ज़िंदा हूँ अभी तक मरा नहीं
ज़िंदा हूँ अभी तक मरा नहीं
ज़िंदा हूँ अभी तक मरा नहीं चिता पर अब तक चढ़ा नहीं
साँसे जब तक मेरी चलती है तब तक जड़ मैं हुआ नहीं
जो कहते थे हम रोएँगे कब तक मेरे ग़म को ढोएँगे
पहले पंक्ति में खड़े है जो कहते है कैसे सोएँगे
मैं धूल नहीं उड़ जाऊंगा, धुआँ नहीं गुम हो जाऊँगा
हर दिल में मेरी पहुंच बसी मर के भी याद मैं आऊँगा
कैसा होता है मर जाना एक पल में सबको तरसाना
मुंह ढाके शय्या पर लेटा मैं तकता हूँ सबका रोना
साँसों को रोके रक्खा है कफन भी ओढ़े रखा है
क्या हाल है मेरे अपनों का मैंने देख सभी को रक्खा है
कुछ मुंह छुपाए खड़े रहे कुछ आँख दिखाए अड़े रहे
खुद को जो अपना कहते थे सब पीठ दिखाए खड़े रहे
कोई अर्थी को सजा रहा आँसू को कोई छुपा रहा
कुछ कागजात के चक्कर में अपने भावों को छुपा रहा
जो अपने थे सब गैर हुए प्रेम बदल कर बैर हुए
जिनको हम अपना माने थे किसी और के सब वो, खैर हुए
मैं खड़ा हुआ सब जाग गये घड़ियाल थे जो भाग गये
बस दो ही सच्चे साथी थे मेरे उठने से जो चहक गये
अब बस उनसे ही रिश्तेदारी है उनसे ही सच्ची यारी है
जो अंत तक साथ निभा रहे संग उनके दूसरी पारी है।