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युगे युगे क्रान्ति

युगे युगे क्रान्ति

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नियम अटल प्रकृति का है परिवर्तन

अवनति से उन्नति की ओर

पतन से उत्थान की ओर

विनाश से पुनःस्थापना की ओर


इस नियम ने जन्म दिया फिर

परिवर्तन के विकराल रूप को

जीव जगत की प्राणात्मा में मिल जो

मुख से प्रस्फुटित हुआ जन जन के

गुँजित हुआ सर्वजगत इन नारों से

युगे युगे क्रान्ति की ललकारों से


जब पुरानी समाज व्यवस्था

पतित हो बनी अस्त व्यस्तता

जब अन्यायी, विषधारी, अत्याचारी

करने लगते हैं ताण्डव विनाश का

जब पाप, हिंसा, असत्य, अधर्म से

पीड़ित होती है वसुन्धरा सारी

जब शोषित, शोणित लिप्त काय से

बहते रक्ताश्रु, मचती है त्राही त्राही


निस्सहायों का सुरक्षा कवच बन

शोषितो की मुक्ति का सूत्रधार बन

पीड़ित जीवन में आशादीप बन

पुनरूथान का कर्णधार बन

शोषको के हिंसाजाल को ध्वस्त कर

अनीतिज्ञो के षड़यन्त्र का नाश कर

तेजस्वी सूर्यांशु से जड़ित विजयरथ पर

अवतरित हुआ है सदा क्रान्तिवीर


युग युग से यह क्रान्तिज्वाला

दग्ध करती आई पतन को

पुनरूथान कर पुनःस्थापना

करती है वह आदर्श समाज की

क्रान्ति ही है शस्त्र परिवर्तन का

परिपालक जो है प्रकृति का


जब जब पतन की कगार पर

पहुँचता है यह त्रस्त समाज

तब तब मानवता की रक्षा को

प्रकट हुआ है वह क्रान्तिदूत

युग युग में इस क्रान्तिवीर ने

मानवता को है दिया नवजीवन।


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