आवरण - चमगादड़!

आवरण - चमगादड़!

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चमगादड़ हमारे भोज्य में नया नहीं था। दीर्घकाल से हम इसका सेवन कर रहे थे। चमगादड़, प्रचारित किये गए कोरोना वायरस का जनक नहीं था।

अपने विध्वंसकारी लक्ष्य में हमारी लापरवाही को हमने चमगादड़ का आवरण देकर प्रचारित कर दिया था।

दरअसल हमारे शाससाम्राज्य विस्तार (Imperialism) लोलुप रहे हैं। जो विश्व में अपने साम्राज्य विस्तार की हसरत के लिए अपनी सेना की मारक क्षमता किसी भी अन्य देश से ज्यादा रखना चाहते रहे हैं। इसी श्रृखंला में सैन्य ताकत में अन्य परंपरागत हथियारों के साथ वे जैविक हथियार जोड़ कर अपनी सेना को दुश्मनों पर भारी करना चाहते रहे हैं।

मैं जैविक हथियार पर काम करने वाली अति गोपनीय टीम का प्रमुख वैज्ञानिक हूँ। आज से छह माह पूर्व मुझे ऐसे वायरस पर काम करने का आदेश मिला था जिसका टीका (Vaccine) और उपचार खोजे जाने के पूर्व ही जिसे फैला कर दुश्मन देश में उसे सर्वव्यापी महामारी (Pandemic) में उलझाया जा सके।

हालाँकि मैं, व्यक्तिगत रूप से साम्राज्यवादी (Imperialism) विचारधारा से सहमत नहीं था। किंतु अन्य नस्ल एवं कौम से एक तरह की नफरत होने से मुझे, हमारी नस्ल और कौम (Racial & Sectarian Discrimination) का वर्चस्व अन्य पर देखना मुझे पसंद था।

आदेशाधीन और व्यक्तिगत रूप से अन्य नस्ल के प्रति अपनी नफरत के वशीभूत मैंने, तब से अपनी आठ वैज्ञानिक की गुप्त (Secret) टीम एवं पचास अन्य सहायकों को लेकर इस पर काम करना शुरू किया था।

हमारा अन्वेषण इतना गोपनीय रखा गया था कि सहायकों को भी उद्देश्य का पता नहीं था। वे यह जानते थे कि हमारी टीम गंभीर रोगों के टीका और दवायें आविष्कृत करती है।

सर्वव्यापी महामारी (Pandemic) के लिए वायरस के प्रयोग/परीक्षण के लिए, हमें सरकार ने ऐसा कैदी उपलब्ध कराया था, जिसे फाँसी दी जाने वाली थी।

हमने उसे जानबूझकर बहुत सी गंभीर बीमारियों के लिए जिम्मेदार वायरसों से एक साथ संक्रमित (Infected) कराया था। फिर परीक्षण के जरिये उसके शरीर में ऐसे वायरस को देखा था जिसकी पूर्व में कोई पहचान नहीं (Unidentified) की जा सकी थी।

इस नए वायरस को मैंने कोरोना (Coronavirus) नाम दिया था और संरक्षित कर उसके टीका पर खोज आरंभ की थी। मगर वह कैदी कोरोना संक्रमित होने पर चार ही दिन में मर गया था।

मुझसे और सरकार से तब एक मूर्खता हुई थी। कैद में मर जाना बताकर, उसके मृत शरीर को उसके परिजन को सौंपा गया था। जिसके कारण उसके दफ़न क्रिया में शामिल परिजन और अन्य कोरोना संक्रमित हुए थे और दो दिनों में ही गुणात्मकता (Exponentially) से इसका शहर में संक्रमण व्यापक हो गया था।

अब हम पर उसके औषधि और टीका शीघ्र खोजने का बेहद मानसिक दबाव हो गया था। अन्यथा अन्य के विनाश के प्रयोजन से लाया वायरस खुद हमारी नस्ल के लिए घातक साबित होने वाला था।

हमें इस रिसर्च के लिए तीन अन्य कैदी उपलब्ध कराये गए। हमने हमारे लैब में संरक्षित कोरोना वायरस से इन्हें संक्रमित किया था एवं अपने प्रयोग आरंभ किये थे।

इस बीच एक सप्ताह के भीतर ही शहर में महामारी फैल गई थी। हजार से अधिक हमारे लोग इस बीच मारे गए थे। और कई हजार अन्य संक्रमित हो गए थे। अस्पताल और कब्रिस्तान पर एकाएक बढ़ा दबाव क्षमता से अधिक था। चिकित्सा पेशे से जुड़े लोग स्वयं घातक दायरे में खुद अपने जीवन के लिए संघर्ष को बाध्य हो गए थइधर हमारे प्रयोग के लिए उपलब्ध कैदियों पर संक्रमण के प्रभाव और विभिन्न औषधियों के प्रयोग का हम दिन रात अध्ययन कर रहे थे। संक्रमण के लक्षण एक कैदी में दो दिन में, दूसरे में आठ दिन में एवं तीसरे पर चौदह दिन में दिखाई देने शुरू हुए थे। 

पहले कैदी ने दसवें दिन ही निमोनिया से दम तोड़ दिया था। चौदह दिन में दूसरे की हालत गंभीर हुई थी। लगने लगा था यह भी दो-तीन दिनों में ही दम तोड़ देगा। हमारे प्रयोग, उपचार ढूँढ ही नहीं पा रहे थे। सत्रहवें दिन दूसरा कैदी भी मौत से हार गया थातीसरे पर कम घातक प्रभाव का कारण उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) ज्यादा होना लग रहा था। सत्रहवें दिन इतना ही नहीं हुआ था अपितु हमारे दुर्भाग्य से, स्वयं मुझ पर एवं हमारी टीम के कुछ सदस्य/सहायकों पर भी संक्रमण के लक्षण (Symptom) दिखाई पढ़ने लगे थे। हमारे द्वारा बरती जा रहीं सावधानी नाकाफी सिद्ध हुई थी।

इस वायरस की इस भयावहता का पूर्वानुमान हमें नहीं हुआ था। मूर्खता यह भी की थी कि भयावहता से निपटने (Crisis management) की पूर्व तैयारी (आपदा प्रबंधन) भी नहीं की थी।

मानवता के दायित्वों अधीन हमारे अनुसंधान प्राकृतिक प्रकोप से बचाव को लेकर किये जाने चाहिए थे। इसके विपरीत हमने मानव निर्मित प्रकोप उत्पन्न करने चाहे थे। कहते हैं विनाश काल में बुध्दि विपरीत हो जाती है। इस विपरीत बुद्धि का परिचय देते हुए हमने आत्मघाती भूलें कीं। अपनी खोजों में लगे रहते हुए हमें स्वयं को अन्य स्वस्थ लोगों से पृथक करना चाहिए था ( (Isolate /Quarantine) रखना था, हमने वह सावधानी नहीं की थी।

मैं संक्रमित होना मालूम पड़ जाने पर भी घर आता जाता रहा था। मुझे पत्नी से दूरी रखने का विचार आया था कि संक्रमण उस तक नहीं पहुँचे। लेकिन फिर मुझ पर निपट स्वार्थ हावी हुआ था।मैंने सोचा अगर मैं मर गया तो मेरे लिए क्या पत्नी क्या बच्चे! मेरी इस स्वार्थ (Selfishness) प्रवृत्ति एवं कामवासना के वशीभूत मैंने, पत्नी से एक रात में ही तीन बार संबंध का सिलसिला बनाया था। यह तीन रात ही चला था कि मेरे पर वायरस प्रकोप अत्यंत बढ़ गया था। चौथी रात मुझमें शक्ति नहीं बची थी। घर में मेरे बेटे एवं मेरी पत्नी पर भी संक्रमण के लक्षण दिखाई पढ़ने लगा था।

कदाचित हम स्वस्थ होते तो अपने अनुसंधान में सफल होकर कोरोना के टीके एवं इलाज खोजने में सफल होते मगर हम गंभीर अवस्था में पहुँचते हुए अपनी दिमागी और शारीरिक सक्रियता खोते जा रहे थे।

पिछले दिन मेरे टीम में मेरे मित्र से चर्चा हुई थी। हम दोनों ने ही माना था कि शायद हमारा स्वयं इस वायरस के घातक प्रभाव से बचना (Survival) मुश्किल है।

उसने यह भी बताया था कि 'जब वह खुद ही मारा जा रहा है तो क्यूँ ना वह संक्रमण जिन्हें पसंद नहीं करता उन तक फ़ैला कर उनका भी मरना तय करे!'अपनी हैवानी हिंसकता एवं इस कुत्सित विचार से वह जानबूझकर, पिछली रात उस संप्रदाय के धर्म स्थान और उनके मोहल्ले गया था। ताकि रोग का विस्तार उन्हें घेरे में ले और ज्यादातर वे लोग संक्रमित हो कर अपने परिवार मित्रों तक यह संक्रमण फैलायें।

मेरे अंदर की नफरत और हैवानियत ने, तब अपनी गंभीर हालत में भी, इसे सुन कर कुटीलता की मुस्कान, मेरे होठों पर लाई थी।

कल ही हमने अपने लोगों के बचाव के लिए संक्रमण से बचाव के लिए 'क्या करें और क्या नहीं' (Do's and Don'ts) प्रसारित करवाई थी।

न्यूज़ चैनेल से हमें पता चला था कि

मुनाफ़ा लालच में लोगों ने मास्क तथा हैंड वाश (Mask & Sanitizers) की कालाबाज़ारी शुरू कर दी थी। हमारी तरह, उन बेवकूफों की बुध्दि भी नष्ट हो गई थी। 'क्या कर लेंगे पैसों का अगर मर जाएंगे तो', यह वे समझ नहीं रहे थे। आज मैं मर जाने वाला हूमृत्यु शय्या (Death bed) पर अंतिम क्षणों में मेरी मानवता ने सिर उठाया है। वह मुझे धिक्कार रही है - लेकिन अब पश्चाताप से लाभ कुछ नहीं है।

मुझे अंतिम विचार यह आया है कि,

हिंसात्मक प्रवृत्ति, साम्राज्यवाद, नस्लवाद, नफरत, स्वार्थ, धन लोलुपता, कामान्धता आदि का हम पर हावी होना, कोरोना वायरस के वाहक बनेंगे जो मानव प्रजाति (Human species) के विनाश के लिए उत्तरदायी होगा। शायद हमारी मानव उन्नत जीवन शैली यहाँ मिट जायेगी। क्या भगवान ने धरती पर कोई देवदूत भेजा है, जो इस भीषण आशंका (ShatteringThreat) को पलट सके?

फिर, मैंने अंतिम श्वास भरी है ... 



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