आरोप
आरोप
राकेश को चाय का कप पकड़ाते हुए, उसकी पत्नी उससे बोली।आपने भाभी का नया गोल्ड नेकलेस देखा।कितना सुंदर है ना।राकेश ने भी उसकी बात पर सर हिलाकर अपनी स्वीकृति दी।फिर आगे वो बोली , की क्या आप भी मेरे लिये।ऐसा ही एक नेकलेस ला देंगे।तब राकेश अपनी पत्नी को समझते हुए बोला, देखो सुनीता भय्या एक सरकारी ऑफिस में अधिकारी है।और मैं ठहरा, एक प्राइवेट कंपनी का छोटा सा मुलाजिम भला उनसे हमारी क्या बराबरी।उसकी बात सुन उसकी पत्नी मुँह चढ़ाते हुए बोली, तो कुछ रुपये अपनी माँ से ही मांग लो।अखिर उस पैसे पर हमारा भी तो कुछ अधिकार है।
तब वह बोला, पहले एक बार कोशिश की थी, तब माँ बोली।राकेश अब तुम समझदार हो, अपनी जिम्मेदारियों का भार स्वंय उठाना सीखो।तो अब हम खुद ही अपनी जरूरत के पैसे, माँ के कमरे से निकाल लेते है।उसकी शातिर पत्नी ने फिर उसे सुझाया।राकेश उससे बोला, कैसी बात करती हो सुनीता माँ को पता चल गया तो।सुनीता बोली, आप इसकी चिंता बिलकुल न करे, इसके लिये हमारी काम वाली बाई रमिया है ना।मढ़ देंगे आरोप उसी गरीब के सर, वेसे भी बेचारी अपने बच्चों की स्कूल फीस भरने के लिये।पिछले कई दिनों से, माँ जी से रुपयों की मांग कर ही रही है।और फिर हम तो घर के ही है, हम पर यहाँ भला कौन शक करेगा।इतना कहते हुए, राकेश की पत्नी ने अपने मुख पर कुटिल मुस्कान बिखेर दी।
