Ruchi Madan

Abstract

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Ruchi Madan

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ज़िन्दगी की रेल

ज़िन्दगी की रेल

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अपनी ज़िन्दगी की रेल अब थक गई है

झूठे रिश्तों की पटरी पे चलते चलते

थक चुका हूँ अब मैं इन का मोल चुकाते चुकाते

रोक दो मैं अब उतरना चाहता हूँ

अब अकेले ही गुनगुनाना चाहता हूँ



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