ज़िंदगी
ज़िंदगी
ये बिसाते दुनिया फिर सही
ये नुमाइशे आदम फिर सही
मेरी आज़माइश जाबजा
मैं जज़बे खाक़ फिर सही
कहीं नेमतों की बारिशें
कहीं फाक़औं की आतिशि
वही वजूदे माजिद लापता
वही सरफ़रोशी फिर सही
वो लिपट लिपट कर रोकना
वो सिसक सिसक कर चूमना
वही उठ कर फिर न लौटना
वही बेक़रारी फिर सही
कहीं उमर भर की असगरी
कहीं मुरदा जिस़म की मकबरी
वही रोशन होती ताख़ हैं
वही बुत परस़ती फिर सही...!