ज़िंदा
ज़िंदा
ज़िंदा तो हूँ पर जान नहीं है
जैसे ज़मी तो है आसमान नहीं है
जिसमें कभी हुआ करता था मेरा घर
आज महसूस हुआ ये वो हिंदुस्तान नहीं है
अल्लाह और राम में अब तुम ही करो फ़रक
एक जो बताए उनको ऐसा कोई ख़ानदान नहीं है
अब गोली मार दो चाहे गला काट दो
बचे मेरे दिल में कोई अरमान नहीं है
कितना बेबस है 'साहिल' तू इस आबो-हवा में
कि मौत का भी मिलता यहाँ सामान नहीं
