आपन गाँव

आपन गाँव

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फ़्लाइट से उतर कर नीता और गौरव टैक्सी पर बइठ के आपन गाँव के मुहानी पर पहुँच गइलन, त बैल गाड़ी पर सूटकेस लाद के गणेशी कहलन की, “भौजी जल्दी बइठ अबेर हो जाइ...” नीता के सब हालात पाता रहे, बइठ गइली। उबड खाबड़ रास्ता, जेठ के गरमी उपर से घुंघट में, नीता के देह झोरा गइल... गौरव पैदले साथे साथे चलत रहलन... बतावत जात रहलन, ‘बस दू मिनिट में पहुँच जाइब जा।’


दुआर पर परछावन नेग चार के बाद घर में गइली नीता, थक के चूर हो गइल रहली। बड़की ननद एगो हाँथ पंखा रख गइली कहली, “कनिया दू घंटा भोर में बत्ती रहेला।” सरकार के काग़ज़ पर बिजली बत्ती जरेला दुनिया के देखावे और भाषण में सुनाए ख़ातिर नीता मने मन सोचे लगली। बाकि काम शुरु बा, रोड बनत रहे...ठीक बा अगिला बार बैल गाड़ी से ना आवे के पड़ी... गौरव बोलन।


नीता भोरे उठके नहा-धोके चौका में पहुँच गइली। खाना बनावे के जीद करे लगली त सास कहली, “आज चौका छूए के नेग होइ।” बड़की ननद खीर बना कर कहली, “कनिया तू चीनी डाल के ख़ाली चला द...।” नीता सबके परोस के दिहली त ससूर जी कहे लगलन, “नीता बहू, तू भी सबके साथे खा ल।” सास कहली, “घुंघट काढला के कौनो जरुरत नइखे... तू सलवार कुर्ता पहिनल कर।”


इ सब सुनकर नीता निहाल हो गइली लेकिन कहली,”ना, हमरा के कवनो दिक़्क़त नइखे, हमरा के गाँव के जिन्गी जिएँ दी।” नीता गौरव से कहली, “हम अभी कुछ दिन इहाँ रहब तब जाइब, कुछ दिन बड़ जेठ के सेवा करब।”


छोटकी ननद के दुल्हा राजीव, उनका के कोना में ले जाकर समझावत रहलन। नीता भी जानत रही कि ननद शादी में दू दिन रह के पाँच साल से आपन ससुराल ना जाए के चाहस। बाबूजी के अब तब के हालत बा पोता के देखे ख़ातिर तरस ताड़न एक बार चल के मिल ल राजीव कहलन त ननद साफ़ माना कर दिहली। नीता तब गौरव, राजीव से मिलके ननद के ससुराल जाए के कहली त मन मारके ननद भी साथे गइली।


ननद के ससुराल में भी नीता घुंघट काढ के, खाना बना के सबके मन जीत लिहली। राजीव के बाबूजी भी पोता देख के खुश रहन और राजीव नीता के शुक्रगुजार। चले के बेरा ननद, खोंइचा देवे समय कहली, ‘’भौजी, फिर कब अइबू?” त नीता कहली, “अरे! हम हर साल आइब शुद्ध आक्सीजन लेवे ख़ातिर।” सब लोग ठठा के हंसे लगलन।

पछिया हवा के झोका और हरिंहर खेत के बीचे बैल के घंटी के टुन - टुन बड़ा नीक लागत रहे।


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