निःस्वार्थ प्रेम
निःस्वार्थ प्रेम
आकाश ने रिया का हाथ पकड़ा। उसका दिल जोर -जोर से धड़कने लगा था। पहली बार किसी ने उसका हाथ अपने हाथों में लिया था। आकाश पॉकेट से निकाल कर उसकी हथेलियों पर ऑटोग्राफ बुक रखा। उस समय जो उनकी नज़रे मिली तो रिया ने घबराकर आँखें झुका लीं। उनका गोरा चेहरा गुलाबी हो गया था और आँखों में जाने क्या दिखा कि रिया सामना नहीं कर पायी। जल्दी से साईकल उठाया और अपने हॉस्टल के कमरे में आ गयी। आज उसे लगता था जैसे कोई बहुत ही महत्वपूर्ण दस्तावेज़ हाथ लग गया हो।
पहले पन्ने पर लिखा था --"मेरी जीवनसंगिनी कैसी होगी ?" अगले पन्ने पर --"उसमें वो सारे गुण होने चाहिए जो तुम में हैं। " और अगले पर --"क्यों ना वो तुम ही बनो !"उसका दिल जोर -जोर से धड़क रहा था। उफ़ !ये कैसे भाव आ रहे थे मन में। उसके अंदर इतना बचपना है वो कैसे संभाल पायेगी इतना स्नेह!
प्यार बहुत प्यारा लगता है, जब तक बस प्यार हो। यहाँ उम्र -भर के लिए बंधना था। जिम्मेवारियां थीं। जिस तरह से उन्होंने अपने दिल का हाल बयां किया था वो किसी के भी होश उड़ाने के लिए काफी थे। रिया ने ऑटोग्राफ बुक दिया था ताकि कुछ यादगार संवाद वो संजो कर रखेगी। वो पल आज भी रिया के लिए धरोहर से कम नहीं। वह ख़ुशी से पागल हो रही थी। अब वो अकेली नहीं थी। एक इस अहसास ने उसे आत्मविश्वास से भर दिया था। आकाश ने उसे पक्का विश्वास दिलाया कि अब कोई उसका रास्ता नहीं रोकेगा और नाही उसे परेशान करेगा। एक इस बात से जो सुरक्षा के भाव उसके मन में आये फिर वो कभी नहीं घबराई। दरअसल शुरुआत में इतने लोग उसके इर्द -गिर्द आये की वो डर गयी थी ।१८-१९ की उम्र में अक्ल कहाँ होती है।
अगर आकाश के बारे में बताऊँ तो शब्द कम पड़ेंगे। वो एक बहुत अच्छे परिवार के सभ्य, सुसंस्कृत और कुशाग्र बुद्धि वाले इंसान थे। रिया उतनी ही भोली और चंचल और लापरवाह थी। दोनों के विपरीत गुणों ने ही उन्हें क़रीब लाया। इतने आदर्शवादी इंसान थे आकाश कि उनका सभी सम्मान करते थे। शिक्षक भी, सहपाठी भी और रिया भी। इन सबके विपरीत रिया में बस बचपना भरा पड़ा था। किसी की रैगिंग कर ली। जरा सा चिढ़ा दिया। बस एक दिन की मस्ती पूरी हो जाती थी। हँसी -मज़ाक व बदमाशियों में रिया सिद्धहस्त थी। पर प्यार कैसे करते हैं और निभाते हैं, इस मामले में वह अज्ञानी थी। वह बस ११ वर्ष की उम्र से ही, घर से दूर, छात्रावास में रहने भेज दी गयी थी। छुट्टियों में घर आती भी तो छोटे भाई -बहन के साथ ही वक़्त बिताती।
दोस्ती तक तो ठीक था,पर ये प्यार, वो भी आकाश जैसे गंभीर इंसान का, क्या रिया संभाल पायेगी ? उसमे इतनी परिपक्वता आएगी ? खुद से सवाल करती रिया चुप-चुप सी रहने लगी थी। आकाश के प्रस्ताव ने रिया को बदल डाला था। "मुखरा रिया", मौन हो गयी थी। आकाश के लिए बहुत सम्मान था उसके हृदय में। उन जैसे इंसान को खो देने की मूर्खता वो कैसे करती और रूढ़िवादिता के चरम, अपने माता -पिता को क्या समझाती। इसी उहापोह ने उसे गुमसूम सा कर कर दिया था। रिया के अब फाइनल एक्साम्स नज़दीक आ गए थे।अब उसे आगे की बात करनी ही होगी क्योंकि अगले 2 महीने के बाद उसे घर वापस आना ही था। आकाश, रिया के चुप रहने की वजह समझ गए थे। यही तो उनकी खूबी थी। रिया के दुख -सुख पहले ही भाँप लेते थे इसलिए उन्होंने राय दी कि "एक बार अपने माता-पिता से मुझे मिलवा दे, फिर मैं बात कर लूँगा। रिया होली की छुट्टियों में घर आ गयी। छुट्टियाँ खत्म होते ही वापस हॉस्टल जाना था ।जाने क्यों आँसू थम ही नहीं रहे थे। प्यार करने वाले मतलबी नहीं होते। अगर वो आकाश से प्यार करती थी तो क्या अपने, अपनों से नहीं ? क्यों उसे उन में से किसी एक को चुनना था? अगर दोनों साथ मिल जाते तो मानो सब मिल जाता।
उसे भावुक देखकर उसकी माँ साथ आ गयीं। रिया ने उन्हें आकाश मिला दिया। आकाश ने बहुत ही खूबसूरती से अपनी बात उनके सामने रखी "मैं आपकी बेटी रिया से प्यार करता हूँ। उसे बहुत खुश रखूँगा। आगर आपकी बेटी को, मुझसे अधिक प्यार करने वाला, सुयोग्य लड़का मिला तो मैं स्वयं रिया के विवाह का प्रस्ताव लेकर उसके पास जाऊंगा।" रिया की माँ खुश थीं पर पिता के निर्णय से भिज्ञ थीं। उन्होंने बस इतना ही कहा " बेटा! इसके पिता रूढ़िवादी हैं। वह कभी नहीं मानेंगे।" पर आकाश ने बड़ी विनम्रता से कहा ,"आपने बेटा कहा मुझे , आशीर्वाद दीजिए !" कहकर चरण स्पर्श कर चला गया। अब परीक्षाएं नज़दीक थीं। सब पढ़ने में लग गए थे पर रिया बहुत दुखी थी और अनजाने भय से ग्रसित भी। कभी -कभी यूँ हीं, रोना आता। बारिश की वो सुबह आज भी याद है उसे। जब बारिश अंदर-बाहर दोनों ही तरफ हो रही थी। कल आखिरी पर्चा था सब खुश थे सिवाय रिया के। उसके पिता उसे हमेशा के लिए, घर ले जाने के लिए आए थे। उसने पापा से पूछा "आप मुझसे कितना प्यार करते हैं पापा?"
"बहुत "पापा का जवाब था।
"क्या आप मेरी ख़ातिर एक बार आकाश से मिलेंगे?"
"क्यों मिलना है?"सख़्त आवाज़ में बोले।
"मेरी खुशी के लिए"
"ठीक है, बुला लो!"
पापा सब समझ चुके थे। उन्होंने बड़ी समझदारी से काम लिया। खुशी से आकाश से मिले। रिया को ऐसा लगा मानो सब आसानी से हल हो गया। वह बेकार ही डरती रही ! " दोनों की उम्र छोटी है, पढ़ -लिख कर कुछ बन जाओ, फिर हम तुम दोनों को हमेशा के लिए एक कर देंगे! " पापा के मुंह से ये शब्द सुनकर यही लगा कि वो तो अच्छे वाले पापा हैं उन्हें कितना गलत समझा।
प्यार का छोटा सा, प्यारा सा सफर जो खो देने के डर से रो -रो कर गुजारा वो एक बेवकूफी लग रही थी। उसे आकाश और अपने, सब एक साथ मिल रहे थे। उसे यही तो चाहिए था ! आकाश उसे छोड़ने स्टेशन आये। अंत तक वह उन्हें देखती रही। इस उम्मीद में कि अब तो हमें बड़ों की रज़ामंदी मिल गयी है , फिर मिलेंगे !
जल्दी ही समझ गयी कि पापा की वो सभी बातें, धोखा थीं। ये सब घर आकर पता चला। रिया पर सख़्त पहरेदारी बिठा दी गयी थी। रिया अपने अंतर्द्वंद ,तटस्थ परिवारजनों की बेरुखी, आकाश के प्रति अपराधबोध, इन तमाम तकलीफों के साथ अपने ही घर में क़ैद थी और आकाश एक अंतहीन इंतज़ार करते रहे .......!
आज सालों बाद घर में उत्सव सा माहौल था। सभी अपने कार्य में लगे थे। रिया के चेहरे की रौनक लौट आयी थी। चार वर्षों के बाद आज उसे हँसते देख उसकी माँ ने उसकी नज़र उतार ली।" बस ऐसे ही खुश रहा कर बेटा। जिस घर में लक्ष्मी हँसती हैं वहीं लक्ष्मी बसती हैं !"सभी खुश थे पर गोकलदास जी कुछ नर्वस दिख रहे थे। क्यों ना हो ? एक तो प्यारी बेटी विदा करनी पड़ेगी और वो भी उसके साथ, जिसे चार वर्ष पूर्व समझ नहीं पाए। आपने बिलकुल ठीक समझा। पिछले सप्ताह ही सिविल सर्विसेज के परिणाम घोषित हुए। रिया प्रति वर्ष अख़बार में नाम ढूंढती थी।
ये क्या ? आल इंडिया 7th रैंक !! वह भागती हुयी मंदिर पहुंची और ईश्वर का धन्यवाद किया। अब वह आकाश के प्रति अपराधबोध से मुक्त महसूस कर रही थी ।
तीसरे ही दिन एक रजिस्टर्ड लेटर आया "अब मैं आपकी बेटी की योग्य बन गया हूँ और इन चार वर्षों में थोड़ा अनुभवी भी। क्या आप अपनी बेटी का हाथ मेरे हाथों में देंगे ? मैं अपने पिताजी के साथ आपके घर रिश्ते की बात करने आना चाहता हूँ !"
रिया ने आकाश की लिखावट पहचान ली थी पर उसने किसी से कुछ भी नहीं पूछा, घर में आकाश का नाम तक लेने की आज्ञा नहीं थी। पर आज स्वयं गोकलदासजी ने उसे बुलाकर आकाश की प्रशंसा की " गुणवान है तुम्हारा आकाश। उसने वह कर दिखाया जो मैंने सोचा तक नहीं था। उसकी अंग्रेजी इतनी उच्च कोटि की है कि मुझ जैसे अंग्रेजी के ज्ञाता को शब्दकोष खोलना पड़ गया ।"
कैसा "आध्यात्मिक प्रेमी "है उसका चाहनेवाला।कोई और होता तो पहले रिया को पत्र लिखता । यही खास बातें उसे गहरे आत्मसंतोष से भर देतीं। बिना कुछ कहे उसने बस रिया का मार्ग आसान किया था। ऐसा निःस्वार्थ प्रेम आपने देखा है क्या ?मैंने तो पहली और आखिरी बार ऐसा पवित्र प्रेम देखा।
गोकलदासजी स्टेशन जाकर उन लोगों को अपने साथ घर लेकर आये। विवाह की तारीख तय हुयी। अगले सप्ताह ट्रेनिंग के लिए जाना था। चार दिन के बाद का मुहूर्त निकला।" इतनी जल्दी में क्या हो सकेगा ? ट्रेनिंग के बाद का कोई शुभ दिन निकालिये।"--रिया की माताजी बोलीं।
"अरे नहीं !" अब तक चुप बैठे आकाश बोल पड़े-- "तब तक अगर किसी टॉपर का ऑफर आपने स्वीकार कर लिया तो मेरी तो सारी मेहनत बेकार चली जाएगी। अब रिया के मामले में और रिस्क नहीं ले सकता।" उनके ये कहते ही सब हँस पड़े और देर तक हँसी गूंजती रही .....
आकाश और रिया की निगाहें मिलीं फिर रिया ने उन गहरी आँखों में क्या देखा कि वापस घबराकर नज़रें झुका ली। उसे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था कि वह सबसे अच्छी तरह बात कर लेती है,पर आकाश से क्यों नहीं !
शायद उनके पहले प्यार की खुमारी कभी कम ना हुयी। वह अपने प्रियवर की आँखों में हमेशा के लिए खो गयी...