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pawan punyanand

Tragedy

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pawan punyanand

Tragedy

युद्ध और हम

युद्ध और हम

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हम सबों को क्या है हो गया,

क्यों है सृष्टि विनाश को तूले हुए?

रचना सर्वश्रेष्ठ हम ईश्वर की,

हैं कर्तव्य अपने सभी भूले हुए।

सामर्थ्य नहीं मनुष्य का केवल,

युद्ध से तौला जाता है,

लड़कर, नाश मचा कर, लहू बहाकर,

नहीं बतलाया जाता है।


हुआ कौन-सा वह युद्ध जग में,

जिसके बाद न पश्चाताप हो?

फिर क्यों हैं हम खड़े रणभूमि में,

जिससे सर्वस्व का नाश हो?

पृथ्वी माँ है, जननी है,

यह फिर अंकुर तो देगी,

पर हमारी यह विनाश-लीला,

उसके ही उर छलनी करेगी।


अनेक युद्धों के घावों को देखो,

हमें यह युद्ध का मतलब समझाती है,

अब भी लहू के रंग से रोज,

आँचल माँ की भींग जाती है।

युद्ध की भीषणता से,

हम परिचित सब जान रहे,

पर इठलाते अपने अस्त्र-शस्त्रों पर,

एक-दूसरे पर क्यों तान रहे?


भूल अगर है किसी की सजा दो,

पर युद्ध में विश्व का न नाश करो।

संभल जायें हम अभी,

युद्ध हुआ तो शेष कुछ न बचेगा,

याद यह रखेगी सृष्टि सारी,

क्यों किया था हमने यह भूल भारी?

नहीं माफ़ वह कर पायेगी,

प्रलय के बाद बची अगर नस्ल हमारी।


हम मानवों की गलतियों को,

हमेशा भुगता जीव-जगत,

सृष्टि रोती रही हमेशा,

हम गाते रहे नाश का स्वर।

याद करो कितने युद्धों से हमने,

भू को है लहूलुहान किया,

स्वयं के स्वार्थों के हित,

संपूर्ण जगत का अपमान किया।


भूल बैठे शिक्षा जो हमने,

महापुरुषों से पाई थी,

प्रकृति माता समान,विश्व कल्याण,

सेवा-सद्भाव के वह ज्ञान,फेंक कहाँ हम आये हैं,

कहाँ जा रहे हम अब,क्या गति पायेंगे,

इतिहास में हम सब,याद कैसे किये जायेंगे?



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