"आधुनिकता"

"आधुनिकता"

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कुछ दिनों पहले ही उसके सपने पूरे होने के सारे आसार दिखने लगे थे। उसके शहर में जगह-जगह बने पार्क, नए खुले सभी सुविधाओं से परिपूर्ण मॉल, नए उद्घाटन हुए ओवरब्रिज, कई बड़े अस्पतालों के शाखाएं , भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान की शाखा, व्यापारियों का आगमन, भूगर्भ रेल लगाने की योजना शुरू यानी स्मार्ट सिटी हो जाने वाला था उसका शहर, परन्तु प्रकृति की अजब लीला। उसने उसको सोते से जगा कर बैठा दी थी मानो उसके ही पैरों से ठोकर लगाकर उसका कांच का गिलास चकनाचूर हो गया हो... पूरा शहर जलमग्न हो प्रलय की स्थिति में था.. वह पूरे शहर में पागलों की तरह घूम रहा था, कोई दादी मंदिर की सीढ़ियों पर भीगी बैठी थी उन्हें कुछ याद नहीं आ रहा था ना जाने क्या विनाश देखी थी, कोई दादा मुझे पानी दो का गुहार लगा रहे लेकिन बाहर नहीं निकलना चाह रहे थे क्यों कि उनका फोन कोई नहीं उठा रहा था, जानवरों के लाशों के ढेर लगे थे। कुछ दूर आगे बढ़ने पर उसे शिशु के रोने की आवाज़ सुनाई दी.. एड़ी के बल उचक कर देखा तो एक व्यक्ति के सर पर टब में एक नन्हीं दिखाई दी उसे इशारे से दिखलाते हुए पूछा,-"यह कौन है तुम्हारी?"

"मैं पिता हूँ इसका यह इसकी माँ है यह इसका चाचा है..," अपने साथ चल रही स्त्री और पीछे सामान लिए चल रहा युवक को बताया।

"आज जब बच्चियों के साथ इतनी दुर्घटनाएं हो रही हैं, ऐसी आपदा में आप इस नन्ही को क्यों बचाने की कोशिश कर रहे हैं और कहाँ ले जा रहे हैं ?"

"मेरी माँ, इस बच्ची की दादी के पास। वो इसे देखना चाह रही है। अपने हाथों परवरिश करना चाह रही है। देखिए इसके कारण आज जल स्तर कम हो रहा है। यह कान्हा है हमारे लिए!"

 "शहर स्मार्ट हो जाएगा, कभी न कभी जब इतने स्मार्ट सदस्यों का शहर है!" बुदबुदाते हुए वह मुस्कुरा उठा.. "मंदिर से मिली दादी और रास्ते में मिले दादा की उचित देखभाल भी करनी है।"


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