ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
ये ज़िन्दगी बेवक़्त रुलाती क्यों हे,
छोटी से छोटी चीज़ के लिए तड़पाती क्यों है,
आसान सी ज़िन्दगी मुश्किल हो गई,
उस रात ये सोचते सोचते न जाने कब सो गई !
आगे सफर था, साथ में हमसफ़र था,
रुकती तो सफर से रुस्वाई करती,
चलती तो हमसफ़र से बेवफाई करती !
बड़ी ही असमंजस में फँसी थी,
आज भी याद है वो दिन
जब में रोते रोते हँसी थी !
