Thakkar Nand

Classics

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आलसी गधे

आलसी गधे

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एक बार की बात है एक राम नाम का व्यापारी था उसके पास एक गधा था। राम अपना सामान अपने गधे पर लादता और उसको ले जाकर मार्किट में बेचता था। वह मार्किट की जरुरत के हिसाब से दाल, सब्ज़ी, कपड़े और मिठाइयाँ आदि बेचता था। राम अपने गधे का बहुत ख़याल रखता था। वह उसको बहुत अच्छा खाना देता और उसको आराम करने के लिए अच्छी जगह देता था क्योंकि उसको पता था की गधे की वजह से ही वह अपना सामान मार्किट में ले जाकर बेच पाता था। 

लेकिन गधे को काम करना बिल्कुल भी पसंद नहीं था वह आलसी था। वह जितना हो सके काम से बचता ही था। वह तो बस खाना और आराम करना चाहता था। एक दिन जब राम अपने गधे पर दाल, चावल की बोरियाँ मार्किट जाने के लिए लाद चूका था तो गधा आगे बढ़ने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं हुआ ऐसे में राम ने उसको एक छड़ी से मारा जिसके कारण गधे को चलना ही पड़ा।मार्किट पहुंच कर राम को पता चला की मार्किट में अब नमक की बहुत ज़्यादा जरुरत है तो उसने नमक को बेचने का सोचा। वह अगली बार नमक की चार बोरियाँ लेकर मार्किट पहुँचा और उसको बेच दिया तब उसे उसके अच्छे दाम मिले उसने अगली बार और ज्यादा बोरियाँ लेकर मार्किट में बेचने की योजना बनायीं। राम ने अगली सुबह मार्किट में ले जाने के लिए छः बोरियाँ अपने गधे के ऊपर लाद दी लेकिन गधा इतनी बोरियों के बोझ के कारण खड़ा भी नहीं हो पा रहा था।यह देखकर राम ने 1 बोरी को निकाल दिया जिससे गधा अब ठीक था। राम पांच बोरियों के साथ ही मार्किट की और निकल पड़ा। उनको मार्किट में जाने के लिए एक नदी से होकर गुजरना पड़ता था। उस दिन नदी में पहले की तुलना में ज़्यादा पानी था।

राम अपने गधे को आराम आराम से लेकर नदी पार करने लगा लेकिन बीच नदी में जाकर गधे का पैर एक पत्थर से टकरा कर फिसल गया।जिससे गधा वहाँ गिर गया। यह देखकर राम ने गधे को खींचकर बाहर निकाला और देखा गधे को कोई चोट तो नहीं लगी। नदी से बाहर निकलने पर गधे ने महसूस किया की उसकी पीठ का वज़न बहुत कम हो गया है जिससे वह बहुत खुश हुआ और उसने सोचा यह कोई चमत्कारी नदी है जिसमे पीठ से वजन कम करने की ताकत है।

राम ने देखा सारा नमक नदी में बह चूका था जिससे वह अपने घर की तरफ़ गधे को लेकर लौट गया। गधे की पीठ का भार भी कम हो गया था और उसको मार्किट भी नहीं जाना पड़ा जिससे गधा बहुत खुश हुआ और घर जाकर उसने खाना खाया और पूरा दिन आराम किया। राम अगले दिन गधे की पीठ पर बोरियाँ लाद कर चलने लगा।गधे ने सोचा कल को पूरा दिन काम नहीं करना पड़ा लेकिन आज फिर काम करना पड़ रहा है। उसने सोचा लेकिन चमत्कारी नदी तो है न जिससे वजन कम होता है। जैसे ही राम और उसका गधा नदी पार करने लगे तब गधा फिर बीच नदी में जाकर बैठ गया। राम इससे बड़ा हैरान हुआ और अपने गधे को खींचकर बाहर निकाला।

अब फिर सारा नमक पानी में बह चूका था। राम को पता चल चूका था गधा अब यह जान बूझकर कर रहा है। वह इसके बाद घर को लौट गए गधा फिर बहुत खुश हुआ क्योंकि उसको उस दिन भी कोई काम नहीं करना पड़ा। अगले दिन राम ने एक तरकीब सोची और वह गधे पर बोरियाँ लादने लगा। गधे को थोड़ा भारी तो महसूस हुआ लेकिन उसने सोचा चमत्कारी नदी तो है न जिससे वह सीधा चल पड़ा।जब राम और उसका गधा दोनों नदी पार करने लगे गधा फिर अपनी पीठ का भार कम करने के लिए बीच नदी में जाकर बैठ गया। थोड़ी देर के बाद वह जैसे ही खड़ा हुआ तो उसकी पीठ बहुत दर्द करने लगी क्योंकि पीठ का भार बहुत बढ़ चूका था क्योंकि राम ने अबकी बार नमक की जगह कपास बोरी में डाला था।

गधे के पानी में बैठने पर कपास ने सारा पानी सोख लिया और भारी हो गयी। गधा इससे बहुत परेशान हुआ और गधे को इस बढे हुए भार को लेकर अब मार्किट भी जाना पड़ा। अब गधे को सबक़ मिल चूका था। इसके बाद कभी भी गधे ने नदी में बैठने की हरक़त नहीं की।  इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की हमें कभी भी आलस्य नहीं करना चाहिए क्योंकि आलस्य करने का हमेशा नतीजा बुरा ही होता है।


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