आजादी
आजादी
वो गया था पकिस्तान आतंकी शिविर में आजादी की लड़ाई के लिए खुद को योद्धा बनाने।
जब उसने देखा की उसके शिविर में ही कुछ मुसलमान लड़कियाँ उठाकर लायी गयी हैं और आजादी और कौम के रहनुमा उन लड़कियों को नोच रहे हैं अपने शरीर की भूख मिटाने को तो उसने बगावत की।
अब वो बेड़ियों में जकड़ा खून से लथपथ मौत का इंतज़ार कर रहा है। वो सोच रहा है की कैसे वो दीवाना था कश्मीर की आजादी का ? कितनी शिद्दत के साथ वो आया था आतंकी शिविर में आजादी के लिए लड़ने को। लेकिन यहाँ आकर उसे समझ आया की आजादी के नाम पर उसे उन्मादी बनाया गया और शैतान का गुलाम बना दिया गया।
आज उसे अपनी मौत का दुःख नहीं था बल्कि उसे दुःख था अपनी जिन्दगी का जो उसने एक बेमानी मकसद के लिए गुजार दी। जब उसे हकीक़त समझ आई तब मौत उसे धीरे-धीरे अपनी बाँहों में जकड़ रही थी।
दूसरी तरफ उसके घर में उसकी बीवी के गले में उसकी छह साल की बेटी बाँहें डाल कर झूल रही थी और पूछ रही थी, “अम्मी, अब्बू कब आयेंगे ?”
उसकी बीवी ने जवाब दिया, “जल्द मेरी बच्ची।”
बच्ची ने फिर पूछा, “मेरे लिए अब्बू क्या लायेंगे ?”
उस औरत ने फक्र के साथ जवाब दिया, “आजादी।”
