकायत भी की थी कि मैं उससे उसके बारे में कभी कुछ पूछता ही नहीं।मैंने उससे कहा था कि शायद तुम मेरे दिल की बात जानती हो,सचमुच मैंने तय कर रखा है कि जब तुम मुझसे मिलोगी तो मैं तुम्हारी कोई भी बात नहीं सुनूँगा सिर्फ तुम्हारे बारे में ही जानना चाहूंगा।और यही बात शिकायत के रूप में तुम मुझसे कह रही हो कि कभी मैंने तुम्हारे बारे में कुछ जानना ही नहीं चाहा।उसने हंसते हुये मुझसे कहा था कि मैं तुम्हारे लिये एक काम कर सकती हूँ और सचमुच इसकी तुम्हे बड़ी जरूरत है लेकिन तुम भी औरों की तरह यही समझते हो कि मैं कोई काम नहीं कर सकती।सिर्फ कहानियां ही सुना सकती हूं तुम्हें।


यकीनन रात बड़ी ही खुशगवार सी गुजरी थी।पूरा चाँद आसमान में दिख रहा था और पूरी धरती उसकी चांदनी में नहा उठी थी और धीरे धीरे सुबह होने को आ गयी थी।मैं उससे मिलने का ख़याल लिये अपने रोजमर्रा के काम निपटाकर फ्रेश होकर उससे मिलने के लिये घर के बरामदे में आ गया था।आसमान बादलों से भरा भरा सा था।घने बादलों में सूरज की किरणें सिमट गयी थीं और लग रहा था कि सुबह को ही शाम होने जा रही है।तेज हवायें चलने लगीं थी और आसमान में बिजलियां चमकने लगी थीं।तेज घड़घड़ाहट से आसमान कांप रहा था और मूसलाधार बारिश होने लगी थी।खैर उससे मिलने के समय में अभी एक घण्टा बाकी था,और मैं सोच रहा था कि थोड़ा इंतजार कर लूं औऱ जब बारिश नहीं रुकेगी तो छतरी लेकर ही निकलूंगा।मुलाकात की जगह मेरे घर से दस मिनट के वाकिंग डिस्टेंस पर ही था।सचमुच आधे घण्टे में ही आसमान बिल्कुल साफ हो गया और धूप निकल आयी।अब मैं उससे मिलने के लिये घर से निकल पड़ा, जहां मिलना था वहाँ पुलिस की गाड़ियां सायरन बजाती हुयी लगातार आ रही थीं।कुछ ही देर में पूरा इलाका पुलिस छावनी के रूप में तब्दील हो गया।एक जगह बड़ी भीड़ थी।भीड़ एक लाश को देख रही थी।पुलिस लोगों को वहाँ से हटा रही थी।मैंने देखा कि वह शुभ्रा की लाश थी। बाद में वहाँ के दुकानदारों ने मुझे बताया कि वह लड़की पैदल ही उस तरफ से आ रही थी कि बाइक सवार लोगों ने उसपर धुंवाधार फायरिंग कर उसे मार डाला और और उस तरफ भाग गये।दिन दहाड़े शहर में हत्या का मामला था तो पुलिस की एक्टिविटी समझी जा सकती है।मैं समझ रहा था कि शुभ्रा एक आम आदमी की तरह है और आम आदमी के प्रति पुलिस और पत्रकारों का नजरिया मैं अच्छी तरह जानता हूँ और मुझे यकीनन लग रहा था कि सारे लोग एक कहानी की तरह कहानी के साथ सो जाएँगे।

जो भी हो मुझे विश्वास ही नहीं होता है अब तक कि अब वो नहीं रही।


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