Bindiyarani Thakur

Tragedy

4.1  

Bindiyarani Thakur

Tragedy

आखिर क्यों

आखिर क्यों

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सुधा अपनी डायरी पढ़ रही है -

मैं सुधा बहुत दिनों से परेशान हूँ। क्या करूँ कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है। परेशानी है कि दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही है। बात भी कुछ ऐसी है जो किसी से कह भी नहीं सकती। किसी के लिए सुन कर भी भरोसा करना मुश्किल होगा। सुदीप से भी नहीं कह पा रही हूँ। कहीं वे मुझे ही गलत ना समझ लें, इन पतिदेव का भी क्या भरोसा करूँ, उम्मीद के टूटने से बहुत डर लगता है। खैर अब जो भी हो इस सब से मुझे खुद को ही निबटना होगा।

मेरी समस्या बहुत गंभीर है। बात मेरे ससुर जी से जुड़ी हुई है। उनके अजीब बर्ताव को लेकर मैं हैरान और परेशान हूँ। पिछले दिनों से वे मेरे साथ बहुत ही अजीब तरह से पेश आ रहे हैं और ये कतई भी मेरा वहम नहीं है, कहते हैं कि औरत अपने तरफ उठती सही और गलत निगाह को पहचान लेती है, इसीलिए मुझे लगता है घर में इन दिनों जो भी हो रहा है वह गलत है।

मैंने गौर किया है कि जब भी मैं बाबूजी को चाय या पानी देती हूँ वे बरतन की जगह हाथ पकड़ने लगते हैं और आजकल चाय, पानी पहले से ज्यादा मांगने लगे हैं।

अब कल मैं कमरे में सो रही थी बच्चे बाहर खेलने गए थे, कमरे की लाइट बंद थी, वे आकर पीठ में हाथ फेरने लगे, मैं चौंक कर उठ बैठी और झट से बत्ती जला दी। आप यहाँ क्या कर रहे हैं सामने में खड़े खिसियाते हुए कहने लगे मैं समझा बबली सोयी है,( बबली मेरी पाँच साल की बेटी है जो उनके सामने ही खेलने गयी थी।)

चार पांच दिन पहले अकेले में मुझे पाँच सौ रुपये पकड़ाते हुए कहने लगे लो कुछ जरूरत है तो खरीद लेना! मैंने साफ मना कर दिया, क्यों लूँ मैं देना है तो बेटे के सामने दें ऐसे छुप कर क्यों?

कभी अचानक कमरे में चले आयेंगे जब कपड़े बदल रही होती हूँ कितना अजीब सा लगता है।

ये सब माँजी के गुजरने के बाद ही शुरू हुआ है। जब तक माँ थीं ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था पर इन दिनों जो भी हो रहा है बहुत ही असहनीय हो रहा है।

कुछ कर भी नहीं सकती चुप चाप सह रही हूँ अगर सुदीप से कुछ कहती हूँ और उन्होंने भरोसा नहीं किया तो फिर क्या होगा। और अगर सुदीप ने मुझपर भरोसा करके बाबूजी से लड़ाई शुरू कर दी तो फिर क्या होगा!

मायके में भी ऐसा कोई नहीं जिससे मदद का आसरा हो। बहुत परेशान हूँ और मैंने चुप चाप ही रहने का फैसला किया है, जानती हूँ इससे उनकी हिम्मत बढ़ सकती है, लेकिन परिवार के हित में यही सही है।

सुधा डायरी बंद करती है आँखों से दो बूँदें लुढ़क गईं। आज बाबूजी को गुजरे पंद्रह दिन हो गए। जीवन के अंतिम दिनों में वे असहाय हो गए थे। उनकी सारी जिम्मेदारी सुधा के उपर थी, नित्यकर्म से लेकर खिलाना -पिलाना,नहलाना -धुलाना,मालिश,दवा सबकुछ ही। और बाबूजी जब भी सुधा को देखते माँ कहकर हाथ जोड़ देते, अंतिम समय तक भी उनके हाथ जुड़े ही रहे।

(आज की मेरी कहानी परिवार में ही हो रहे शोषण के बारे में है, कई महिलाएं चाहकर भी आवाज़ उठा ही नहीं पाती हैं और जीवन भर ये सब सहन करती रहती हैं,किसी को भी ऐसा ना सहना पड़े यही आशा करते हुए •••)



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